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बिहार महासमर 2020: पहला चरण महागठबंधन के लिए बड़ा चैलेंज, दांव पर आधी से ज्यादा सीटें

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Published : Oct 26, 2020, 7:00 PM IST

आगामी 28 अक्टूबर को पहले चरण का मतदान होना है. इस दौरान राज्य के 16 जिलों की 71 सीटों पर वोट डाले जाएंगे.

महागठबंधन
महागठबंधन

पटना: बिहार विधान सभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 28 अक्टूबर को होगा. जिन 71 सीटों पर पहले चरण में वोटिंग होनी है. उनमें से आधे से ज्यादा विधानसभा सीटों पर वर्तमान में महागठबंधन के उम्मीदवारों का कब्जा है. ऐसे में बड़ा चैलेंज राजद कांग्रेस के लिए है कि वह इन सभी सीटों को कैसे दोबारा जीत पाते हैं.

पिछली बार एक साथ चुनाव लड़े जदयू, राजद और कांग्रेस ने 52 सीटों पर कब्जा जमाया था. इस बार जदयू और बीजेपी एक साथ हैं और इधर कांग्रेस राजद एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं. राजद ने पिछली बार पहले चरण की 27 सीटों पर जबकि कांग्रेस ने पहले चरण की 9 सीटों पर जीत हासिल की थी.

महागठबंधन की ज्यादा सीटें दांव पर
ऐसे में जाहिर तौर पर सबसे ज्यादा दबाव राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पर है कि कैसे इन सीटों को दोबारा जीतें और इसके अलावा बाकी सीटों पर भी बढ़त हासिल करें. पहले चरण में भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर के अलावा औरंगाबाद, गया, नवादा, जमुई, बांका, लखीसराय, शेखपुरा भागलपुर और मुंगेर के अलावा पटना की 5 विधानसभा सीटों पर भी मतदान होना है. पटना की 5 विधानसभा सीटों में से बाढ़ पर बीजेपी जबकि पालीगंज और मसौढ़ी पर राजद प्रत्याशी ने पिछली बार जीत दर्ज की थी. वहीं मोकामा से निर्दलीय अनंत सिंह जबकि बिक्रम से कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ वर्तमान विधायक हैं. ऐसे में पहले चरण की पटना की पांच में से चार मोकामा, मसौढ़ी, विक्रम और पालीगंज सीटों पर जीत के लिए ज्यादा दबाव महागठबंधन के दलों पर ही है.

इन सीटों पर सबकी नजर
कुछ बड़ी सीटें जिन पर पहले चरण में महागठबंधन के उम्मीदवारों पर सबसे ज्यादा दबाव है उनमें मुंगेर, आरा, सासाराम, जहानाबाद, नवादा, जमुई, बेलागंज, बक्सर, भभुआ, लखीसराय, बांका, कहलगांव, रामगढ़, औरंगाबाद, अरवल और इमामगंज शामिल है. कुल मिलाकर पहले चरण में जीत का ज्यादा दबाव राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पर है क्योंकि 71 में से 36 सीटों पर इनके उम्मीदवार पिछली बार चुनाव जीते थे. इस बार रोजगार के मुद्दे पर अब तक एनडीए से लीड की स्थिति में दिख रहे महागठबंधन प्रत्याशियों के लिए फिर भी अपने वर्तमान सीटों को बचाने के साथ-साथ और ज्यादा सीटें जीतने का भी दबाव है.

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