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Mission 2024: महागठबंधन और NDA के बीच होगी कांटे की टक्कर, पहली बार लालू-नीतीश साथ लड़ेंगे चुनाव

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Published : Aug 8, 2023, 7:52 PM IST

Updated : Aug 8, 2023, 8:52 PM IST

मिशन 2024 को लेकर सियासी दलों ने तैयारी शुरू कर दी है. एक तरफ एनडीए अपने कुनबे को बड़ा करने में लगा है और अब इसमें पांच घटक दल शामिल हो चुके हैं. वहीं महागठबंधन भी विपक्षी एकता की बैठक कर अपनी ताकत बढ़ा रहा है. जानें बिहार में किस दल के पास कितना समर्थन है और इस बार बिहार की 40 लोकसभा सीटों की जंग कितनी दिलचस्प होगी.

2024 close fight between NDA and mahagathbandhan
2024 close fight between NDA and mahagathbandhan

बिहार में 40 सीटों की जंग होगी दिलचस्प

पटना: बिहार में महागठबंधन में एक तरफ जहां 6 दल हैं तो वहीं NDA में भी 5 दल हो गए हैं. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं और दोनों तरफ से सभी सीटों पर जीत का दावा हो रहा है. महागठबंधन और एनडीए के घटक दलों के वोट बैंक के हिसाब से देखें तो लड़ाई कांटे की होने का अंदेशा है. लालू-नीतीश पहली बार लोकसभा चुनाव में एक साथ होंगे. अब तक लोकसभा चुनाव में नीतीश एनडीए के साथ जब भी रहे हैं, एनडीए का पलड़ा हमेशा भारी रहा है.

पढ़ें- Mission 2024 : अमित शाह की बिहार पर नजर.. लालू-नीतीश की जोड़ी से पार पाना नहीं होगा आसान

महागठबंधन की स्थिति: बिहार में महागठबंधन में जहां आरजेडी, जदयू और कांग्रेस प्रमुख दल हैं तो उसके अलावा सीपीआई, सीपीआईएम और सीपीआईएमएल तीनों वामपंथी दल भी महागठबंधन के साथ हैं. हालांकि सरकार में आरजेडी कांग्रेस और जदयू शामिल हैं. वामपंथी दल बाहर से समर्थन दे रहे हैं. आरजेडी महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है और इनके 79 विधायक हैं जबकि जदयू के 45 विधायक और लोकसभा में 16 सांसद हैं. कांग्रेस के 19 विधायक और लोकसभा में एक सांसद हैं.

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नीतीश कुमार की मजबूत पकड़ का होगा असर!: वहीं वामपंथी दलों की बात करें तो माले के 12 और सीपीआई-सीपीआईएम के दो-दो विधायक हैं. इस प्रकार से वामपंथी दलों के कुल 16 विधायक हैं. जहां तक वोट बैंक की बात है तो महागठबंधन खेमे में आरजेडी का मुस्लिम यादव समीकरण लंबे समय तक चर्चा में रहा है, वहीं नीतीश कुमार का लव-कुश समीकरण भी रहा है. जिसके बूते नीतीश बिहार के लगातार मुख्यमंत्री बने हुए हैं. जबकि वामपंथी दलों का गरीब तबका में और मुस्लिमों में अपनी पकड़ है. वहीं बीजेपी नेताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है.

"बिहार में तो आरजेडी का पिछली बार खाता भी नहीं खुला था और 2014 में जब नीतीश कुमार अलग लड़े थे तो उन्हें केवल 2 सीट मिली थी. 2019 में नीतीश कुमार हम लोगों के साथ थे इसलिए उनको कई सीटों का लाभ हो गया, लेकिन इस बार उनका खाता नहीं खुलने वाला है. लोगों को नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही भरोसा है. नरेंद्र मोदी और बीजेपी का कोई मुकाबला नहीं है. कहीं कोई टक्कर नहीं है."- संजय टाइगर, बीजेपी प्रवक्ता

NDA की बिहार में दलगत स्थिति: दूसरी तरफ एनडीए की बात करें तो अभी एनडीए में बीजेपी, हम, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी और लोजपा के दोनों घटक दल शामिल हैं. बीजेपी के 78 विधायक हैं और लोकसभा में 17 सांसद हैं. वहीं हम के 4 विधायक हैं. लोजपा के दोनों घटक मिलाकर लोकसभा में 6 सांसद हैं. राजनीतिक विशेषज्ञ रवि उपाध्याय का कहना है बिहार में सब कुछ जातीय समीकरण के हिसाब से फिट बैठाया जाता है.

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"टिकट बंटवारे से लेकर उम्मीदवार के चयन तक सब जातीय समीकरण के आधार पर तय होता है. ऐसे में बिहार में एक तरफ महागठबंधन जो अभी इंडिया है, दूसरी तरफ एनडीए के बीच जातीय वोट बैंक समीकरण के कारण मुकाबला दिलचस्प होने वाला है और लड़ाई कांटे की होगी."- रवि उपाध्याय, राजनीतिक विशेषज्ञ

नीतीश को उठाना पड़ सकता है नुकसान?: जहां तक वोट बैंक की बात है तो बीजेपी अपर कास्ट के अधिकांश वोट बैंक पर अपनी दावेदारी करती है. पिछड़ा वर्ग में भी अपनी पैठ बढ़ाई है. वहीं जीतन राम मांझी की पार्टी हम और लोजपा के दोनों घटक दल बिहार के दलित वोट बैंक पर दावेदारी कर रहे हैं. जदयू से निकलकर एनडीए में शामिल होने वाले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी कुशवाहा वोट बैंक पर अपनी दावेदारी कर रही है. उपेंद्र कुशवाहा के कारण नीतीश कुमार का लव-कुश समीकरण बिखर रहा है और इसका नुकसान इस बार नीतीश कुमार को हो सकता है.

किस पार्टी का कितना है वोट बैंक?: बिहार में यादव वोट 14% के करीब है, जिस पर आरजेडी अपना दावा करती रही है और वोट मिलता भी रहा है. वहीं मुस्लिम वोट 15% के करीब है. महागठबंधन की तरफ से मुस्लिम वोट बैंक पर दावेदारी हो रही है. इसके साथ कुर्मी 3% वोट बैंक नीतीश कुमार के साथ हैं. कुशवाहा के 6% वोट बैंक में भी नीतीश कुमार कुछ लेने का कोशिश करेंगे और इसीलिए नीतीश कुमार ने कुशवाहा नेता ( उमेश कुशवाह) को ही प्रदेश अध्यक्ष बना कर रखा है.

एनडीए का बिहार में जनाधार: जहां तक 15% अपर कास्ट वोट बैंक की बात है तो उसमें से अधिकांश पर बीजेपी दावेदारी कर रही है, लेकिन महागठबंधन भी अपरकास्ट वोट मिले इसके लिए लगातार कोशिश करती रही है. इसीलिए कांग्रेस राजद ने अपना प्रदेश अध्यक्ष अपर कास्ट से आने वाले नेताओं को ही बना रखा है. जबकि जदयू ने राष्ट्रीय अध्यक्ष अपर कास्ट से आने वाले नेता को बनाया है. इसके साथ 16 प्रतिशत दलित वोट बैंक पर जीतन राम मांझी, चिराग पासवान और पशुपति पारस गुट दावा कर रहा है, जिसका फायदा एनडीए को मिलेगा.

अति पिछड़ा वोट बैंक पर सभी की नजर: वामपंथी दल जरूर कुछ दलित वोट बैंक अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में काटेंगे. उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए में आने से कुशवाहा वोट बैंक का बड़ा हिस्सा एनडीए को मिल सकता है, लेकिन सबकी नजर अति पिछड़ा वोट बैंक पर है. जिस पर एक तरफ आरजेडी-जेडीयू की दावेदारी हो रही है. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी भी दावा कर रही है. ऐसे में जिसके पाले में अति पिछड़ा वोट अधिक जाएगा, पलड़ा उसी का भारी रहेगा. वहीं जदयू को जहां नीतीश कुमार के चेहरे पर भरोसा है तो आरजेडी को लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के चेहरे पर विश्वास है.

"बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में 2024 के चुनाव में महागठबंधन जीत हासिल करेगा. महागठबंधन बिहार में जिस प्रकार से मजबूत है एकजुट है भाजपा खेमे में अभी से बेचैनी है."- लेसी सिंह, मंत्री, बिहार सरकार

पहली बार नीतीश-लालू लड़ेंगे साथ: लोकसभा चुनाव में पहली बार नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव एक साथ होंगे क्योंकि इससे पहले नीतीश कुमार हमेशा एनडीए के साथ लोकसभा का चुनाव लड़ते रहे हैं और एनडीए को जबरदस्त जीत दिलाते रहे हैं. 2014 में नीतीश कुमार अकेले चुनाव लड़े थे जिसमें उन्हें केवल 2 सीटें मिली थीं. अभी आरजेडी का एक भी लोकसभा सांसद नहीं है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में नीतीश कुमार एनडीए में थे.

बिहार में ये तिकड़ी निभाएगी अहम रोल: एनडीए ने 40 में से 39 सीट पर जीत हासिल किया था. एक सीट केवल कांग्रेस को मिला था. महागठबंधन खेमे को 2015 विधानसभा चुनाव में मिली जीत की तरह ही इस बार भी जीत की उम्मीद है. लेकिन लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का चेहरा होगा और एनडीए के साथ नीतीश कुमार भले ही नहीं होंगे लेकिन उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और चिराग पासवान जरूर होंगे. ऐसे में लड़ाई दिलचस्प बनती दिख रही है.

VIP बढ़ सकती है मुश्किलें: बिहार में लोकसभा चुनाव में लड़ाई महागठबंधन और एनडीए के बीच ही होना है, लेकिन ओवैसी की एआईएमआईएम, मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी और मायावती की बसपा भी कई सीटों पर इन दोनों की मुश्किलें बढ़ाएंगी. अभी बिहार में जो स्थिति बन रही है, तीनों दल के किसी भी गठबंधन में शामिल होने की अब संभावना कम है. ऐसे बीजेपी वीआईपी को अभी भी मनाने में लगी है, लेकिन वीआईपी की डिमांड इतनी अधिक है कि बीजेपी के लिए उसे पूरा करना आसान नहीं होगा. सीट शेयरिंग और कुछ राज्यों में गठबंधन और निषाद आरक्षण पर ठोस आश्वासन की वीआईपी मांग पर अड़ी है.

कांटे की होगी टक्कर: वहीं सीमांचल इलाके में एआईएमआईएम मुस्लिम वोट को लेकर महागठबंधन के लिए चुनौती बनेगा तो मुकेश सहनी 6% सहनी वोट बैंक के कारण कई सीटों पर महागठबंधन और एनडीए दोनों के लिए मुसीबत बनेंगे. ऐसे में कुल मिलाकर देखें तो बिहार में 40 सीटों की लड़ाई दिलचस्प होने वाली है.

Last Updated : Aug 8, 2023, 8:52 PM IST
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