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Durga Puja 2022: नवरात्र के चौथे दिन होती है मां कूष्मांडा की पूजा, जानिए विधि-विधान

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Published : Sep 29, 2022, 6:01 AM IST

मां कूष्मांडा
मां कूष्मांडा

नवरात्रि का त्योहार (Festival of Navratri) 26 सितंबर से शुरू है. नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों के पूजन का विधान है. वहीं, आज चौथे दिन मां दुर्गा के कूष्मांडा रूप का पूजन होता है. आइये जानते हैं माता कूष्मांडा के पूजन का विधि-विधान और मंत्र.

पटना: शारदीय नवरात्रि (Sharadiya Navratri In Patna) के नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने का विधान है. मां दुर्गा की चौथे शक्ति का नाम कूष्मांडा है. माता कूष्मांडा का स्वरूप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी है. नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा की आराधना की जाती है. नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरुपों की पूजा करने का विधान है.

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मां कुष्‍मांडा का स्‍वरूप: मां कुष्‍मांडा की आठ भुजाएं हैं, इसलिए उन्‍हें अष्‍टभुजा भी कहते हैं. जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी. इसीलिए इन्‍हें सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है. इनके सात हाथों में कमण्‍डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्‍प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा और आठवें हाथ में जप माला है. मां कुष्‍मांडा का वाहन सिंह है.

मां कुष्‍मांडा की पूजा विधि: सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवता की पूजा करनी चाहिए. उसके बाद माता के साथ अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए. इसके बाद माता कूष्मांडा की पूरी विधि विधान से पूजा करनी चाहिए. पूजा शुरू करने से पूर्व हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करना चाहिए. इसके बाद व्रत पूजन का संकल्प लेना चाहिए और वैदिक और सप्तशती मंत्रो से मां कूष्मांडा सहित समस्त देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए.

सूर्य है इनका निवास स्थान: मां के इस रुप को लेकर मान्यता है कि इन्होंने ही इस संसार की रचना की है. इन्हे दुखों को हरने वाली मां कहा जाता है. सूर्य इनका निवास स्थान माना जाता है. इसलिए माता के इस स्वरुप के पीछे सूर्य का तेज दर्शाया जाता है. इनके आठ हाथ है और इनकी सवारी सिंह है. मां कुष्‍मांडा की पूजा करने से मन का डर और भय दूर होता है और जीवन में सफलता प्राप्‍त होती है.

"आज माता कूष्मांडा का पूजन होगी. कूष्मांडा माता श्रृष्टी को रचने वाली है. पूरे श्रृष्टी जब लय हो गई थी, ये आदी शक्ति के रूप में माता कूष्मांडा पूरे पृथ्वी की रचना की है और ये सूर्य की क्रांति पूरे तरह समाहित है. इनका घर सूर्य के ऊपर है और आज के दिन माता को विभिन्न प्रकार के नैवेद्य, फल फूल से पूजन करें. मालपूआ का भोग लगाना सर्वश्रेष्ट होता है. इनके पूजन से मनुष्य का कल्याण होता है. माता उनको अभय वरदान देती है."- रामाशंकर दूबे, आचार्य

माता का भक्तों पर प्रभाव: माता की उपासना से भक्तों के समस्त रोग शोक मिट जाते हैं. माता की भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है. मां कुष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली माता हैं. यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाता है, तो फिर उसे आसानी से परम पद की प्राप्ति होती है. माता की पूजा आराधना करने से तप, बल, ज्ञान और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. माता कूष्मांडा की पूजा करने से साधकों को उचित फल की प्राप्ति होती है.

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