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बिखर गया रामविलास पासवान का 'बंगला', बेटे और भाई की लड़ाई में बंट गई LJP की राजनीति

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Published : Oct 5, 2021, 8:10 PM IST

चाचा भतीजा की लड़ाई में रामविलास पासवान का बंगला टूट गया. राजनीतिक गलियारे में अब इस बात की चर्चा हो रही है कि बंगला तो रहा नहीं तो जनता किस पर भरोसा करेगी. रामविलास की राजनीति से अलग चिराग पासवान और पशुपति पारस की राजनीति पर भरोसा करना जनता के लिए क्या आसान होगा. पढ़ें पूरी खबर

ljp divided into two parts
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पटना: चाचा भतीजे की लड़ाई में रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की आत्मा वाली लोजपा दो गुटों में बट गई. बिहार में होने वाले 2 सीटों के उपचुनाव सहित पूरे देश के 30 सीटों पर हो रहे विधानसभा के उपचुनाव और लोकसभा की सीटों के लिए निर्वाचन आयोग ने लोजपा (Lok Janshakti Party) के दोनों दावेदारों चिराग पासवान (Chirag Paswan) और पशुपति पारस (Pashupati Paras) को अलग-अलग चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिया है.

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चिराग पासवान की पार्टी को लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) नाम दे दिया गया जबकि पशुपति पारस को राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी का नाम दे दिया गया. 8 अक्टूबर को लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान की पहली पुण्यतिथि है. लेकिन श्रद्धांजलि देने के नाम पर चाचा भतीजे ने पार्टी के लिए जो पुण्य काम किया है, वह निश्चित तौर पर रामविलास पासवान के लिए इससे बेहतर श्रद्धांजलि कुछ हो भी नहीं सकती.

बिहार विधानसभा की 2 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर चिराग पासवान ने ऐलान कर दिया कि वह चुनाव लड़ेंगे. पार्टी की बैठकें भी भी शुरू हो गईं हैं. माना जा रहा था कि चिराग पासवान लोजपा का सिंबल बंगला लोजपा से जारी करेंगे. इस चीज को लेकर के पशुपति पारस ने निर्वाचन आयोग में शिकायत की थी.

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अब निर्वाचन आयोग ने इस चुनाव के लिए दोनों लोगों को अलग-अलग चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिया है. चिराग पासवान को हेलीकॉप्टर दे दिया गया और सियासत में चर्चा शुरू हो गई की हवा में उड़ रहे थे तो हेलीकॉप्टर में बैठकर चले. लेकिन सवाल यह भी उठ रहा है कि रामविलास पासवान कहां चले गए.

रामविलास पासवान की राजनीति में एक चीज जो सबसे ज्यादा चर्चा में रहती थी, वह परिवार की राजनीति थी. रामविलास पासवान पूरे परिवार को राजनीति में लाए, अपने वोट बैंक से उन्हें सदनों में ले जाकर बैठा दिए. समय की नजाकत और राजनीति की जरूरत को रामविलास पासवान बेहतर तरीके से समझते थे. कई बार इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा. लालू सैनी के नेता रामविलास पासवान को राजनीत का मौसम वैज्ञानिक तक कहने लगे. लेकिन रामविलास पासवान के जो उत्तराधिकारी थे, उन्होंने राजनीति के मौसम विज्ञान को नहीं समझा. अहंकार और दूसरे तरीके के ज्ञान को जगह देते हुए सभी इस कदर उलझे कि रामविलास के उम्मीदों की लोजपा बंट गई.

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2020 का विधानसभा चुनाव लोजपा के लिए काफी अहम इसलिए था क्योंकि चिराग पासवान लगातार यह दावा करते थे कि लोजपा का वोट बैंक बड़ा है. लोजपा के इस दावे की वजह बिहार विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद जिस परिणाम को तय करने की तैयारी थी वह तो नहीं आई. लेकिन लोजपा जिस चुनावी परिणाम की तरफ चल दी है उसका परिणाम बहुत बेहतर नहीं आएगा, क्योंकि जिस वोट बैंक के बढ़ने का दावा लगातार चिराग पासवान करते रहे, अब वह दो भाग में बंट गया है.

चिराग पासवान निश्चित तौर पर उस नाम के साथ सियासत में जाएंगे जो निर्वाचन आयोग ने उनके साथ रामविलास को जोड़ दिया है. लेकिन पशुपति पारस चुनाव मैदान में इसलिए भी नहीं जाएंगे क्योंकि उन्होंने अपने को एनडीए का हिस्सा बना दिया है. ऐसी स्थिति में जो वोट बैंक लोजपा के साथ था. वह दो भागों में चला गया है और चिराग पासवान रामविलास के साथ किस वोट बैंक को कितना जोड़ पाते हैं यह सबसे अहम बात होगी. इसकी पहली परीक्षा भी 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव से तय हो जाएगी.

2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव को लेकर कई राजनीतिक समीक्षकों का यह मानना है कि जिन स्थितियों में अभी चिराग पासवान हैं और पार्टी की जो हालत है, उस आधार पर इस बार चुनाव मैदान में उन्हें नहीं जाना चाहिए. क्योंकि अपने पिता को श्रद्धांजलि देना, परिवार को संभालना, चाचा के साथ निपटने की पूरी कहानी अभी चल रही है. ऐसे में चुनाव में जाकर अगर पार्टी बेहतर नहीं कर पाती है तो चिराग पासवान की बची खुची सियासत भी मटिया मेट हो जाएगी.

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चिराग के सलाहकारों का यह मानना है कि पार्टी है तो चुनाव में भी होनी चाहिए और चुनाव लड़ना हर पार्टी का अधिकार है. सवाल यह उठता है कि जिस वोट बैंक को बढ़ाने की बात चिराग पासवान लगातार करते रहे हैं, उसमें इन दोनों सीटों पर चिराग पासवान की पार्टी की स्थिति क्या है. क्योंकि रामविलास अब सिर्फ चिराग के ही नहीं रहे. निर्वाचन आयोग ने यह कह दिया कि रामविलास पासवान की पार्टी पशुपति पारस की भी है और चिराग पासवान की भी है.

तो ऐसे में रामविलास पासवान किसके हैं. यह तय कर पाना मुश्किल है. क्योंकि जो लोग रामविलास पासवान के थे अब वो तय नहीं कर पा रहे कि चिराग के हों या पशुपति पारस के. अब 2 सीटों पर हो रहा विधानसभा का उपचुनाव इस बात का जवाब तो दे ही देगा कि चिराग पासवान की जो मनसा है और पशुपति पारस जो चाहते हैं इन दोनों लोगों की लड़ाई के बीच रामविलास को चाहने वाली जनता ने क्या उत्तर दिया है.

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