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RCP सिंह तो बहाना है... सीएम नीतीश के वोट बैंक पर है भाजपा की नजर..

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Published : Aug 19, 2022, 7:35 PM IST

RCP Singh Can Challenge CM Nitish From Nalanda
RCP Singh Can Challenge CM Nitish From Nalanda

पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने बीजेपी में जाने के संकेत दिए हैं. ऐसे में जानिए कि कैसे सिंह बीजेपी के लिए बिहार की राजनीति वैतरणी पार लगाने का जरिया बन सकते हैं. पढ़ें यह खास रिपोर्ट..

पटना: जदयू छोड़ने के बाद यह कयास लगाए जा रहे थे कि जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह (Former Union Minister RCP Singh) बीजेपी के साथ ही जाएंगे. बीजेपी में शामिल होने के आरसीपी सिंह ने संकेत भी दिए हैं. वहीं आरसीपी सिंह के नालंदा (RCP Singh Can Challenge CM Nitish From Nalanda) से लोकसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी की भी खबर है. ऐसे में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार (CM Nitish kumar) को उनके गृह जिले में ही आरसीपी सिंह चुनौती देने वाले हैं. वहीं महागठबंधन के लिए भी आरसीपी परेशानी पैदा कर सकते हैं. बीजेपी आरसीपी सिंह को नीतीश कुमार के मुकाबले कुर्मी नेता के रूप में बिहार में प्रोजेक्ट कर सकती है.

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सीएम नीतीश को चुनौती दे सकते हैं आरसीपी सिंह

नालंदा से सीएम नीतीश को चुनौती दे सकते हैं आरसीपी सिंह : आरसीपी सिंह जदयू के कद्दावर नेता माने जाते हैं. एक समय था जब नीतीश कुमार के बाद दो नंबर कुर्सी के दावेदार भी थे लेकिन केंद्र में मंत्री बनने के बाद से जदयू पर उनकी पकड़ कमजोर होती गई. ललन सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से उन्हें पार्टी में हाशिए पर पहुंचा दिया गया. राज्यसभा का भी टिकट नहीं दिया गया और पटना में जो आवास की सुविधा मिली थी वह भी छीन ली गयी. ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी आरसीपी सिंह को नीतीश के वोट बैंक में सेंधमारी के लिए पार्टी में अहम रोल दे सकती है. साथ ही आरसीपी सिंह नीतीश को उनके गृह जिले नालंदा में ही टक्कर देने की तैयारी में हैं.

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सीएम नीतीश के वोट पर बीजेपी की नजर: आरसीपी सिंह से जमीन को लेकर भी पार्टी की ओर से जवाब मांगा गया और इसके बाद उन्होंने जदयू से त्यागपत्र दे दिया. राजनीतिक उथल पुथल के बीच कुछ समय आरसीपी सिंह ने अपना समय अपने पैतृक गांव में बिताया. लेकिन बीते कुछ दिनों से वह राजनीति में सक्रिय हो गए हैं. लगातार बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों में भ्रमण भी कर रहे हैं. 18 अगस्त को हाजीपुर, सोनपुर, छपरा, गोपालगंज कई जगह कार्यकर्ताओं से मुलाकात की. कार्यकर्ताओं ने भी उनका गर्मजोशी से स्वागत किया.

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बीजेपी के लिए आरसीपी क्यों हैं जरूरी?: आरसीपी सिंह के बीजेपी में शामिल होने के संकेत के साथ ही एक बार फिर से बयानबाजियों का दौर चल पड़ा है. उसके बाद से राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा हो रही है कि आरसीपी सिंह, नीतीश कुमार और महागठबंधन को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं. बीजेपी में अभी तक कुर्मी जाति से कोई बड़ा चेहरा नहीं है. ऐसे में आरसीपी सिंह के बीजेपी में जाने से एक चेहरा पार्टी को मिल जाएगा.

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"आरसीपी सिंह पार्टी को बूथ स्तर तक ले गए हैं. पार्टी को खड़ा करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. यह बात भी सही है कि नीतीश कुमार का कुर्मी वोट पर एकाधिकार रहा है लेकिन आरसीपी सिंह स्व जातीय वोट पर सेंध लगा सके हैं. उनको जिस तरह से जदयू में ट्रीट किया गया है उसके कारण सिंपैथी भी है. इसके कारण जदयू और महागठबंधन को बड़ा डैमेज कर सकते हैं."- रवि उपाध्याय, राजनीतिक विशेषज्ञ

"आरसीपी सिंह जब जदयू में थे तो राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे, पार्टी के रणनीतिकार रहे, उनके हटने के बाद जदयू का नेस्तनाबूद होना तय है. आरसीपी सिंह पर्दे के पीछे से पार्टी की रणनीति तैयार करते थे. जब रणनीतिकार ही नहीं रहे तो जदयू का धीरे-धीरे समाप्त होना तय है. पार्टी के वरिष्ठ नेता तय करेंगे कि आरसीपी सिंह किस भूमिका में रहेंगे."- प्रेम रंजन पटेल, बीजेपी प्रवक्ता

"जदयू में वे बीजेपी के एजेंट के रूप में काम कर रहे थे. बरबीघा में पार्टी के कैंडिडेट सुदर्शन के खिलाफ उन्होंने वहां के प्रभारी को इंडिपेंडेंट उतार दिया था इसका उदाहरण है. 12000 कुर्मी वोट काट लिया लेकिन आरसीपी सिंह बीजेपी में जाकर पार्टी को कोई नुकसान नहीं कर सकते हैं क्योंकि यहां नीतीश कुमार पर ही सब लोग विश्वास करते हैं. नीतीश कुमार ने अपने काम की बदौलत अपनी पहचान बनाई है."- अशोक चौधरी, भवन निर्माण मंत्री,बिहार

"आरसीपी सिंह के जाने से कोई नुकसान नहीं होगा. पार्टी में थे तभी नुकसान हो रहा था. अब कोई नुकसान का खतरा नहीं है."- उमेश कुशवाहा, जदयू प्रदेश अध्यक्ष

कुशवाहा वोट बैंक पर नजर: बिहार में लव कुश समीकरण के सहारे ही नीतीश कुमार ने बीजेपी की मदद से लालू प्रसाद यादव को बिहार की राजनीति में हाशिए पर पहुंचाया था. बीजेपी में कुशवाहा नेता सम्राट चौधरी ने पिछले दिनों सम्राट अशोक की जयंती पर बड़ा कार्यक्रम भी किया था, जिसमें पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी शामिल हुए थे. लेकिन कुर्मी जाति से आने वाला कोई बड़ा चेहरा बीजेपी में नहीं है.

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लव कुश वोट की अहमियत: आरसीपी सिंह जदयू में बड़े नेता के रूप में उभर रहे थे और इसी का लाभ बीजेपी को मिल सकता है क्योंकि बिहार में जाति आधारित राजनीति में आठ से 9% लव कुश वोट हैं. ओबीसी और ईबीसी का कुल वोट 52% है जिस पर भी नीतीश कुमार की अच्छी पकड़ है. बीजेपी पिछड़ा अति पिछड़ा वोट बैंक में सेंधमारी तो कर रही है लेकिन लव कुश वोट में बहुत अधिक सेंधमारी अब तक नहीं कर पाई है. लव कुश वोट बैंक हासिल करने में आरसीपी सिंह अब बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.

फिलहाल नीतीश कुमार के महागठबंधन के साथ जाने के कारण जातिगत समीकरण देखें तो महागठबंधन के पक्ष में पलड़ा भारी दिख रहा है. आरजेडी यादव और मुस्लिम जो लगभग 30% वोट है अपना दावा करती रही है. वहीं नीतीश कुमार 9% लव कुश वोट पर दावा करते रहे हैं. साथ ही पिछड़ा अति पिछड़ा वोट जो इनके अलावा है उसके बड़े हिस्से पर आरजेडी और जदयू की दावेदारी रही है. ऐसे में आरसीपी सिंह बीजेपी के लिए एक बड़े मददगार बन सकते हैं.

महागठबंधन को डैमेज करेंगे आरसीपी सिंह!: आरसीपी सिंह जदयू में लंबे समय तक संगठन का कामकाज देखते रहे हैं. टिकट बांटने से लेकर मंत्री बनाने तक में आरसीपी सिंह की भूमिका रह चुकी है. आरसीपी सिंह की शुरू से बीजेपी से नजदीकी देखने को मिली थी. अब अगर वे बीजेपी में शामिल होते हैं तो बीजेपी के साथ नालंदा में लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. नीतीश कुमार को उनके गृह क्षेत्र में ही बड़ी चुनौती देंगे. आरसीपी सिंह की पार्टी के पिछड़ा, अति पिछड़ा नेताओं पर भी अच्छी पकड़ है. जिसका लाभ बीजेपी को मिल सकता है. हालांकि नीतीश कुमार अब तक 3% से अधिक कुर्मी जाति के वोट पर एकछत्र राज करते रहे हैं. लेकिन अब देखना दिलचस्प होगा कि आरसीपी सिंह बीजेपी में शामिल होते हैं तो बीजेपी उन्हें किस भूमिका में रखती है. आरसीपी सिंह कितना वोट अपने माध्यम से बीजेपी को दिला पाते हैं और महागठबंधन को कितना डैमेज कर पाते हैं.

बिहार में जातियों की आबादी: बिहार में हिंदू की प्रमुख जातियों में अनुमानित आबादी में 17% सवर्ण जिसमें भूमिहार 4.7%, ब्राह्मण 5.7%, राजपूत 5.2% और कायस्थ 1.5 प्रतिशत है. वहीं 51% ओबीसी और 16.7% एससी/एसटी समुदाय के लोग हैं. इनमें प्रमुख रूप से यादव 14.4%, बनिया 8%, कुशवाह 6.4%, कुर्मी 4%, मल्लाह 5.2%, चमार 5.3%, दुसाध 5.1% और मुसहर 2.3% हैं.


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