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Anand Mohan: परोल पर निकले बाहुबली आनंद मोहन पर रिहाई को लेकर फंसा है पेंच

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Published : Feb 6, 2023, 8:06 PM IST

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पूर्व सांसद और बाहुबली नेता आनंद मोहन इन दिनों फिर सुर्खियों में हैं. बेटी के विवाह समारोह में शामिल होने के लिए आनंद मोहन को परोल मिली है. 15 दिनों के परोल पर आनंद मोहन जेल के बाहर हैं. लेकिन आनंद मोहन की रिहाई को लेकर राजनीतिक गलियारे में चर्चा आम है. आनंद मोहन की रिहाई में पेंच हैं.

आनंद मोहन की रिहाई की रिहाई में कहां फंसा है पेंच?

पटना : पूर्व सांसद और बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई को लेकर संशय की स्थिति बरकरार है. वीर कुंवर सिंह की जयंती समारोह के मौके पर समर्थकों ने रिहाई को लेकर नारेबाजी की तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी आश्वासन की घुट्टी पिलाई. फिलहाल बाहुबली नेता आनंद मोहन अपनी बेटी की शादी समारोह में शामिल होने के लिए 15 दिनों के पैरोल पर बाहर आए हैं.

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आनंद मोहन की बाहुबली छवि: 26 जनवरी 1956 को जन्मे आनंद मोहन की राजनीति में एंट्री जेपी आंदोलन के समय में हुई. उस वक्त आंदोलन में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई थी. 1993 में उन्होंने बिहार पीपुल्स पार्टी का गठन जनता दल से अलग होकर किया. बाद में उन्होंने समता पार्टी से हाथ मिला लिया. आनंद मोहन की पहचान कोसी क्षेत्र में बाहुबली नेता की थी. राजनीति में उनकी एंट्री साल 1990 में हुई और पहली बार वह सहरसा से विधायक चुने गए. आनंद मोहन जेल से ही 1996 में लोकसभा चुनाव समता पार्टी के टिकट पर लड़े और जीत भी हासिल की. दो बार आनंद मोहन को सांसद बनने का मौका मिला.

गोपालगंज के तत्कालीन डीएम की हत्या के दोषी: वर्ष 1994 में मुजफ्फरपुर में बाहुबली नेता छोटन सिंह की हत्या हुई. अंतिम संस्कार में शामिल होने वहां पहुंचे अंतिम यात्रा के दौरान गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णय्या लाल बत्ती की गाड़ी से गुजर रहे थे और वहां उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. आनंद मोहन के ऊपर हत्या का आरोप लगा और 2007 में निचली अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुना दी.

उम्रकैद में बदली आनंद मोहन के मौत की सजा: आनंद मोहन पहले ऐसे पूर्व सांसद और पूर्व विधायक रहते हुए जिन्हें कोर्ट के द्वारा मौत की सजा सुनाई गई. पटना हाईकोर्ट ने दिसंबर 2008 में मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी जुलाई 2012 में पटना उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा और आनंद मोहन आज भी जी कृष्णाया हत्याकांड में सजा भुगत रहे हैं.

15 साल की सजा काट चुके हैं आनंद मोहन: आपको बता दें कि आनंद मोहन को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. आनंद मोहन 15 साल की सजा काट चुके हैं और जो भी जेल के अंदर 14 साल की सजा काट चुका हैं तो सरकार अगर चाहे तो उन्हें राहत मिल सकती है . आनंद मोहन की रिहाई को लेकर कई कानूनी पेंच भी हैं. दरअसल जेल में बंद कैदियों को परिहार के तहत छूट मिलती है. उन्हें रिहा किया जाता है.

जेल से रिहाई का प्रवाधान, लेकिन अड़चनें भी: जेल अधिनियम 1893 के तहत परिहार को परिभाषित किया गया है. जिसके तहत जेल में कैदियों को उनके व्यवहार का आकलन करने और उसके परिणाम स्वरूप सजा को कम करने के लिए प्रावधान है. सीआरपीसी की जेल की सजा में छूट का प्रावधान करती है. धारा 432 के तहत सरकार किसी को पूरी तरह या आंशिक रूप से शर्तों के साथ या उसके बिना निलंबित या माफ कर सकती है. धारा 433 के साथ किसी भी सजा को सरकार द्वारा कम किया जा सकता है.

रिहाई में ये है पेंच : संविधान के जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कुशवाहा ने कहा है कि- ''सरकार को सजा को कम करने का अधिकार है. परिहार समिति के जरिए गृह विभाग को रिपोर्ट प्रेषित किया जाता है. उस आधार पर सरकार फैसले लेती है, लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं. जो अपराध समाज के खिलाफ और रेयरेस्ट ऑफ द रेयर अपराधिक घटना की श्रेणी में आते हैं. उसमें सरकार के पास सीमित अधिकार हैं, लेकिन सरकार अधिकार का उपयोग न्यायालय के सहमति से कर सकती है.'' वहीं, पूर्व आईपीएस अमिताभ कुमार दास का मानना है कि मेरी राय में आनंद मोहन जैसे व्यक्ति को सरकार को राहत नहीं देनी चाहिए.

''आनंद मोहन को पूर्व जिलाधिकारी जी कृष्णय्या के हत्या में आजीवन कारावास की सजा मिली है. बिहार सरकार को अधिकार है कि उनकी सजा को कम कर सकती है. लेकिन आपराधिक घटना आगर समाज विरोधी हो तो वैसे स्थिति में सरकार को भी परहेज करना चाहिए.''- अमिताभ दास, पूर्व आईपीएस

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