पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2024 में पीएम मोदी को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं. नीतीश गैर भाजपा शासित राज्यों का समर्थन हासिल करने में जुटे हैं. पिछड़े राज्यों को नीतीश अपने पक्ष में लाना चाहते हैं. जिसके चलते उनके हितों की बात की जा रही है. राजधानी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तेलंगाना के सीएम केसीआर के मंच से बिहार को स्पेशल स्टेटस के मुद्दे (Demand to give special status to Bihar) को एक बार फिर से जोर-शोर से उठाया है. अब सवाल उठता है कि क्या आगामी चुनाव में चुनावी मुद्दा बिहार को स्पेशल स्टेटस का दर्जा देने का बन सकता है.
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सीएम नीतीश ने उठाया स्पेशल स्टेटस का मुद्दा: तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (CM K Chandrashekhar Rao) भी स्पेशल स्टेटस की लड़ाई को लेकर लंबे समय से लड़ रहे हैं. तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने के समय स्पेशल स्टेटस को लेकर आश्वासन दिया गया था. इसके साथ ही बिहार विधानसभा से भी स्पेशल स्टेटस को लेकर सर्वसम्मती से प्रस्ताव केंद्र को भेजा जा चुका है. भाजपा से अलग होने के बाद सीएम नीतीश कुमार ने अपनी सियासत को अलग रंग देना शुरू कर दिया है.
1969 में पहली बार कुछ राज्यों को मिला था दर्जा: आपको बता दें कि विशेष राज्य का दर्जा देने की प्रथा की शुरुआत 1969 में शुरू की गई थी और उस समय असम, नागालैंड और जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था. आज की तारीख में देश के कुल 11 राज्यों के पास विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है. फिलहाल बिहार, उड़ीसा, तेलंगाना सहित कई राज्य स्पेशल स्टेटस की मांग कर रही है. नीतीश कुमार ने पिछड़े राज्यों के अनदेखी का मुद्दा भी उठाया है. सीएम नीतीश ने कहा कि राज्यों के केन्द्रांश में भी कटौती की जा रही है. साथ ही चुनाव में भी राज्य के हिस्सेदारी बढ़ा दी गई है.
केंद्र से मिलने वाली राशि में हुई कमी: सीएम नीतीश ने कहा है कि बदली हुई परिस्थितियों में राज्य को जीएसटी कंपनसेशन की राशि मिलने भी बंद हो गई है. 5 साल तक उपभोक्ता राज्यों को आठ हजार करोड़ सालाना मिलता था, जुलाई 2017 से जुलाई 2022 तक राशि मिली. केंद्र प्रायोजित योजनाओं में भी राज्यों के हिस्सेदारी बढ़ा दी गई है. मिसाल के तौर पर सर्व शिक्षा अभियान में यूपीए सरकार के समय केंद्र 75 प्रतिशत राशि देती थी और बिहार को 25 प्रतिशत देना होता था, लेकिन अब यह अनुपात बढ़कर 65 और 35 हो गया है.
घट गए कई फंड के पैसे: इसके अलावा नेशनल हेल्थ मिशन में पहले अनुपात 75 प्रतिश और 25 प्रतिशत का था, जो आज की तारीख में 60 और 40 प्रतिशत हो गया है. समेकित बाल विकास योजना में पहले अनुपात 75 प्रतिशत और 25 प्रतिशत का था, जो आज की तारीख में 60 और 40 प्रतिशत हो गया है. योजनाओं में राज्य अंक बढ़ने पर राज्यों के ऊपर दबाव बढ़ा है.
एक नजर डालते हैं केंद्र से बिहार को मिलने वाली राशि पर: 2016-17 में बिहार को 79440 करोड मिले थे. 2017 में 90804 करोड़ मिले. 2018-19 में 98255 करोड़ मिले. 2019-20 में 90375 करोड़ मिले और 2020-21 में 91625 करोड मिले. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि केंद्र सरकार को राज्यों के हितों की चिंता नहीं है और राज्यों के मिलने वाली राशि में लगातार कमी आ रही है. बिहार के पिछड़ेपन के लिए नीतीश कुमार ने केंद्र को दोषी ठहराया और कहा कि अगर बिहार को स्पेशल स्टेटस मिल गया होता तो आज हालात बेहतर होते.
बीजेपी ने नीतीश पर बोला हमला: बीजेपी प्रवक्ता संजय टाइगर ने कहा है कि बिहार में जो कुछ विकास दिख रहा है. वह केंद्र के सहयोग से है. केंद्र ने बिहार को स्पेशल पैकेज दिया लेकिन नीतीश कुमार अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए केंद्र पर दोषारोपण कर रहे हैं. भाजपा प्रवक्ता ने नीतीश पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में जाने के लिए मुद्दों की दरकार है और विशेष राज्य का दर्जा के मुद्दे को उठाकर वह राज्यों का समर्थन हासिल करना चाहते हैं. हालांकि, उन्हें कामयाबी मिलने वाली नहीं है.
"कल तक तो सबकुछ ठीक ठाक था. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश तरक्की कर रहा था ये बात नीतीश जी बोल रहे थे. अब गठबंधन से अलग हुए तो राज्यों के हित की चिंता आपको सताने लगी. केंद्र की सरकार ने पहले भी कहा है कि जबतक पिछले राज्य विकसित राज्यों के श्रेणी में नहीं आएंगे, तबतक देश तरक्की नहीं करेगा और उसके लिए केंद्र हर संभव सहायता उपलब्ध करा रही है. केंद्रीय करों में जो राज्यांश होता था उसको 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रितशत किया गया और पिछड़े राज्यों को अलग से सहायता दी जाती है. बिहार जैसे राज्य को अलग से पैकेज दिया गया. नीतीश कुमार अपनी क्षमता को छुपाने के लिए केंद्र पर आरोप लगा रहे हैं."- संजय टाइगर, प्रवक्ता, बीजेपी
राज्यों को अधिक आर्थिक सहायता की जरूरत: अर्थशास्त्री डॉ. अमित बक्सी का मानना है कि पिछड़े राज्यों को अधिक आर्थिक सहायता देने की दरकार है. जो राज्य तेजी से तरक्की कर रहे हैं उन्हें अगर अधिक सहायता मिलेगी तो वह और ज्यादा तरक्की करेंगे. लेकिन हाल के कुछ वर्षों में बिहार को केंद्र से मिलने वाली राशि में कमी आई है. साथ ही केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य की हिस्सेदारी भी बढ़ा दी गई है. उन्होंने कहा कि वित्त आयोग का भी कहना है कि पिछड़े राज्यों को अधिक सहयोग की जरूरत है.
विशेष राज्य के दर्जे को नीतीश ने बनाया हथियार: इस मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार कहते हैं कि 'स्पेशल स्टेटस को नीतिश कुमार ने राजनीतिक मुद्दा बना दिया है और वह अपनी सुविधा के हिसाब से मुद्दे को उठाते हैं और फिर ठंडे बस्ते में डाल देते हैं. हां यह जरूर है कि बिहार जैसे राज्यों को अतिरिक्त सहायता की जरूरत है. बगैर केंद्र के वित्तीय सहायता के बिहार का पिछड़ापन दूर नहीं हो सकता.