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Bihar Sports: 'बिहार में साइकिल ट्रैक नहीं है, दूसरे राज्यों में करनी पड़ती है ट्रेनिंग', साइकिलिस्ट बेटियों का दर्द

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Published : Mar 19, 2023, 6:52 PM IST

बिहार की बेटियां साइक साइकिलिंग में अव्वल है, लेकिन सरकार की ओर से सुविधाओं की कमी के कारण परेशानी हो रही है. राज्य में साइकिल ट्रैक नहीं होने से साइकिलिस्ट को दूसरे राज्य में जाकर ट्रेनिंग करनी होती है. खिलाड़ियों ने सरकार से इस ओर मदद करने की मांग की है. पढ़ें पूरी खबर...

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बिहार की बेटियां साइक साइकिलिंग में अव्वल

पटनाः बिहार के सीएम नीतीश कुमार कन्या उत्थान के माध्यम से लड़कियों को साइकिल उपलब्ध करा रहे हैं. शहर से लेकर के ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियां साइकिल (cycling in bihar) चला रही है. बिहार के छोटे-छोटे जिले से लड़कियां साइकलिंग कर प्रदेश का नाम रोशन कर रही हैं .कम संसाधनों में जिले की लड़कियां साइकिलिंग रेस में भाग ले रही हैं. राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचकर अपना नाम पहचान बना रही हैं .साथ ही साथ बिहार का भी नाम रोशन कर रही हैं.

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बिहार में रहकर तैयारी कर रही बेटियांः छपरा जिले की रहने वाली सुहानी के पिता एक किसान है. सुहानी शुरू से ही अपने जिले में रहकर पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ साइकिलिंग करना शुरू किया. सुहानी को साइकिलिंग जिला संघ का सपोर्ट मिला, जिससे वह आगे बढ़ी और वह धीरे-धीरे अपना नाम और पहचान के साथ बिहार का नाम रोशन कर रही हैं . उन्होंने बताया कि यह मेहनत का नतीजा है. मेहनत नहीं करते तो इस मुकाम तक नहीं पहुंचते.

30 किलोमीटर की रेस में गोल्डः छपरा जिले की सुहानी ने बताया कि महाराष्ट्र के नासिक में नेशनल रूट चैंपियनशिप सब जूनियर गर्ल्स में 30 किलोमीटर रोड रेस इवेंट में सबसे हाईएस्ट मेरा गोल्ड मेडल है. 2021 में हरियाणा में नेशनल हुआ था, जिसमें सिल्वर और ब्राउन मिला था. सुहानी ने बताया कि मैं जब शुरू दौर में साइकिलिंग अपने गांव में जब करती थी तो नॉर्मल साइकिल से ही साइकिलिंग करती थी. पिताजी के पास इतना पैसा नहीं था जिस कारण से महंगी साइकिल लेना मुश्किल था. लेकिन अब 2 लाख की साइकिल से रेसिंग करती हैं. साइकिलिंग रेसिंग के समय जो शूज पहना जाता है, उसकी कीमत 30 हजार रुपए होती है. हेलमेट कम से कम 10 हजार का आता है. सेफ्टी का ख्याल रखते हुए सभी कीट पहन कर चलाना होता है.

"मैंने खेलो इंडिया का ट्रायल दिया था, जिसमें मेरा सिलेक्शन हुआ था. जिसके बाद मुझे पटियाला साईं संस्था में ट्रेनिंग के दौरान साइकल जूता हेलमेट मिला. उन्होंने कहा कि दूसरे राज्यों में जिस तरह से खेल में जीतने के बाद सम्मान मिलता है. बिहार सरकार के तरफ से इतना सम्मान खिलाड़ियों को नहीं मिलता है. यहां खिलाड़ियो के लिए सुविधा की कमी है." -सुहानी कुमारी, साइकिलिस्ट, छपरा

2 साल से साइकिलिंग कर रही शालिनीः पूर्णिया की रहने वाली शालिनी कुमारी 2 साल से साइकिलिंग कर रही है. साइकल चलाने का अनुभव भी नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे सीखा और उसके बाद 2019 खेलो इंडिया में ट्रायल दिया था. 2020 में खेलो इंडिया के तहत सिलेक्शन हुआ. उसके बाद 2 साल वहां रहकर साइकिलिंग की ट्रेनिंग ली. पहले प्रयास में फोर्थ रैंक रहा. हालांकि 2022 में सफलता मिली. गुवाहाटी में साइकिलिंग लीग का आयोजन किया गया था, जिसमें 10 गोल्ड मेडल जीता.

"मैंने अच्छा प्रदर्शन किया, जिसका नतीजा है कि मुझे गोल्ड मिला. साइकिलिंग रेस में जो साइकिल आती है, वह महंगी आती है लेकिन मुझे किसी से सपोर्ट नहीं मिला तो मैंने खुद से डेढ़ लाख की साइकिल खरीदी .जिससे मैं साइकिलिंग रेस करती हूं. मेरे कामयाबी के पीछे मेरे घर परिवार का पूरा सपोर्ट है." -शालिनी कुमारी, साइकिलिस्ट, पूर्णिया

बिहार में सुविधाओं की कमीः सिवान की विनीता 3 साल से साइकिलिंग कर रही है. विनीता ने कहा कि हमने खेलो इंडिया में चयन के लिए ट्रायल दिया था, लेकिन चयन नहीं हो पाया. मैं बिहार में ही रह करके ट्रेनिंग करती हूं. बिहार सरकार से अपील है कि साइकलिंग ट्रेक की भी व्यवस्था की जाए तो हम लोगों को काफी मदद मिलेगी. गुवाहाटी में साइकिलिंग में मैं भाग ली थी, जिसमें मेरा नौ ब्रांच है.

"मेरा सपना है कि इंडिया टीम में जाएं. मेडल लाए और अपने घर परिवार के साथ-साथ अपने राज्य का नाम रोशन करे. बिहार सरकार से जितना सपोर्ट मिलना चाहिए उतना नहीं मिलता है. दूसरे राज्य में जिस तरह से खिलाड़ियों को सपोर्ट किया जाता है, उस तरह से बिहार सरकार नहीं करती है. बिहार में साइकलिंग ट्रैक नहीं होने के कारण दूसरे राज्यों में जाकर प्रैक्टिस करनी पड़ती है." -विनीता कुमारी, साइकिलिस्ट

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