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बोरो प्लेयर और लालू के 'यस मैन' हैं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह: BJP

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Published : Dec 6, 2022, 5:37 PM IST

बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह (Bihar Congress President Akhilesh Singh) को बनाया गया है. इसके साथ ही बिहार बीजेपी के लोगों की तीखी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है. बीजेपी ने उन्हें आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद का 'यस मैन' और बोरो प्लेयर बताया है. पढ़ें ब्यूरो चीफ अमित भेलारी की विस्तृत रिपोर्ट..

बिहार BJP का अखिलेश सिंह पर तंज
बिहार BJP का अखिलेश सिंह पर तंज

पटना: बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी (BPCC) के अध्यक्ष के रूप में अखिलेश प्रसाद सिंह की बनाया गया और बिहार बीजेपी ने उनके ऊपर तीखी प्रतिक्रिया भी दे दी है. विपक्षी दल बीजेपी ने अखिलेश पर हमला (Bihar BJP Attacks on Bihar Congress President ) करते हुए उन्हें आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद का 'यस मैन' और बोरो प्लेयर बताया है. जानकारों का मानना है कि कांग्रेस ने बिहार में आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए एक अपर कास्ट के नेता को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष नियुक्त कर अपना पुराना कार्ड खेला है.

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बीजेपी ने अखिलेश सिंह को बताया लालू यादव का 'यस मैन': बीजेपी प्रवक्ता अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि अखिलेश सिंह आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद के 'यस मैन' हैं. उनके भाग्य का फैसला 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव में होगा. वह आरजेडी से कितनी सीटों पर सौदेबाजी करने में सफल रहेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि वह बिहार में कांग्रेस को कैसे मजबूत कर पाएंगे.

उधार के खिलाड़ी को कांग्रेस ने बनाया अध्यक्षः बीजेपी के एक अन्य प्रवक्ता डॉ. निखिल आनंद ने अखिलेश को उन्हें बोरो प्लेयर कह कर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की है. ईटीवी से बात करते हुए निखिल आनंद ने कहा कि बिहार में कांग्रेस 1990 से आरजेडी की गोद में बैठकर अपना वजूद तलाश रही थी. 32 साल में बिहार कांग्रेस ने एक चक्र पूरा कर लिया है. जिस आदमी को आरजेडी ने नेता बनाया, वह अब 2022 में बिहार कांग्रेस का प्रेसिडेंट बन गया है. उधार के खिलाड़ी को अध्यक्ष बनाने के लिए बिहार कांग्रेस को बधाई.

"अखिलेश सिंह आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद के 'यस मैन' हैं. उनके भाग्य का फैसला 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव में होगा. वह आरजेडी से कितनी सीटों पर सौदेबाजी करने में सफल रहेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा'' - अरविंद कुमार सिंह, प्रवक्ता, बीजेपी


"उधार के खिलाड़ी को अध्यक्ष बनाने के लिए बिहार कांग्रेस को बधाई. बिहार में कांग्रेस 1990 से आरजेडी की गोद में बैठकर अपना वजूद तलाश रही थी. 32 साल में बिहार कांग्रेस ने एक चक्र पूरा कर लिया है. जिस आदमी को आरजेडी ने नेता बनाया, वह अब 2022 में बिहार कांग्रेस का प्रेसिडेंट बन गया है'' - निखिल आनंद, प्रवक्ता, बीजेपी

कांग्रेस से राज्यसभा सांसद हैं अखिलेश सिंहः सोमवार को कांग्रेस आलाकमान ने पत्र जारी कर अखिलेश सिंह को नया बीपीसीसी अध्यक्ष नियुक्त किया. पार्टी ने पुराने अध्यक्ष मदन मोहन झा के योगदान की भी सराहना की, जिन्होंने बहुत पहले इस्तीफा दे दिया था, तब से बिहार में यह पद खाली था. अखिलेश वर्तमान में राज्यसभा के सदस्य हैं जो 2018 में उच्च सदन के सदस्य के रूप में निर्विरोध चुने गए थे. पार्टी के वरिष्ठ नेता कैबिनेट में मंत्री होने के अलावा बिहार विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं. वह 2000 से 2004 तक अरवल सीट से बिहार विधान सभा के सदस्य थे.



अखिलेश आरजेडी से 2004 में बने थे एमपीः 2004 में ही अखिलेश मोतिहारी संसदीय सीट से आरजेडी की टिकट पर लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे. वह डॉ मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी थे. हालांकि, वह 2014 और 2019 में पूर्वी चंपारण और मुजफ्फरपुर सीट से कांग्रेस की टिकट पर लगातार दो लोकसभा चुनाव हार गए. वह 2015 के विधानसभा चुनाव में भी तरारी सीट से भाकपा माले के सुदामा प्रसाद से हार गए थे.

अखिलेश सिंह के बीपीसीसी अध्यक्ष बनने से असहज है बीजेपीः बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य और पार्टी के प्रवक्ता कुंतल कृष्णा ने बीजेपी के हमले पर तीखा पलटवार किया. कृष्णा ने ईटीवी भारत को बताया कि डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह बिहार की राजनीति के कद्दावर नेता हैं और बीजेपी असहज है. क्योंकि अब कांग्रेस ने बिहार में बीजेपी की कठपुतली प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के विपरीत उच्च जाति को सही प्रतिनिधित्व दिया है. उन्होंने आगे कहा कि बीजेपी ने हमेशा बिहार और विशेष रूप से बिहार में उच्च जाति को प्रतीकात्मक रूप से मूर्ख बनाया है, लेकिन कांग्रेस ने हमेशा बिहार के सभी वर्गों को उचित सम्मान दिया है. बिहार कांग्रेस प्रमुख के पद पर डॉ. अखिलेश सिंह की पदोन्नति ने सवर्णों के लिए कांग्रेस की प्रतिबद्धता को दोहराया है.

''डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह बिहार की राजनीति के कद्दावर नेता हैं और बीजेपी असहज है. क्योंकि अब कांग्रेस ने बिहार में बीजेपी की कठपुतली प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के विपरीत उच्च जाति को सही प्रतिनिधित्व दिया है. बीजेपी ने हमेशा बिहार और विशेष रूप से बिहार में उच्च जाति को प्रतीकात्मक रूप से मूर्ख बनाया है, लेकिन कांग्रेस ने हमेशा बिहार के सभी वर्गों को उचित सम्मान दिया है'' - कुंतल कृष्णा, प्रवक्ता, बिहार कांग्रेस

लंबे समय तक बिहार की सत्ता में रही है कांग्रेसः 1967 से 1972 के बीच कुछ अंतरालों को छोड़कर आजादी से लेकर 90 के दशक तक सवर्णों ने कांग्रेस के रूप में राज्य पर शासन किया. हालांकि, देर से ही सही, बिहार कांग्रेस में कई बदलाव किए गए और पार्टी ने न केवल सवर्णों बल्कि कई और जातियों को भी मौका देना शुरू कर दिया. दलित और मुसलमानों को भी. लेकिन एक बार फिर कांग्रेस ने अखिलेश को बीपीसीसी अध्यक्ष बनाकर अपना पुराना कार्ड खेला है.



बिहार की राजनीति में जाति समीकरण महत्वपूर्णः अखिलेश को बीपीसीसी अध्यक्ष बनाए जाने के कारण के बारे में पूछे जाने पर पटना स्थित राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ संजय कुमार ने ईटीवी भारत से कहा कि बिहार की राजनीति में जाति समीकरण हमेशा एक महत्वपूर्ण और प्रेरक शक्ति रही है. एक जाति जो राज्य में एक प्रमुख भूमिका निभाती है, वह है उच्च जाति, इसमें मुख्य रूप से ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार शामिल हैं. बिहार में उच्च जाति के मतदान के ट्रैक रिकॉर्ड को देखा जाए तो उन्होंने हमेशा बीजेपी और उसके सहयोगियों का समर्थन किया है.

हर दल ने सवर्णों के किसी एक समूह को शीर्ष पद दिया हैः संजय कुमार ने आगे कहा कि बिहार जिस तरह की सोशल इंजीनियरिंग से गुजरा है, उससे पता चला है कि हर राजनीतिक दल में एक ऊंची जाति के समूह को शीर्ष पद दिया गया है. संख्या में कम होने के बावजूद सवर्णों का बिहार की राजनीति में खासा दबदबा है. उनका दबदबा वाला रवैया है और मुखर भी हैं जो मतदाताओं पर भारी प्रभाव डालते हैं. यही कारण है कि कांग्रेस ने बिहार में लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए उन्हें बीपीसीसी अध्यक्ष नियुक्त करके पुराना कार्ड खेला है.

"बिहार की राजनीति में जाति समीकरण हमेशा एक महत्वपूर्ण और प्रेरक शक्ति रही है. एक जाति जो राज्य में एक प्रमुख भूमिका निभाती है, वह है उच्च जाति, इसमें मुख्य रूप से ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार शामिल हैं. बिहार में उच्च जाति के मतदान के ट्रैक रिकॉर्ड को देखा जाए तो उन्होंने हमेशा बीजेपी और उसके सहयोगियों का समर्थन किया है. संख्या में कम होने के बावजूद सवर्णों का बिहार की राजनीति में खासा दबदबा है. उनका दबदबा वाला रवैया है और मुखर भी हैं जो मतदाताओं पर भारी प्रभाव डालते हैं" - संजय कुमार, राजनीतिक विशेषज्ञ

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