JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद ललन सिंह के सामने ये है सबसे बड़ी चुनौती

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Published : Aug 1, 2021, 5:45 PM IST

ललन सिंह
ललन सिंह ()

जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के बाद ललन सिंह (Lalan Singh) के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखना है. आरसीपी सिंह (RCP Singh) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के बाद जो खेमेबाजी शुरू हुई थी, उन्हें उसे खत्म करना होगा. इसके अलावे एनडीए के घटक दलों के साथ तालमेल बिठाना पर भी उन्हें काम करना होगा. क्राइसिस मैनेजमेंट में माहिर जेडीयू अध्यक्ष के लिए वैसे ये बहुत मुश्किल काम नहीं होगा.

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के चेहते और सबसे भरोसेमंद ललन सिंह (Lalan Singh) दोहरी चुनौती के साथ जेडीयू के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष (JDU President) बने हैं. विधानसभा चुनाव 2020 में पार्टी के खराब परफॉर्मेंस के बाद नीतीश कुमार ने कई प्रयोग किए हैं. आरसीपी सिंह (RCP Singh) को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने और उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) को फिर से पार्टी में शामिल कराने के बाद पार्टी में खेमेबाजी भी दिख रही थी. ऐसे में ललन सिंह के लिए आरसीपी सिंह के साथ उपेंद्र कुशवाहा को एक साथ लाने की चुनौती तो होगी ही, दूसरी तरफ एनडीए घटक दलों और विशेषकर बीजेपी के साथ बेहतर तालमेल बने यह भी बड़ी चुनौती होगी.

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क्राइसिस मैनेजमेंट में 'मास्टर' ललन सिंह से नीतीश कुमार के साथ-साथ जेडीयू को ढेरों उम्मीदें हैं. हालांकि इससे पहले कई बार उन्होंने अपनी कुशल रणनीति के जरिए पार्टी को लाभ पहुंचाया है. आरजेडी-कांग्रेस और एलजेपी में तोड़फोड़ कर नीतीश कुमार के प्लान को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

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ललन सिंह ने अशोक चौधरी के साथ कांग्रेस के 4 विधान पार्षदों को तोड़ने में कामयाबी हासिल की थी. आरजेडी के भी 5 विधान पार्षदों को जेडीयू में शामिल कराने में भी अपना अहम रोल निभाया था. अभी हाल में चिराग पासवान को झटका देते हुए एलजेपी के 5 सांसदों को पशुपति पारस के नेतृत्व में अलग कराने में अहम किरदार बने थे.

ललन सिंह को आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव का धुर विरोधी माना जाता है. चारा घोटाले में लालू को मुश्किल में डालने के साथ-साथ साल 2017 में नीतीश कुमार को महागठबंधन से निकालकर दोबारा से एनडीए के साथ सरकार बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

वैसे तो ललन सिंह ने कई मौकों पर अपनी उपयोगिता साबित की है, लेकिन अब उनके कंधों पर पार्टी की खेमेबाजी दूर करने और राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने की बड़ी और कठिन जिम्मेवारी है. बिहार में जेडीयू को फिर से नंबर वन की पार्टी बनाने के लिए उन्हें मजबूत और बड़े कदम उठाने होंगे. उपेंद्र कुशवाहा के रहते ललन सिंह इस चुनौती को कैसे पूरा करेंगे, ये भी देखने वाली बात होगी.

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हालांकि जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि ललन ललन सिंह का नीतीश कुमार के साथ पुराना संबंध रहा है और पार्टी के गठन के शुरुआती समय से वे उनके साथ हैं. ललन सिंह में पूरी पार्टी को लेकर चलने की क्षमता है. ऐसे में उन्हें पूरा विश्वास है कि वे न केवल पार्टी में सभी को साथ लेकर चलेंगे, बल्कि पार्टी और संगठन को और मजबूत करेंगे.

"हर तरह से उनका जो अनुभव है, उसका लाभ पार्टी को मिलेगा. भारतीय जनता पार्टी से जो एलायंस है, उसमें भी एक कारगर भूमिका में जनता दल यूनाइटेड की ओर वकालत करने में वो सक्षम हैं"- उपेंद्र कुशवाहा, अध्यक्ष, जेडीयू संसदीय बोर्ड

वहीं, आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि अब नीतीश कुमार कुछ भी कर लें, जेडीयू में कभी खेमेबाजी खत्म होने वाली नहीं है. उन्होंने कहा कि ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने से भी पार्टी को कोई लाभ मिलने वाला नहीं है. जब नीतीश कुमार के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए जेडीयू तीन नंबर पर पहुंच गया तो ललन सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से भला क्या हो जाएगा.

"न तो जेडीयू में अब खेमेबाजी खत्म होने वाली है और न ही ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने से कोई फायदा होने वाला है. क्योंकि पार्टी तो अब समाप्ति की ओर है"- मृत्युंजय तिवारी, प्रवक्ता, आरजेडी

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ललन सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहते हैं कि नीतीश कुमार ने इस फैसले के जरिए न केवल सवर्ण वोट बैंक पर निशाना साधा है, बल्कि पार्टी में जारी खेमेबाजी को भी खत्म करने की कोशिश की है.

वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो. अजय झा का कहना है कि आरसीपी सिंह के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद से ही ललन सिंह को पार्टी में महत्वपूर्ण पद दिए जाने की पृष्ठभूमि तैयार हो गई थी. उनके लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष से अधिक कोई महत्वपूर्ण पद हो नहीं सकता था. ललन सिंह के माध्यम से नीतीश कुमार ने सवर्ण वोट बैंक को भी साधने की कोशिश की है. हालांकि चुनाव में अभी लंबा समय है, तब तक गंगा में कितना पानी बढ़ जाएगा.

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बात अगर ललन सिंह के सामने मौजूद चुनौतियों की करें तो इनमें सबसे अहम जेडीयू के अंदर खेमेबाजी को दूर करना है. सवर्ण वोट बैंक को जोड़ना, जेडीयू को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाना और सहयोगी बीजेपी के साथ बेहतर तालमेल स्थापित करना है. इसके अलावे यूपी सहित पांच राज्यों में जेडीयू की मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना भी उनका लक्ष्य होगा.

वैसे तो बिहार विधानसभा का चुनाव 2025 में होगा, लेकिन उसके पहले 2024 में लोकसभा का चुनाव होगा. चुनाव में अभी लंबा वक्त है और इन दोनों चुनाव से पहले अभी यूपी का चुनाव होने वाला है. पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने की कोशिश लगातार होती रही है. यूपी के साथ पांच राज्यों के चुनाव में पार्टी का क्या रुख होता है, यह ललन सिंह के कंधों पर अब तय होगा. एक तरह से यह ललन सिंह की यह पहली परीक्षा भी होगी.

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