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बिहार के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की बढ़ी वार्षिक फीस, अब NEET में स्कोर कम हुए तो डॉक्टर बनना मुश्किल!

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Published : Feb 22, 2022, 9:53 PM IST

मेडिकल कॉलेजों में बढ़ी वार्षिक फीस
मेडिकल कॉलेजों में बढ़ी वार्षिक फीस

बिहार के मेडिकल कॉलेजों के वार्षिक फीस में भारी वृद्धि की गई है. इससे मेडिकल परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्र काफी (Students Worried due to medical colleges fees increase) निराश हैं. NEET में कम स्कोर होने के बाद प्राइवेट कॉलेजों से पढ़ाई करने की उम्मीद पाले छात्रों के समक्ष चुनौतियां काफी बढ़ गई है. पढ़ें रिपोर्ट...

पटनाः प्रदेश के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों ने वार्षिक फीस में ढाई लाख से साढ़े 3 लाख रुपए तक की बढ़ोतरी (Annual fees increased in Private medical colleges) की है. अब नए शैक्षणिक सत्र में जो नीट यूजी 2021 के माध्यम से छात्र दाखिला लेंगे उन्हें बढ़ा हुआ फीस देना होगा. उदाहरण के तौर पर कटिहार मेडिकल कॉलेज (Katihar Medical College Fees) की बात करें तो 2020 में जहां एमबीबीएस के लिए सालाना 12.38 लाख रुपये फीस थी, वह अब बढ़कर 14.55 लाख रुपए सालाना हो गई है.

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इसी प्रकार नारायण मेडिकल कॉलेज सासाराम की फीस 15.51 लाख रूपए से बढ़कर 17.24 लाख रुपए हो गई है. मधुबनी मेडिकल कॉलेज और नेताजी सुभाष मेडिकल कॉलेज पटना ने 5-5 लाख रुपए सालाना की दर से अपनी फीस में बढ़ोतरी की है. इस स्थिति में मेडिकल परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों और अभिभावकों का कहना है कि सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे. सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीटों की संख्या बढ़ाए और प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले गरीब छात्रों के लिए सब्सिडी की व्यवस्था करे.

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पटना के बोरिंग रोड इलाके के एक इंस्टीट्यूट में मेडिकल की तैयारी करने वाले छात्र धीरज कुमार ने कहा कि यदि नीट परीक्षा में उनका अंक 550 से 610 के बीच रहता है तो उन्हें सरकारी कॉलेज नहीं मिलेगा लेकिन प्राइवेट के अच्छे कॉलेज आसानी से उन्हें मिल जाएंगे. उनके फैमिली का इनकम अच्छा नहीं है और कोरोना के कारण आर्थिक हालत कमजोर हुई है. ऐसे में वह चाह कर भी प्राइवेट कॉलेज में दाखिला नहीं करा पाएंगे और उनके सपने टूट जाएंगे. उन्होंने कहा कि वह सरकार से मांग करेंगे कि सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करें और प्राइवेट कॉलेज की फीस को कम करने के साथ-साथ सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीटों की संख्या बढ़ानी चाहिए.

नीट परीक्षा 2021 में 586 अंक प्राप्त करने वाली तान्या कुमारी ने कहा कि वह जनरल कैटेगरी से आती हैं. ऐसे में इतने अच्छे अंक होने के बावजूद उन्हें सरकारी कॉलेज नहीं मिल रहा है. उन्हें अच्छे और बड़े प्राइवेट कॉलेज उन्हें आसानी से मिल रहे हैं. उन्होंने कहा कि प्राइवेट कॉलेज का फीस इतना अधिक है कि वह उसे अफोर्ड नहीं कर सकती हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें एमबीबीएस को छोड़कर कोई अन्य कोर्स का विकल्प तलाशना होगा या फिर 1 साल फिर से और अच्छे अंक लाने के लिए तैयारी करनी होगी.

तान्या कहती हैं कोरोना के कारण उनके परिवा की की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है. ऐसे में वह सरकार से अपील करेंगी की प्राइवेट कॉलेजों की फीस बढ़ोतरी के मामले को सरकार देखे और उसे कंट्रोल करें. वहीं, अभिभावक सत्येंद्र कुमार बताते हैं कि गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए सरकार इस प्रकार की पहल कर सकती है कि यदि कोई टैक्सपेयर का बच्चा किसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में पढ़ता है तो उसे 15 से 20 फीसदी फीस में छूट दी जाए.

इससे टैक्स देने वालों में एक उत्साह बढ़ेगा और टैक्स देने वालों की संख्या भी बढ़ेगी. गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे नेट क्वालीफाई करते हैं. अगर कुछ अंकों की कमी की वजह से सरकारी कॉलेज उन्हें नहीं मिल पाता है. ऐसे में बच्चे की प्रतिभा के आधार पर फीस में कुछ छूट दी जानी चाहिए या फिर सरकार की तरफ से ऐसे बच्चों के लिए कुछ सब्सिडी का प्रावधान होना चाहिए.

अभिभावक अरुण कुमार ने कहा कि पहले ही प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस इतनी थी कि जमीन गिरवीं रखने पर भी पढ़ाई की खर्च नहीं निकल पाती थी. लेकिन अब जब फीस में बढ़ोत्तरी कर दी गई है तो गरीब और मध्यम परिवार के बच्चों के लिए यह काफी मुश्किल है. उन्होंने कहा कि उनकी बेटी ने इस बार नीट की परीक्षा दी थी और अंक अच्छे नहीं आ सके.

प्राप्तांक के आधार पर सरकारी कॉलेज नहीं मिल रहा था लेकिन प्राइवेट कॉलेज मिल रहा था. महंगी फीस के कारण पहले ही एडमिशन नहीं हो सका, अब बढ़ी हुई फीस उनके समक्ष काफी मुश्किलें पैदा करेंगी.

पटना के बोरिंग रोड में नीट एग्जाम की तैयारी कराने वाले शिक्षक आशुतोष झा कहते हैं कि पिछले कई वर्षों से वे नीट परीक्षा की तैयारी छात्रों को करा रहे हैं. यह काफी कॉमन है कि काफी सारे मेधावी बच्चे फाइनेंसियल बैरियर होने की वजह से अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाते हैं. वे नीट परीक्षा क्वालीफाई करते हैं लेकिन वह सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला से जब वह कुछ अंकों की कमी के कारण चूक जाते हैं. महंगी फीस होने के कारण वे प्राइवेट कॉलेजों में भी दाखिला नहीं ले सकते हैं.

ऐसे मेधावी छात्र 580 और 590 अंक लाकर भी मेडिकल में दाखिला नहीं ले पाते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले दो-तीन वर्षों में कोरोना के कारण सामान्य लोगों के घरों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है, ऐसे में साल दर साल प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस में जो बढोतरी हो रही है वह उन पर और दबाव डाल रही है. ऐसे में वह सरकार से अपील करेंगे कि इस मामले में दखलअंदाजी करें और प्राइवेट कॉलेजों के लिए एक मानक तय करें कि निर्धारित राशि से अधिक कोई भी कॉलेज नहीं वसूलेंगे.

शिक्षक आशुतोष झा ने कहा कि नेशनल मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस बार यह फैसला लिया है कि जितने भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज है वह अपने 50 फीसदी सीटों पर सरकारी फीस में एडमिशन लेंगे. ऐसे में वह नेशनल मेडिकल काउंसिल से अनुरोध करेंगे कि यह फैसला इसी सेशन से लागू किया जाए ताकि मेधावी छात्रों का सपना न टूटे और वह अपना एक उज्जवल भविष्य बना सके.

उन्होंने कहा कि इसके साथ ही प्राइवेट कॉलेजों में गरीब और मध्यमवर्गीय मेधावी छात्र पढ़ सके. इसके लिए सरकार को ऐसे छात्रों के लिए कुछ सब्सिडी और लोन प्रोग्राम चलाने की आवश्यकता है ताकि छात्र जब एमबीबीएस कंप्लीट कर लें और कमाने की स्थिति में आ जाएं तो वे उसे चुकता कर दें.

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