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गर्भाशय घोटाले में अब तक किसी भी आरोपी पर कार्रवाई नहीं, CBI जांच पर टिकी पीड़ितों की निगाहें

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Published : Oct 4, 2022, 8:35 AM IST

Updated : Oct 4, 2022, 11:56 AM IST

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केंद्र सरकार ने साल 2011 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (National Health Insurance Scheme)) लागू की थी. इस योजना के तहत बीपीएल कैटेगरी में आने वाले परिवारों का 30000 तक का इलाज मुफ्त में होना था और इस योजना के क्रियान्वयन के लिए बिहार के सभी जिलों के 350 अस्पतालों का चयन किया गया. आरोप है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का गलत फायदा लेने के लिए कई अस्पतालों और डॉक्टरों की ओर से बड़ी संख्या में महिलाओं के गर्भाशय उनकी सहमति के बगैर सर्जरी कर निकाल लिए गए थे.

पटनाः बिहार में साल 2012 में हुआ गर्भाशय घोटाला (Action Not Taken Against Accused In Uterus Scam) बिहार में एक बार फिर से चर्चा में है. पटना हाईकोर्ट ने मामले को सीबीआई जांच (CBI Probe Into Uterus Scam In Bihar) के लिए भेज दिया है. अब मामले की जांच सीबीआई कर रही है, इसके साथ ही इस मामले की अगली सुनवाई 1 नवंबर को होनी है. पिछले सुनवाई में राज्य के मुख्य सचिव को पटना हाईकोर्ट ने हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है कि वह बताएं कि इस मामले में अब तक क्या कुछ कार्रवाई सरकार की ओर से की गई है और आगे क्या कार्रवाई करने का प्रस्ताव है.

ये भी पढ़ेंः बिहार में गर्भाशय घोटाला पर हाईकोर्ट सख्त, मुख्य सचिव से पूछा- 'कार्रवाई की क्या योजना है?'

साल 2011 में आई थी राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना: दरअसल वेटरन फोरम की ओर से पटना हाईकोर्ट में गर्भाशय घोटाला को लेकर अर्जी दायर की गई थी जिस पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई की प्रक्रिया चल रही है. केंद्र सरकार ने साल 2011 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना लागू की थी. इस योजना के तहत बीपीएल कैटेगरी में आने वाले परिवारों का 30000 तक का इलाज मुफ्त में होना था और इस योजना के क्रियान्वयन के लिए बिहार के सभी जिलों के 350 अस्पतालों का चयन किया गया. आरोप है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का गलत फायदा लेने के लिए बिहार के कई अस्पतालों और डॉक्टरों की ओर से बड़ी संख्या में महिलाओं के गर्भाशय उनकी सहमति के बगैर सर्जरी के निकाल लिए गए थे.

घोटाले में किया गया मोटी राशि का गबनः सरकार की ओर से हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर जो जानकारी दी गई है, उस जानकारी में पता चला कि बीमा राशि के लिए कथित रूप से 82 पुरुषों के गर्भाशय भी निकाल लिए गए. जिससे साफ पता चलता है कि घोटाला हुआ है. इसके अलावा कई ऐसी महिलाओं की भी गर्भाशय निकाल लिए गए, जिन्हें सर्जरी की कोई आवश्यकता नहीं थी और इन सर्जरी के जरिए मोटी राशि का गबन किया गया था. पटना हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता पक्ष की ओर के वकील दीनू कुमार ने हाई कोर्ट में जानकारी दी है कि 44619 महिलाओं के गर्भाशय इस योजना के तहत प्रदेश भर में निकाले गए, जिनमें 27511 का गर्भाशय उनकी बिना परमिशन के निकाले गए हैं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वत: संज्ञान लियाः गर्भाशय घोटाले के बारे में जानकारी देते हुए अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि साल 2012 में मीडिया में गर्भाशय घोटाला की खबर सामने आई जिसके बाद बिहार मानवाधिकार आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए प्रोसीडिंग स्टार्ट की. मानव अधिकार आयोग ने बिहार के पदाधिकारियों को आदेश दिया कि इसकी जांच करके बताएं. आयोग के बार-बार आदेश देने के बावजूद अधिकारी कोई एक्शन नहीं ले रहे थे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वत: संज्ञान लेते हुए प्रदेश के पदाधिकारियों को निर्देश दिया कि इस मामले की जांच करके मानवाधिकार आयोग को बताएं. इसके बावजूद भी बिहार सरकार के लेबर डिपार्टमेंट और हेल्थ डिपार्टमेंट के पदाधिकारियों ने सभी 38 जिलों का विवरण नहीं दिया. सिर्फ 10 जिला का विवरण दिया गया जिससे स्पष्ट हुआ कि नेशनल हेल्थ स्कीम के तहत 46619 महिलाओं का गर्भाशय निकाला गया है जो बीपीएल परिवार से आते हैं.

पीड़ितों को देना था 1.5 लाख रुपया मुआवजाः अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि इस पर ह्यूमन राइट्स कमीशन ने कहा कि एक महिला जो 20 साल से कम की थी और 40 साल से कम की महिलाओं का जो बिना जानकारी की यूट्रस निकाला गया उन्हें एक तरह से बच्चा पैदा करने से रोक लगा दिया. इसके साथ ही गर्भाशय निकालने का काम गर्भाशय निकालने की जो नियम और कानून है सबका उल्लंघन करते हुए किया गया है. इसलिए 20 से 40 साल की उम्र की महिलाओं का जिनका यूट्रस निकाला गया है उनको 2.5 लाख रुपया और 40 वर्ष से अधिक की महिलाएं जिनका गर्भाशय निकाला गया उन्हें 1.5 लाख रुपया मुआवजा के तौर पर देना है. इसके बावजूद बिहार सरकार ने यह निर्णय लिया कि केवल 50000 ही मुआवजा दिया जाएगा. तब उन्होंने हाईकोर्ट में पीआईएल दायर करके इस मामले को रखा.

कई महिलाओं को नहीं मिली मुआवजे की राशिः पीआईएल पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि बिहार सरकार का एक्शन पूरी तरह गलत है, किस आदेश के तहत मानवाधिकार आयोग के तरफ से तय किए गए मुआवजे की राशि को कम करके 50000 किया गया है. इसके बाद बिहार सरकार ने मुआवजा के अपने आदेश को संशोधित किया. सरकार के मुख्य सचिव ने तय किया कि मानवाधिकार आयोग ने जो मुआवजा की राशि तय की है वही राशि दी जाएगी. आज तक सरकार की ओर से लगभग 400 महिलाओं को मुआवजे की राशि दी गई है और अभी भी कई महिलाओं को उनका मुआवजा उन्हें नहीं दिया गया है.

"बिहार सरकार ने 27511 महिलाओं का जो यूट्रस निकाला जो बीपीएल परिवार की थी उनका भी जांच नहीं कराया गया. 10 जिलों से 19108 महिलाओं की रिपोर्ट आई, जिसमें पाया गया कि 540 महिलाओं का बेवजह का गर्भाशय निकाल दिया गया. जिसमें 288 महिलाएं 20 से 30 साल की थी और 103 महिलाएं 30 से 40 साल की थी. 163 महिलाएं 40 वर्ष से अधिक की थी. जांच अब तक मात्र 10 जिले में ही हुए हैं. जांच में यह भी सामने आया है कि 82 ऐसे लोगों का भी यूट्रस निकाला गया है जो पुरुष हैं. इससे साफ साबित होता है कि झूठी रिपोर्ट दी गई है. अब इस मामले में अगली सुनवाई 1 नवंबर 2022 को है"- दीनू कुमार, अधिवक्ता, पटना हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने सरकार को दिए कड़े निर्देश ः अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि हाईकोर्ट ने सरकार को यह भी निर्देश दिया कि इस मामले में जो भी नर्सिंग होम और डॉक्टर संलिप्त हैं उन पर कड़ी कार्रवाई कीजिए और उनका निबंधन कैंसिल कीजिए. उन्होंने कहा कि उनके संज्ञान में जो है आज तक प्रदेश में इस मामले में किसी भी डॉक्टर का निबंधन रद्द नहीं हुआ है ना ही किसी नर्सिंग होम का निबंधन रद्द हुआ है. इस मामले पर हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच की अनुशंसा की और सीबीआई अब इस मामले की जांच कर रही है.

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Last Updated :Oct 4, 2022, 11:56 AM IST
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