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100 बसंत देख चुके स्वत्रंतता सेनानी ने सुनाई आजादी की कहानी, बोले- अंग्रेजी अत्याचार से भी नहीं टूटा हौसला

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Published : Jan 25, 2020, 8:43 PM IST

अंग्रेजी हुकूमत के बारे में बात करते हुए स्वत्रंतता सेनानी अर्जुन दास ने कहा कि आजादी की लड़ाई में उन्होंने बख्तियारपुर थाने को आग के हवाले कर दिया था, जिसके बाद उन्हें जेल जाना पड़ा था. इस दौरान अंग्रेजों ने उन्हें तरह-तरह की यातनाएं भी दी, लेकिन वो अंग्रेजों के खिलाफ लगातार लड़ते रहे.

स्वत्रंतता सेनानी अर्जुन दास
स्वत्रंतता सेनानी अर्जुन दास

नालंदा: देश रविवार को 71वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है. 26 जनवरी को होने वाले परेड के लिए राजपथ सज चुका है. हर कोई परेड और देशभक्ति के रंग में सराबोर है. ऐसे में यहां पर ये जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि ये गणतंत्र दिवस क्यों मनाया जाता है और हमें ये अधिकार किन वीर सपूतों के बलिदान की वजह से मिली.

आजादी के बाद भारतीय संविधान सभा की ओर से 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया था. इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था. इस आजादी के पीछे देश के कई वीर सपूतों का हाथ था. उन्हीं में से एक हैं जिले के स्वत्रंतता सेनानी अर्जुन दास. इन्होंने ना केवल आजादी की लड़ाई में अपनी अहम भूमिका निभाई थी, बल्कि इस दौरान वे गंभीर रूप से घायल भी हुए थे और कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.

स्वत्रंतता सेनानी अर्जुन दास
स्वत्रंतता सेनानी अर्जुन दास

'बख्तियारपुर थाने को किया था आग के हवाले'
स्वत्रंतता सेनानी अर्जुन दास जीवन के 100 बसंत देख चुके हैं. उन्होंने बताया कि उनके 3 पुत्र और 5 पुत्री हैं, सभी लोग व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. अपने बारे में कांपते शब्दों में अर्जुन दास बताते हैं कि वे मूल रूप से शेखपुरा जिले के घाट कुसुंबा के रहने वाले थे. वर्तमान में वे बिहारशरीफ के मथुरिया मोहल्ला में अपने परिजनों के साथ रहते हैं.

अंग्रेजी हुकूमत के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में उन्होंने बख्तियारपुर थाने को आग के हवाले कर दिया था. जिसके बाद उन्हें जेल जाना पड़ा था. इस दौरान अंग्रेजों ने उन्हें तरह-तरह की यातनाएं भी दी, लेकिन वो अंग्रेजों के खिलाफ लगातार लड़ते रहे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'हमेशा होता रहता था उपद्रव'
देश के वर्तमान हालात पर उन्होंने कहा कि फिलहाल देश में मां भारती की कृपा से सब कुशल मंगल है. ब्रिटिश शासनकाल में किसी भी समय उपद्रव शुरू हो जाता था. आजादी के दीवाने अंग्रेजी पुलिसों पर पथराव भी करते थे, जमकर उपद्रव होता था. उन्होंने बताया कि वे पढ़ने-लिखने की उम्र में आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे. नौकरी के बजाय उन्हें देश की आजादी का जुनून था. वे आजादी के दीवानों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ गोलबंद हो गए थे. आजादी की लड़ाई के दौरान उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से भी हुई थी.

'सरकार देती है पेंशन राशि'
स्वत्रंतता सेनानी की बहु रिया देवी बताती हैं कि मेरे ससुर अर्जुन दास का जन्म 5 मार्च 1920 को हुआ था. वे उम्र के शतक के करीब पहुंच चुके हैं. फिलहाल उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है. अधिक उम्र हो जाने के कारण वे ना तो ठीक से सुन पाते हैं और ना ही ज्यादा बोल पाते हैं. उनको बिहार सरकार और केंद्र सरकार की ओर से पेंशन राशि दी जा रही है.

Intro:आजादी की लड़ाई में अर्जुन दास ने निभाई थी अहम भूमिका
उम्र के 100 साल पूरे करने के करीब
नालंदा। देश 71वां गणतंत्र मनाने जा रहा है । आजादी की लड़ाई में कई लोगों ने अपनी अहम भूमिका निभाई थी । कई ने अपनी जान को न्योछावर किया तो किसी ने अपनी जान पर खेलकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। आजादी की लड़ाई में किसी की जान की बाजी लड़ाई तो किसी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोहा लेने का काम किया। उन्हीं में से एक है अर्जुन दास, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग लड़ा। इस दौरान घायल हुए और उन्हें जेल भी जाना पड़ा।


Body:आजादी की लड़ाई में शामिल अर्जुन दास द्वारा बख्तियारपुर थाने को आग के हवाले करने का काम किया था। इस लड़ाई में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। उन्होंने बताया कि अंग्रेजो के खिलाफ पी लो लगातार लोहा लेने का काम करते थे और कई बार अंग्रेजी पुलिस के द्वारा उनकी पिटाई भी की गई थी। इस दौरान जमकर उपद्रव होता था । पथराव किया जाता था।
मूल रूप से शेखपुरा जिले के घाट कुसुंबा के रहने वाले अर्जुन दास फिलहाल बिहारशरीफ के मथुरिया मोहल्ला में रहते हैं। इनके तीन पुत्र और 5 पुत्री है । सभी लोग व्यवसाय से जुड़े हैं। परिवार के लोग भी इनके साथ बैठ आजादी की लड़ाई के किस्से सुनते हैं।


Conclusion:5 मार्च 1920 को जन्मे अर्जुन दास उम्र के शतक के करीब पहुंच चुके हैं । इनका मानना है कि करीब 19-20 वर्ष की उम्र में ही देश की आजादी में की लड़ाई में कूद पड़े थे। पढ़ लिख कर नौकरी के बजाय उन्हें देश की आजादी का जुनून था और अंग्रेजो के खिलाफ गोलबंद हो गए थे । देश की आजादी की लड़ाई के दौरान उन्हें महात्मा गांधी से भी मुलाकात हुई थी।
फिलहाल उनके स्वास्थ्य की स्थिति ठीक नहीं है। अधिक उम्र हो जाने के कारण ना तो मैं ठीक तरीके से सुन पाते हैं, ना ही बोल पाते हैं । अपने पोते पोतियो की मदद से भी थोड़ा बहुत बातचीत कर पाते हैं। बिहार सरकार और केंद्र सरकार के द्वारा इन्हें पेंशन दिया जा रहा है।
बाइट। अर्जुन दास, स्वतंत्रता सेनानी
बाइट। रिया देवी, बहु
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