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बिहार : तमिलनाडु से लौटे युवक कर रहे मेडिकेटेड चप्पल-जूतों का निर्माण, दर्जनों युवाओं को मिला रोजगार

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Published : Sep 1, 2020, 9:46 PM IST

जमुई के युवकों द्वारा तैयार मेडिकेटेड जूते-चप्पलों के उपयोग से ऑर्थोपेडिक और डायबिटीज मरीजों को लाभ मिलता है. साथ ही मेडिकेटेड जूते-चप्पल बनाने वाला जिले का यह पहला कुटीर उद्योग है. जो मटिया मोहनपुर के अशोक दास और खैरा प्रखंड के चौकीटाड़ निवासी संतोष दास द्वारा शुरू किया गया है.

जमुई
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जमुई: कोरोना महामारी के बीच जहां ज्यादातर लोग मंदी की मार झेल रहे हैं. वहीं जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में शुमार लक्ष्मीपुर प्रखंड के मटिया मोहनपुर गांव के 2 युवा मेडिकेटेड जूते-चप्पल बनाकर ना सिर्फ खूब मुनाफा कमा रहे हैं, बल्कि स्थानीय लोगों को भी रोजगार देने में सफल रहे हैं. कहते हैं 'सही वक्त पर सही फैसला आदमी को सफल बना देता है'. कुछ ऐसा ही इन दोनों युवकों ने किया है.

जमुई के युवकों द्वारा तैयार मेडिकेटेड जूते-चप्पलों के उपयोग से ऑर्थोपेडिक और डायबिटीज मरीजों को लाभ मिलता है. साथ ही मेडिकेटेड जूते-चप्पल बनाने वाला जिले का यह पहला कुटीर उद्योग है. जो मटिया मोहनपुर के अशोक दास और खैरा प्रखंड के चौकीटाड़ निवासी संतोष दास द्वारा शुरू किया गया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

आपदा को बनाया अवसर
बता दें कि दोनों युवक 15 सालों से तमिलनाडु के सेलम स्थित बाय स्ट्राइड कंपनी में बतौर टेक्नीशियन के पद पर काम कर रहे थे. कंपनी द्वारा ऑर्थोपेडिक और डायबिटीज मरीजों के लिए जूते-चप्पल का निर्माण कर देश के बड़े-बड़े अस्पतालों के अलावा जर्मनी, फ्रांस, इटली सहित कई अन्य देशों में भी निर्यात किया जाता था. इसी क्रम में लॉकडाउन में अपने घर वापसी किए अशोक और संतोष ने गांव में ही मेडिकेटेड चप्पल बनाने का निर्णय लिया.

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चप्पल-जूतों की कटाई करते कारीगर

'कम दाम में उपलब्ध हुए मेडिकेटेड चप्पल-जूते'
लॉकडाउन में घर आए अशोक और संतोष को ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी तादाद में मधुमेह और जोड़ों के मरीज दिखे, जो नसों के दर्द से परेशान थे. वहीं गरीबी के कारण वो मेडिकेटेड जूते-चप्पलों पर मोटी राशि खर्च नहीं कर सकते थे. जिसे देखते हुए दोनों युवकों ने ग्रामीण क्षेत्र के लोगों तक इसका लाभ पहुंचाने का संकल्प लिया. इसके बाद 15 साल में कमाई गई जमा पूंजी से उन्होंने मटिया मोहनपुर गांव में मेडिकेटेड जूते-चप्पल बनाने का कुटीर उद्योग शुरू कर दिया. दो से ढाई हजार तक मिलने वाले जूते-चप्पल ग्रामीणों को 500 से 600 रुपये में आसानी से उपलब्ध हो पा रहे हैं.

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मेडिकेटेड चप्पल बनाते संतोष दास

'गांव में ही मेडिकेटेड चप्पलों का निर्माण'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल उद्योगों को बढ़ावा देने की योजना से दोनों युवकों ने प्रभावित होकर चप्पल उद्योग का कार्य की शुरुआत की. लॉकडाउन में बड़ी संख्या में अपने घर आए प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से लोकल उद्योगों को प्रोत्साहन देने की अपील की थी. वहीं दोनों युवक प्रधानमंत्री के इस योजना से काफी प्रभावित हुए. साथ ही जब वो लॉकडाउन में अपने घरों में फंसे. तब उन्होंने अपने गांव में ही मेडिकेटेड चप्पलों के निर्माण की सोची.

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मेडिकेटेड चप्पल

'बेरोजगार युवकों को मिला काम'
वहीं दोनों युवाओं ने इस प्रकार अपने उद्योग की शुरुआत की. इसके बाद धीरे-धीरे काम बढ़ने पर कोरोना काल में दर्जनों युवाओं ने गांव के बेरोजगार युवकों को भी अपने उद्योग में शामिल कर लिया. वहीं जानकारी देते हुए संतोष दास ने बताया कि फिलहाल मेडिकेटेड चप्पल के अलावा जनरल लेडीज, जेंट्स और बच्चों सहित अन्य चप्पलें बनाकर उसे जिले के साथ ही लखीसराय, मुंगेर, बांका सहित कई अन्य जिलों में बेची जा रही है. जिससे उन्हें काफी आमदनी भी हो रही है.

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मेडिकेटेड चप्पल-जूते बनाते अशोक कुमार

'सरकार से आर्थिक मदद की आस'
वहीं संतोष दास के सहयोगी अशोक कुमार ने बताया कि जिले के हड्डी रोग विशेषज्ञों द्वारा भी हमारे चप्पलों की काफी मांग की जा रही है. साथ ही अशोक ने जिला प्रशासन से मांग करते हुए कहा कि यदि उन्हें आर्थिक मदद मिल जाती, तो वो अपने उद्योग का प्रसार अच्छे से कर पाते. साथ ही दूसरे राज्यों में मजदूरी करने वाले सैकड़ों मजदूरों को भी इससे काम अपने जिले में ही काम भी मिल जाता.

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