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बोले प्रशांत किशोर- 'केवल बिहार में ही जाति पर वोटिंग नहीं होती, दूसरे राज्य हमसे कम नहीं'

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Published : Dec 9, 2022, 4:14 PM IST

प्रशांत किशोर जन सुराज पदयात्रा (Prashant Kishor on Jan Suraj Padyatra) के दौरान उन तमाम मुद्दों को उठा रहे हैं जो जन सरोकार से जुड़ा हुआ है. राज्य की शिक्षा व्यवस्था, अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी के बाद जातिगत राजनीति वाली मानसिकता पर पीके ने एक बार फिर से वार किया है. आगे पढ़ें पूरी खबर...

Prashant Kishore on Bihar caste politics
Prashant Kishore on Bihar caste politics

मोतिहारी: जन सुराज पदयात्रा पर निकले प्रशांत किशोर ने बिहार की जातिगत राजनीति वाली मानसिकता पर अपनी भड़ास (Prashant Kishore on Bihar caste politics) निकाली. प्रशांत किशोर पूर्वी चंपारण जिला के विभिन्न प्रखंडों का दौरा करते हुए चिरैया पहुंचे. उन्होने राज्य के अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी के मुद्दे पर कहा कि सरकार की नाकामी के वजह से बिहार बर्बाद हो (Prashant Kishore targeted Bihar government In Motihari) रहा है. बिहार के पैसों से गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, हरियाणा जैसे राज्यों में उद्योग लगाया जा रहा है. वहीं बिहार के लोग उन राज्यों में जाकर उसी उद्योग में मजदूरी कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें - 'नीतीश कुमार तो रोज साथ में काम करने के लिए बुला रहे हैं'- प्रशांत किशोर

1984 में लोगों ने जातियों से ऊपर उठ कर किया था वोट: दरअसल चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Election strategist Prashant Kishor) ने घोड़ासहन के राजवाड़ा स्थित जेएलएनएम कॉलेज परिसर में पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि हमने जातिगत राजनीति वाली मानसिकता को ज्यादा हवा दे दी है. मैं आपको ऐसे 5 चुनाव बता सकता हूं. जिसमें बिहार के लोगों ने जातिगत राजनीति से ऊपर उठ कर वोट किया है. वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु से उपजी हुई सहानुभूति के लहर में लोगों ने जातियों से ऊपर उठ कर वोट किया था.

बिहार से ज्यादा दूसरे राज्यों में है जातीय राजनीति: वर्ष 1989 में बोफोर्स और भ्रष्ट्राचार के मुद्दे पर देश में वीपी सिंह की सरकार बनी थी. वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पूरे देश के लोगों ने भाजपा को वोट किया. वर्ष 2019 में राष्ट्रवाद,पुलवामा और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के नाम पर वोट किया. इतना ही नहीं पूरे बिहार के लोगों ने बीजेपी को फिर से सरकार बनाने का मौका दिया. इसलिए ये कहना गलत होगा कि बिहार के लोग केवल जातिगत आधार पर वोट करते हैं, चुनावों में जाति एक फैक्टर हो सकता है. लेकिन बिहार में जाति उतना ही बड़ा फैक्टर है. जितना दूसरे राज्यों में है और बिहार से ज्यादा जातीय राजनीति दूसरे राज्यों में है. हमलोग खुद ही बिहार में जाति पर वोटिंग की बातें कह-कह कर देश को दिगभ्रमित करने में लगे हैं.

"हमने जातिगत राजनीति वाली मानसिकता को ज्यादा हवा दे दी है. मैं आपको ऐसे 5 चुनाव बता सकता हूं. यह कहना गलत होगा कि बिहार के लोग केवल जातिगत आधार पर वोट करते हैं, चुनावों में जाति एक फैक्टर हो सकता है. लेकिन बिहार में जाति उतना ही बड़ा फैक्टर है.जितना दूसरे राज्यों में है." :- प्रशांत किशोर, चुनावी रणनीतिकार

उन्होंने कहा कि बिहार के नेता क्रेडिट-डिपोजिट पर बात ही नहीं करते. बिहार के नेताओं को इन सब के बातों की जानकारी भी नहीं है. बिहार का दुर्भाग्य है कि यहां के आम लोग भी इन मुद्दों पर चर्चा नहीं कर रहे हैं. पत्रकारों से मेरी गुजारिश है कि वह इन मुद्दों को बारीकी से उठाए. ताकि इस पर पूरे बिहार में चर्चा हो सके.

मोतिहारी: जन सुराज पदयात्रा पर निकले प्रशांत किशोर ने बिहार की जातिगत राजनीति वाली मानसिकता पर अपनी भड़ास (Prashant Kishore on Bihar caste politics) निकाली. प्रशांत किशोर पूर्वी चंपारण जिला के विभिन्न प्रखंडों का दौरा करते हुए चिरैया पहुंचे. उन्होने राज्य के अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी के मुद्दे पर कहा कि सरकार की नाकामी के वजह से बिहार बर्बाद हो (Prashant Kishore targeted Bihar government In Motihari) रहा है. बिहार के पैसों से गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, हरियाणा जैसे राज्यों में उद्योग लगाया जा रहा है. वहीं बिहार के लोग उन राज्यों में जाकर उसी उद्योग में मजदूरी कर रहे हैं.

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1984 में लोगों ने जातियों से ऊपर उठ कर किया था वोट: दरअसल चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Election strategist Prashant Kishor) ने घोड़ासहन के राजवाड़ा स्थित जेएलएनएम कॉलेज परिसर में पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि हमने जातिगत राजनीति वाली मानसिकता को ज्यादा हवा दे दी है. मैं आपको ऐसे 5 चुनाव बता सकता हूं. जिसमें बिहार के लोगों ने जातिगत राजनीति से ऊपर उठ कर वोट किया है. वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु से उपजी हुई सहानुभूति के लहर में लोगों ने जातियों से ऊपर उठ कर वोट किया था.

बिहार से ज्यादा दूसरे राज्यों में है जातीय राजनीति: वर्ष 1989 में बोफोर्स और भ्रष्ट्राचार के मुद्दे पर देश में वीपी सिंह की सरकार बनी थी. वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पूरे देश के लोगों ने भाजपा को वोट किया. वर्ष 2019 में राष्ट्रवाद,पुलवामा और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के नाम पर वोट किया. इतना ही नहीं पूरे बिहार के लोगों ने बीजेपी को फिर से सरकार बनाने का मौका दिया. इसलिए ये कहना गलत होगा कि बिहार के लोग केवल जातिगत आधार पर वोट करते हैं, चुनावों में जाति एक फैक्टर हो सकता है. लेकिन बिहार में जाति उतना ही बड़ा फैक्टर है. जितना दूसरे राज्यों में है और बिहार से ज्यादा जातीय राजनीति दूसरे राज्यों में है. हमलोग खुद ही बिहार में जाति पर वोटिंग की बातें कह-कह कर देश को दिगभ्रमित करने में लगे हैं.

"हमने जातिगत राजनीति वाली मानसिकता को ज्यादा हवा दे दी है. मैं आपको ऐसे 5 चुनाव बता सकता हूं. यह कहना गलत होगा कि बिहार के लोग केवल जातिगत आधार पर वोट करते हैं, चुनावों में जाति एक फैक्टर हो सकता है. लेकिन बिहार में जाति उतना ही बड़ा फैक्टर है.जितना दूसरे राज्यों में है." :- प्रशांत किशोर, चुनावी रणनीतिकार

उन्होंने कहा कि बिहार के नेता क्रेडिट-डिपोजिट पर बात ही नहीं करते. बिहार के नेताओं को इन सब के बातों की जानकारी भी नहीं है. बिहार का दुर्भाग्य है कि यहां के आम लोग भी इन मुद्दों पर चर्चा नहीं कर रहे हैं. पत्रकारों से मेरी गुजारिश है कि वह इन मुद्दों को बारीकी से उठाए. ताकि इस पर पूरे बिहार में चर्चा हो सके.

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