ETV Bharat / state

मोतिहारी: सूख रहा महात्मा गांधी के सत्याग्रह का गवाह रहा नीम का पेड़

author img

By

Published : Dec 17, 2019, 9:46 AM IST

motihari
सूख रहा पेड़

जिलाधिकारी रमन कुमार के निर्देश पर वन विभाग के अधिकारियों ने नीम के पेड़ की जांच की. तब पता चला कि पेड़ के चारों ओर बने सिमेंटेड चबूतरा के कारण वह सूख गया. जिसे वन विभाग के अधिकारियों ने कार्रवाई करते हुये तोड़ दिया है.

मोतिहारी: पूर्वी चंपारण जिले में अंग्रेजी हुकूमत के समय महात्मा गांधी के सत्याग्रह का मूक गवाह रहा ऐतिहासिक नीम का पेड़ सूख रहा है. बता दें कि गुलाम भारत के समय का यह वही नीम का पेड़ है. जिसमें जिले के किसानों को बांधकर अंग्रेज जमींदार कोड़ा से मारते थे. सौ साल पहले इसी पेड़ के नीचे बैठकर गांधी ने किसानों की पीड़ा को सुना था. उसे कलमबद्ध किया था. अब यह नीम का पेड़ इतिहास के पन्नों तक ही सीमित रह गया है.

गांधी ने सुनी थी किसानों की व्यथा
बता दें कि नील और तीनकठिया कानून का विरोध करने वाले किसानों को इसी नीम के पेड़ में बांधकर अंग्रेज जमींदार मारते थे. जिसकी जानकारी मिलने पर 4 अगस्त 1917 को महात्मा गांधी तुरकौलिया आए थे. इसी नीम के पेड़ के नीचे बैठकर महात्मा गांधी ने किसानों की व्यथा सुनी थी. जिसे कलमबद्ध कर अंग्रेज अधिकारियों से महात्मा गांधी मिले थे. उसके बाद सत्याग्रह का आंदोलन और तेज हो गया था. स्थानीय लोगों के अनुसार 6 महीने पहले से यह पेड़ सुखने लगा. जिसकी जानकारी स्थानीय प्रशासन को दी गई थी. लेकिन स्थानीय प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया.

महात्मा गांधी के सत्याग्रह की निशानी नीम का पेड़ सूख रहा

यह पेड़ तुरकौलिया का इतिहास है
तुरकौलिया प्रखंड कार्यालय के पास लगभग 120 साल पुराने इस नीम के पेड़ से पत्ते गायब हो गये है. पेड़ भी लगभग सूख गया है. वहीं, स्थानीय लोगो में इस बात को लेकर काफी आक्रोश है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह महज एक पेड़ नहीं है. बल्कि यह तुरकौलिया का इतिहास है. इसका इतिहास बापू के यादों से जुड़ा हुआ है. इस नीम के पेड़ के सुख जाने से गांधीवादी भी परेशान हैं. गांधीवादियों का कहना है कि शुरू में प्रशासन ने इस पेड़ को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया. गांधीवादी जिला प्रशासन को इस पेड़ को सुखने के लिए जिम्मेदार मानते हैं.

motihari
120 साल पुराना है इतिहास

अधिकारियों ने की पेड़ की जांच
तुरकौलिया प्रखंड मुख्यालय में स्थित 120 साल पुराना नीम का पेड़ अब इतिहास बन गया है. सुखा पेड़ अभी भी खड़ा है. लेकिन उसमें जान नहीं है. उसे फिर हरा-भरा करने का प्रयास वन विभाग ने शुरु किया है. जिलाधिकारी रमन कुमार के निर्देश पर वन विभाग के अधिकारियों ने नीम के पेड़ की जांच की. तब पता चला कि पेड़ के चारों ओर बने सिमेंटेड चबूतरा के कारण वह सूख रहा है. क्योंकि नीम के पेड़ के जड़ को सिमेंटेड चबूतरे के कारण हवा और पानी मिलना बंद हो गया था. वन विभाग के अधिकारियों ने कार्रवाई करते हुये चबूतरा को तोड़ दिया है. साथ ही पेड़ को हरा-भरा करने का प्रयास शुरू कर दिया है. जिला प्रशासन को विश्वास है कि वह इस पेड़ को बचाने में सफल होगें.

Intro:
"गोरे सरकार के शासनकाल में निलहे अंग्रेज जमींदारों द्वारा जिले के किसानों पर ढ़ाये जाने वाले जुल्म को नजदीक से महसूस करने वाला नीम का पेड़ अब नहीं रहा.गुलाम भारत के समय का यह वही नीम का पेड़ है.जिसमें जिले के किसानों को बांधकर अंग्रेज जमींदार कोड़ा से मारते थे.जमीन से लगे अभी भी खड़ा नीम के पेड़ के नीचे बैठकर सौ साल पहले महात्मा गांधी ने किसानों की पीड़ा को सुना था और उसे कलमबद्ध किया था.अब यह नीम का पेड़ इतिहास के पन्नों तक हीं सीमित हो गया है."



मोतिहारी।अंग्रेजी हुकूमत के समय महात्मा गांधी के सत्याग्रह का मूक गवाह पूर्वी चंपारण का ऐतिहासिक नीम का पेड़ सूख गया।गोरे सरकार के शासनकाल में निलहे अंग्रेज जमींदारों द्वारा जिले के किसानों पर ढ़ाये जाने वाले जुल्म को नजदीक से महसूस करने वाला नीम का पेड़ अब नहीं रहा।गुलाम भारत के समय का यह वही नीम का पेड़ है।जिसमें जिले के किसानों को बांधकर अंग्रेज जमींदार कोड़ा से मारते थे।जमीन से लगे अभी भी खड़ा नीम के पेड़ के नीचे बैठकर सौ साल पहले महात्मा गांधी ने किसानों की पीड़ा को सुना था और उसे कलमबद्ध किया था।अब यह नीम का पेड़ इतिहास के पन्नों तक हीं सीमित हो गया है।


वीओ...1...इस नीम के पेड़ से लोगों का भावनात्मक रिश्ता जुड़ा हुआ है।इस नीम के पेड़ से इन लोगों के पूर्वजों को अंग्रेज नीलहे जमींदार बांधकर कोड़ा से पीटते थे।इस पेड़ ने अंग्रेजी शासन काल के दौरान चंपारण के किसानों पर ढ़ाए गए जुल्म को नजदीक से महसूस किया है।क्योंकि नील और तीनकठिया कानून का विरोध करने वाले किसानों को इसी नीम के पेड़ में बांधकर अंग्रेज जमींदार पीटते थे।जिसकी जानकारी मिलने पर चार अगस्त 1917 को महात्मा गांधी तुरकौलिया आए और इसी नीम के पेड़ के नीचे बैठकर महात्मा गांधी ने किसानों की व्यथा सुनी।जिसे कलमबद्ध कर अंग्रेज अधिकारियों से महात्मा गांधी मिले।उसके बाद सत्याग्रह का आंदोलन और तेज हुआ।स्थानीय लोगों के अनुसार छह महीना पहले पेड़ सुखने लगा।जिसकी जानकारी स्थानीय प्रशासन को दिया गया।लेकिन स्थानीय प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया।

बाईट.....बद्री पासवान.....सामाजिक कार्यकर्त्ता



Body:वीओ....2...तुरकौलिया प्रखंड कार्यालय के पास लगभग 120 साल पुराने इस नीम के पेड़ से पत्ते गायब हैं और लगभग सूख चुका है।स्थानीय लोगों में इस बात को लेकर आक्रोश भी है।यह पेड़ अंग्रेजी जुल्म की याद दिलाती है।स्थानीय लोगों के अनुसार यह महज एक पेड़ नहीं है।बल्कि यह तुरकौलिया का इतिहास है।पेड़ बचेगा तो इतिहास भी बचेगा।क्योंकि इसका इतिहास बापू के यादों से जुड़ा हुआ है।

बाईट....बेबी आलम.....स्थानीय मुखिया

वीओएफ...3...इस नीम के पेड़ के सुख जाने से गांधीवादी भी परेशान हैं।गांधीवादियों का कहना है कि शुरु में शासन और प्रशासन ने इस पेड़ को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया।गांधीवादी जिला प्रशासन को इस पेड़ को सुखने के लिए जिम्मेवार मानते हैं।

बाईट....व्रज किशोर सिंह.....गांधीवादी



Conclusion:वीओ...4....पूर्वी चंपारण जिला मुख्यालय से नौ किलोमीटर दूर तुरकौलिया प्रखंड मुख्यालय में स्थित 120 बर्ष पुराना नीम का पेड़ अब इतिहास बन गया है।सुखा पेड़ अभी भी खड़ा है।लेकिन उसमें जान नहीं है।उसे फिर हरा-भरा करने का प्रयास वन विभाग ने शुरु किया है।जिलाधिकारी के निर्देश पर वन विभाग के अधिकारियों ने नीम के पेड़ की जांच की।तब पता चला कि पेड़ के चारो ओर बना सिमेंटेड चबूतरा के कारण वह सूख गया।क्योंकि नीम के पेड़ के जड़ को सिमेंटेड चबूतरे के कारण हवा और पानी मिलना बंद हो गया।लिहाजा,वन विभाग के अधिकारियों ने चबूतरा को तोड़ दिया और उसे हरा भरा करने का प्रयास शुरु किया।लेकिन उसमें उसे कामयाबी मिलती नहीं दिख रही है।बावजूद इसके जिला प्रशासन को विश्वास है कि वह इस पेड़ को बचाने में सफल होगा।

बाईट.....रमन कुमार....डीएम

वीओएफ......बहरहाल,महापुरुषों से जुड़ी स्थलों को संवारने के लिए सरकार ऐतिहासिक स्थलों का सौन्दर्यीकरण करती है। सौन्दर्यीकरण करने के क्रम में ऐतिहासिक स्थलों को नया रुप देने का दौर चला हुआ है।ऐसा हीं कुछ इस ऐतिहासिक नीम के पेड़ के साथ भी हुआ है।पेड़ के गुण-दोष की जानकारी के अभाव में सौन्दर्यीकरण के नाम पर अधिकारियों ने इसके जड़ के चारो ओर चबूतरा बना दिया।चबूतरा निर्माण से नीम के पेड़ के जड़ को बंद कर दिया गया।चबूतरा को पत्थर के टाईल्स और मार्बल को लगाकर इस जगह को सुंदर बनाने का प्रयास हुआ।जिस कारण पेड़ सूख गया है।ऐतिहासिक स्थलों का सौन्दर्यीकरण जरुरी है।लेकिन जानकारी के सहारे सौन्दर्यीकरण कराने में ऐतिहासिक चीजों के स्वरुप नष्ट नहीं होंगे।बल्कि उसकी ऐतिहासिकता हमेशा जागृत रहेगी।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.