मोतिहारी: पूर्वी चंपारण जिला की भूमि पर एक नए इतिहास की नींव रखने की शुरुआत हो रही है. रामराज्य के बाद कलियुग में "अश्वमेघ महायज्ञ" की तैयारियां मोतिहारी की धरती पर चल रही है. आयोजन को लेकर आ रही वैदिक और सैद्धांतिक अड़चनों को दूर करते हुए सुमेरु पीठाधीश्वर जगत गुरु शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती (Shankaracharya Narendranand Saraswati) ने इस महायज्ञ की आज्ञा दे दी है. शंकराचार्य नरेंद्रानंद ही इस यज्ञ का शुभारंभ करेंगे.
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2 अप्रैल से 10 अप्रैल तक होगा महायज्ञः मोतिहारी के सीकारिया बीएड कॉलेज के प्रांगण में होने वाले "अश्वमेघ महायज्ञ" को लेकर चांदी और सोना से निर्मित प्रतिकात्मक अश्व भी तैयार है. समाजसेवी शंभूनाथ सीकारिया (Social Worker Shambhunath Sikaria) ने इसकी जानकारी देते हुए धातु के प्रतिकात्मक अश्व को प्रदर्शित किया. उन्होंने बताया कि अश्वमेघ महायज्ञ एक अप्रैल से 10 अप्रैल तक होगा.
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'अश्वमेघ महायज्ञ को लेकर चार अड़चने थीं. जिसमें घोड़ा को लेकर मुख्य अड़चन आ रही थी. लेकिन वर्तमान प्रजातांत्रिक परिस्थिति में धातु निर्मित घोड़ा पर निर्णय हुआ. जिसके लिए चांदी निर्मित अश्व पर सोना का परत चढ़ाया गया है. जो वाहन द्वारा विभिन्न धार्मिक स्थलों का भ्रमण करेगा. भ्रमण के बाद वापस लौटे अश्व का अग्नि साक्षात्कार कर उसमें प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी और उसे स्थापित कर दिया जाएगा. अश्वमेघ महायज्ञ का संचालन विभिन्न धार्मिक स्थलों से आए 108 आचार्य करेंगे'- डॉ. शंभूनाथ सिकारिया, आयोजक अश्वमेघ महायज्ञ
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भारत को विश्व गुरु बनाने के उद्देश्यः विश्व कल्याण और भारत को विश्व गुरु बनाने के उद्देश्य से मोतिहारी में अश्वमेघ महायज्ञ का आयोजन किया जाएगा. अश्वमेघ महायज्ञ का अश्व 2 अप्रैल को विभिन्न धार्मिक स्थलों के लिए निकलेगा. जो मोतिहारी से चलकर अयोध्या, बनारस, पटना, मुजफ्फरपुर, जनकपुरधाम और लवकुश आश्रम के अलावा कई स्थानों का भ्रमण करने के बाद 07 अप्रैल को वापस मोतिहारी लौटेगा.
बता दें कि रामायण काल में प्रभु श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया था. जिसका वर्णन तुलसीदास रचित रामायण में मिलता है. उसके बाद द्वापर युग में युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया था. लेकिन त्रेतायुग के बाद कलियुग में डॉ. शंभूनाथ सिकारिया ने अश्वमेघ महायज्ञ करने की ठानी है. जिसकी तैयारियां चल रही है.
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