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पशु प्रेम की मिसाल: ग्रामीणों ने बंदर का किया अंतिम संस्कार, अब हो रहा श्राद्ध कर्म

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Published : Nov 22, 2020, 9:14 PM IST

कुशेश्वरस्थान प्रखंड के केवटगामा गांव में 10 साल से एक बंदर रह रहा था. ग्रामीणों ने मंदिर में शरण दी थी. शांत स्वभाव का होने के कारण लोगों का उससे दोस्ती हो गई थी. शनिवार को उसकी मौत हो गई. ग्रामीणों ने रविवार को हिंदू रीति रिवाज से उसका अंतिम संस्कार किया. अब श्राद्ध कर्म भी किया जा रहा है.

दरभंगा
दरभंगा

दरभंगा: जिले के सुदूर कुशेश्वरस्थान प्रखंड के केवटगामा गांव में जानवर और इंसानों के बीच प्रेम का अद्भुत उदाहरण देखने को मिला है. गांव में 10 साल से रह रहे एक बंदर की मृत्यु के बाद गांव के लोगों ने उसका अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाज के साथ किया. अंतिम संस्कार के बाद उसका श्राद्ध भी किया जा रहा है. ग्रामीणों की यह पहल इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है.

जानकारी के अनुसार केवटगामा गांव में 10 साल पहले कहीं से एक बंदर आकर रहने लगा था. शांत स्वभाव के इस बंदर से गांव के लोगों की जल्द ही दोस्ती हो गई. गांव के लोगों ने बंदर को राम जानकी मंदिर में शरण दी. बंदर मंदिर की छत पर रहने लगा. गांव के लोग बंदर को बजरंगबली का सेवक कह कर बुलाने लगे. लोग उसे मंदिर में चढ़ाया हुआ प्रसाद और भोजन भी नियम से कराते थे.

बंदर के शव के साथ ग्रामीण
बंदर के शव के साथ ग्रामीण

हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार
मंदिर के पुजारी राम स्वारथ दास बंदर से बहुत स्नेह करते थे. शनिवार की रात बंदर की मौत हो गई. इससे ग्रामीणों को गहरा दुख पहुंचा है. रविवार को लोगों ने हिंदू रीति रिवाज के साथ बंदर का अंतिम संस्कार किया. गांव के ही जयकिशुन मुखिया ने बंदर को मुखाग्नि दी.

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बंदर की ग्रामीणों से हो गई थी दोस्ती
मंदिर के पुजारी ने कहा कि बंदर 10 साल पहले कहीं से आया था और यहीं रहने लगा था. मंदिर में अन्न और फल के रूप में जो भी प्रसाद चढ़ाया जाता, वह बंदर को दे दिया जाता था. साथ ही उसे नियम से भोजन भी कराया जाता था. उन्होंने कहा बंदर बेहद शांत स्वभाव का था. उसकी गांव के लोगों से दोस्ती हो गई थी.

वहीं, बंदर को मुखाग्नि देने वाले जयकिशुन मुखिया ने कहा कि बंदर के मौत से गांव के लोगों में दुख का माहौल है. ग्रामीणों ने हिंदू रीति रिवाज के साथ बंदर का अंतिम संस्कार किया.

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