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Paddy Farming: रोहिणी नक्षत्र के आगमन के बाद भी बीज और पानी की कमी, सरकारी मदद नहीं मिलने से किसान परेशान

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Published : May 27, 2023, 10:50 AM IST

रोहिणी नक्षत्र के आगमन के कई दिन बाद भी धान के बीज और नहरों में पानी के लिए किसान सरकारी बाबू के कार्यालय का लगा रहे हैं. किसानों का कहना है कि कई तरह की समस्या है लेकिन सरकारी मदद नहीं मिल रही है. वहीं, जिला कृषि पदाधिकारी का कहना है कि मौसम बिचड़ा डालने के अनुकूल नहीं है. तापमान बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है. ऐसे में किसान यदि बिचड़ा गिराते हैं तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ेगा.

बक्सर में किसान परेशान
बक्सर में किसान परेशान

धान के बीज और सिंचाई की कमी से किसान परेशान

बक्सर: 25 मई को ही रोहिणी नक्षत्र का आगमन हो गया है. उसके बाद भी सरकार ना तो अन्नदाता किसानों को बीज उपलब्ध करा पाई है और ना ही नहरों में पानी आया. धान का बिचड़ा डालने के लिए परेशान किसान कृषि कार्यालय से लेकर समाहरणालय का चक्कर लगा रहे हैं. उसके बाद भी उनकी समस्याओं का निदान करने की बजाए पटना से लेकर बक्सर तक अधिकारी केवल ऐसी कमरे में बैठक कर कागजों पर ही योजना उपलब्ध करा रहे हैं. सरकारी योजना का लाभ किसानों को कितना मिल रहा है, इसकी पड़ताल करने जब ईटीवी भारत की टीम जब खेतों की पगडंडियों के सहारे किसानों तक पहुंची, तो सरकार की सारी योजना केवल कागजों पर ही दिखाई दी.

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मुश्किल में जिले के अन्नदाता: जिला कृषि कार्यालय से मिली रिपोर्ट के अनुसार जिले के ग्यारह प्रखण्ड में रजिस्टर्ड कुल किसानों की संख्या 2 लाख 22 हाजर 916 है, जबकि 20 हजार से अधिक ऐसे मजदूर किसान हैं जिनकी पहुंच न तो कृषि कार्यालय तक है और ना ही जिनके पास कोई भी कृषि विभाग के कर्मी ही पहुंचते हैं. जिसके कारण जमीनी किसान होने के बाद भी सरकार का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है. जिसके कारण उनके बच्चे अब शहरों में मजदूरी करने के लिए पलायन कर रहे हैं.

बड़े किसानों के दरवाजे पर कृषि कर्मी देते हैं दस्तक: भारत सरकार एवं बिहार सरकार के द्वारा किसानों के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं का लाभ 44 डिग्री तापमान में खेतों में दिन रात काम करने वाले किसानों को नही मिल पा रहा है. अपने बच्चों की पढ़ाई से लेकर मां-बाप की दवाई तक के लिए कर्ज में डूबे अन्नदाताओं के दरवाजे पर ना तो कृषि सलाहकार जाते हैं और ना ही कृषि समन्वयक जाते हैं.

120 रुपये किलो मिल रहा है धान का बीज: सरकार जिले में किसी भी किसानों को अब तक बीज उपलब्ध नहीं करा पाई है. जिसके कारण जो छोटे किसान हैं, वह मौसम के प्रतिकूल होने के बावजूद भी अपने फौलादी हौसले की बदौलत ₹120 किलो प्राइवेट बीज खरीदकर बिचड़ा डालना शुरू कर दिए हैं. खेतों में बिचड़ा डाल रहे किसान विजय गोंड़ और लालबिहारी गोंड़ ने बताया कि रोहिणी नक्षत्र के आगमन के बाद तीन दिन का समय गुजर गया. अब तक ना तो नहरों में पानी आयी और न ही धान का बीज मिला. एग्रीकल्चर फीडर से भी बहुत कम बिजली मिल पा रही है. ऐसे में दिन प्रतिदिन मुश्किलें बढ़ती जा रही है.

"परेशानी यह है कि रोहिणी नक्षत्र शुरू चढ़ गया है लेकिन बीज भी नहीं मिल रहा है और नहर में पानी भी नहीं है. सरकारी की ओर से भी कोई मदद नहीं मिल रही है. वहीं मौसम भी खराब होता जा रहा है"- लाल बिहारी गोंड़, किसान

क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक?: किसानों के सामने उत्पन्न हुए इस समस्या को लेकर जिला कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर मन्धाता सिंह ने बताया कि रोहिणी नक्षत्र में जो किसान बिचड़ा गिरा देते हैं. उनके लिए खरीफ के साथ ही साथ रवि फसल के लिए काफी लाभदायक होता है, क्योकि अलग-अलग प्रजाति के जो धान है वह अलग-अलग समय में तैयार होता है. जब किसान इस मई महीने में बिचड़ा डालेंगे तो जो 155 दिन में तैयार होने वाला धान है, वह नवंबर माह के पहले सप्ताह में कट जाएगा और समय से किसान रबी फसल की बुआई कर लेंगे लेकिन यदि समय से किसान बिचड़ा नहीं डाल पाए तो, फिर उन्हे रबी फसल के लिए भी नुकसान उठाना पड़ेगा.

क्या कहते हैं जिला कृषि पदाधिकारी?: उधर किसानों के इस परेशानी को लेकर जब जिला कृषि पदाधिकारी मनोज कुमार से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अभी मौसम बिचड़ा डालने के अनुकूल नहीं है. तापमान बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है. ऐसे में किसान यदि बिचड़ा गिराते हैं तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ेगा. राजधानी पटना में बैठक होने के बाद 27-28 मई से किसानों के लिए बीज उपलब्ध कराने का काम शुरू होगा. अभी तो यह देखा जा रहा है कि जलवायु अनुकूल कौन ऐसा बीज है, जो किसानों को दिया जाए.

बक्सर में किसान परेशान: गौरतलब है कि जिले के कुल ग्यारह प्रखंडों में 2 लाख 22 हजार 916 रजिस्टर्ड किसान हैं, जबकि 2 लाख 42 हजार किसानों के द्वारा कृषि कार्य किया जाता है. इस बार 1 लाख 13 हजार हेक्टेयर भूमि पर धान फसल की बुवाई का लक्ष्य रखा गया है लेकिन समय से किसानों को ना तो बीज मिल पाया और ना ही नहरों में पानी ही आया. आजादी के 75 साल बाद भी देश के अन्नदाता सरकारी बाबुओं की मेहरबानी के ही मोहताज हैं.

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