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सिविल इंजीनियर नौकरी छोड़ किया मछली पालन, ले रहा अब इंडस्ट्रीज का रूप

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Published : Nov 2, 2020, 12:41 PM IST

भोजपुर
भोजपुर

मत्स्य पालन विभाग के अधिकारी जिले भर के कई किसानों को लेकर इनके यहां पहुंचे हैं और उन्हें बायोफ्लॉक विधि से मत्स्य उत्पादन के तौर-तरीके दिखाकर प्रेरित किया है. मत्स्य पालन विभाग ने इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए किसानों के प्रशिक्षण और सब्सिडी का भी प्रावधान किया है.

भोजपुर(कोइलवर): नगर पंचायत कोइलवर के 35 साल के युवा किसान यशवंत सिंह उर्फ कुणाल पूरे जिले के मछली पालकों के लिए नजीर बन गए हैं. इन्होंने जिले में मछली पालन की आधुनिकतम तकनीक बायोफ्लॉक विधि को अपने एक सहयोगी के साथ मिलकर अपनी सिविल इंजीनियर की नौकरी छोड़कर अपनाया है. जिसमें कम खर्च, कम चारा, कम जगह और कम पानी में मछली का ज्यादा उत्पादन संभव है.

व्यवसायी यशवंत सिंह ने प्रखण्ड के सकड्डी-जमालपुर पथ के बालक बाबा ब्रह्म के पास अपनी आठ कट्ठे जमीन पर सतरह टैंक शुरुआती तौर पर लगाए थे. अभी के समय में इन्होंने इसका विस्तृत रूप देते हुए 23 टैंक तारपोलिन का और पांच सीमेंटेड टैंक जो पांच हजार लीटर का है, लगा लिया है व एक इंडस्ट्रीज का रूप दे दिया है. जो तृषा तृषाण के नाम से जाना जाता है.

देखें रिपोर्ट.

बायोफ्लॉक विधि से मत्स्य उत्पादन
व्यवसायी यशवंत सिंह बताते हैं कि एक टैंक से साल में कम से कम 12 सौ किलो मछली का उत्पादन करेंगे. टैंक में सिधी, पंगास, तिलापिया का जीरा डाला है. जीरा कोलकाता से खरीदकर मंगवाया है. जिसकी चर्चा पूरे जिले में है. न्यू इंडिया मूवमेंट 2017 के अंतर्गत नीली क्रांति को गति देने के लिए इसकी शुरुआत की गई है. बता दें कि मत्स्य पालन विभाग के अधिकारी जिले भर के कई किसानों को लेकर इनके यहां पहुंचे हैं और उन्हें बायोफ्लॉक विधि से मत्स्य उत्पादन के तौर-तरीके दिखाकर प्रेरित किया है. मत्स्य पालन विभाग ने इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए किसानों के प्रशिक्षण और सब्सिडी का भी प्रावधान किया है.

किसान को किया जा रहा हैं लाभान्वित
इस बाबत व्यवसायी यशवंत सिंह और उनके सहयोगी किशन सिंह ने बताया कि हमारे यहां जिला ही नहीं बल्कि पूरे देश के करीब-करीब राज्य से लोग आते हैं और प्रशिक्षण लेकर जाते हैं. साथ ही बताते हैं कि हमारे पास प्रशिक्षण के साथ-साथ उचित मूल्य पर बीज (जीरा) और फीड के साथ मछली को देखकर उसके बीमारियों को बताकर उपचार का भी व्यवस्था है. खाश बात यह कि इस व्यवसाय से जुड़ने वाले किसानों को सरकारी स्तर पर सहायता और अनुदान से सम्बंधित जानकारी उपलब्ध कराई जाती है. हजारों किसान यहां से लाभान्वित हो रहे हैं.

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