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परीक्षा पास होने के बाद भी 6 साल तक सर्टिफिकेट नहीं देने पर HC सख्त, BSEB पर लगाया 5 लाख का जुर्माना

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Published : Jul 28, 2022, 10:51 PM IST

patna high court
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पटना हाईकोर्ट ने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (Bihar School Examination Board) पर जुर्माना लगाया है. स्टूडेंट को 6 साल बाद भी मार्कशीट नहीं दिए जाने के मामले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए बीएसईबी पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. पढ़ें पूरी खबर...

पटना: पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने मैट्रिक परीक्षा पास करने के 6 साल बाद भी मार्कशीट नहीं दिए जाने के मामले पर बहुत गम्भीरता से लिया है. जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा ने सरस्वती कुमारी की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए बिहार स्कूल इग्जामिनेशन बोर्ड पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया (Patna HC Imposes Fine On BSEB) है. हाईकोर्ट ने बीएसईबी को इस धनराशि को याचिकाकर्ता के खाते में देने का निर्देश दिया है. याचिकाकर्ता ने 29 मई 2016 में मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास किया था. बोर्ड द्वारा प्रमाण पत्र 28 अप्रैल, 2016 को तैयार किया गया और प्रमाण पत्र 29 मई, 2019 को तैयार कर हस्ताक्षरित किया गया था.

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BSEB पर HC ने लगाया जुर्मान : सचिव द्वारा प्रमाण पत्र और अंक-पत्र पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद बोर्ड ने प्रमाण पत्र को छात्रों के हित में देने पर रोक लगा दी, बोर्ड का कथन था कि जिस स्कूल में छात्र पढ़ रहे थे, उस स्कूल ने बोर्ड को निबंधन राशि जमा नहीं की थी. इस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए बोर्ड पर पांच लाख रुपये का अर्थदंड लगाया. एक अन्य आदेश में हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए 8 साल तक याचिकाकर्ता की इंटर परीक्षा के परिणाम को रोके जाने पर बीएसईबी पर 10 लाख रुपये का अर्थदंड लगाया. कोर्ट ने इस धन राशि को याचिकाकर्ता के खाते में देने का निर्देश दिया है.

जुर्माना की राशि याचिकाकर्ता को देने का निर्देश : जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा ने गौरी शंकर शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि बोर्ड के उदासीन रवैये के कारण एक छात्रा का उज्ज्वल भविष्य खराब हो गया. समय-समय पर दिए गए अभ्यावेदन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. इस याचिका को दायर करने के बाद ही परिणाम घोषित किया गया. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसकी बेटी ने वर्ष 2012 में इंटर की परीक्षा दी थी, लेकिन वर्ष 2020 तक परीक्षा के आठ साल बीत जाने के बाद भी उसका परिणाम बीएसईबी द्वारा घोषित नहीं किया गया. आखिरकार याचिकाकर्ता को कोर्ट का सहारा लेना पड़ा और कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उसका परिणाम घोषित किया गया.

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