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ओमिक्रोन का BA.2 सब वैरिएंट ज्यादा संक्रामक, जानें कितना खतरनाक है इसका कम्युनिटी ट्रांसमिशन?

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Published : Feb 5, 2022, 10:51 PM IST

कोरोना का नया वैरिएंट
कोरोना का नया वैरिएंट

कोरोना का नया वैरिएंट (New Variant of Corona) ओमिक्रोन चर्चा का विषय बना हुआ है. ऐसे में इसके सब वैरिएंट के साथ कम्युनिटी ट्रांसमिशन से जुड़े विभिन्न विषयों पर पटना के IGIMS में एकमात्र जिनोम सीक्वेंसिंग लैब के वैज्ञानिक डॉक्टर अभय कुमार ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

पटना: बिहार में कोरोना संक्रमण (Corona Third Wave In Bihar) की तीसरी लहर में ओमिक्रोन के सब वैरिएंट BA.2 की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है और कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस वैरिएंट की वजह से मार्च के समय में एक बार फिर से कोरोना संक्रमण की वेव आ सकती है. हालांकि, बिहार में ओमिक्रोन की वजह से तीसरी लहर का पीक अभी आकर कम हुआ है. बिहार में ओमिक्रोन के BA.2 वैरिएंट की ही अधिकता देखने को मिली. चिकित्सा जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार में ओमिक्रोन का कम्युनिटी ट्रांसमिशन हो चुका है.

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पटना आईजीआईएमएस में जिनोम सीक्वेंसिंग लैब (Genome Sequencing Lab at IGIMS Patna) के वैज्ञानिक डॉक्टर अभय कुमार ने बताया कि कम्युनिटी ट्रांसमिशन किसी भी महामारी की एक ऐसी स्टेज है, जिसमें यह ट्रेस नहीं हो पाता की इंफेक्शन कहां से हुआ और इन्फेक्शन का सोर्स क्या है. जब इंफेक्शन की चेन को ट्रेस नहीं किया जा सके, उस स्टेज को कम्युनिटी ट्रांसमिशन कहते हैं और इस दौरान टारगेट एरिया में इंफेक्शन के मामले 50 फीसदी से अधिक हो जाते हैं. डॉक्टर अजय कुमार ने बताया कि बिहार में अभी संक्रमण की तीसरी लहर में दो बार जब कुछ रेंडमली सिलेक्टेड पॉजिटिव सैंपल के जिनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया की गई, उसमें यह देखने को मिला कि लगभग सभी सैंपल का रिपोर्ट ओमिक्रोन मिल रहा है.

रिपोर्ट से यह कहा जा सकता है कि बिहार के पॉपुलेशन में ओमिक्रोन का कम्युनिटी ट्रांसमिशन हो चुका है. किसी भी इंफेक्शन का ट्रांसमिशन लोगों के लिए अच्छा नहीं होता लेकिन फैक्ट है कि ओमिक्रोन का कम्युनिटी ट्रांसमिशन प्रदेश में हुआ है. उन्होंने बताया कि ओमिक्रोन कोरोना के अब तक के एक्जिस्टिंग वैरिेंट की तुलना में सबसे माइल्ड है. इसके पहले अल्फा हो या डेल्टा हो या अन्य इससे घातक हैं.

डॉ. अभय कुमार, जिनोम सीक्वेंसिंग लैब के वैज्ञानिक, IGIMS
डॉ. अभय कुमार, जिनोम सीक्वेंसिंग लैब के वैज्ञानिक, IGIMS

''ओमिक्रोन का मूल स्वरूप B.1.1.529 है, जबकि इसके सब वैरिएंट तीन हैं. पहला है BA.1, दूसरा है BA.2 और तीसरा है BA.3. बिहार में ओमिक्रोन के सब-वैरिएंट BA.2 ही लगभग सभी में देखने को मिले हैं. संक्रमण की तीसरी लहर में दो बार जिनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया की गई है. इसमें पहली बार 32 सैंपल की जांच की गई, जिसमें 4 डेल्टा मिले और 28 में ओमिक्रोन मिला. जिसमें तीन में मूल वैरिएंट B.1.1.529 मिला. 24 सैंपल में ओमिक्रोन का BA.2 सब-वैरिएंट मिला और एक सैंपल में ओमिक्रोन का BA.1 मिला. दूसरी बार जब 46 सैंपल की जांच की गई तो सभी सैंपल में ओमिक्रोन की पुष्टि हुई और सभी में सब-वैरिएंट BA.2 मिला. रिपोर्ट के अनुसार कह सकते हैं कि बिहार में ओमिक्रोन के सब-वैरिएंट BA.2 का ही कम्युनिटी ट्रांसमिशन हुआ है.''- डॉ. अभय कुमार, जिनोम सीक्वेंसिंग लैब के वैज्ञानिक, IGIMS

डॉक्टर अभय कुमार ने बताया कि BA.1 उन लोगों में डिटेक्ट हो रहा है जिनका फॉरेन ट्रैवल हिस्ट्री रहा है. कोई भी वायरस जब भी फैलता है वह जैसे जैसे आगे जाता है म्यूटेंट होता है. वायरस जब एक शरीर से दूसरे शरीर में अपनी कॉपी बनाता है तो फोटो कॉपी की तरह नहीं होता. वायरस जब एक शरीर से दूसरे शरीर में जाता है, उसमें अपना कॉपी बनाना शुरू करता है और इसी दौरान उसमें म्यूटेशन आता है. फॉरेन ट्रैवल हिस्ट्री वाले जो लोग आए और ओमिक्रोन से संक्रमित हुए. उनसे जब दूसरे लोग संक्रमित हुए. इस दौरान वायरस म्यूटेंट कर गया और इसके सब वैरिएंट मिलने लगे. भारत में अभी ओमिक्रोन के सब-वैरिएंट BA.3 के एक भी केस की पुष्टि नहीं हुई है.

डॉक्टर अभय कुमार ने बताया कि ओमिक्रोन को लेकर जो कुछ भी उनकी स्टडी है और देशभर में जो स्टडी हुई है यही पुष्टि हुई है कि ओमिक्रोन का सब-वैरिएंट BA.2 की संक्रामकता अधिक है. यह संक्रमण के मूल वैरिएंट और BA.1 से अधिक संक्रामक है, लेकिन गंभीरता के मामले में सभी बराबर हैं. हालांकि, अभी भी घातकता के मामले में कौन सा सब वैरिएंट अधिक घातक है कहना जल्दीबाजी है, लेकिन ओमिक्रोन कोरोना के अन्य वैरिएंट से सबसे कम घातक है. BA.1 और BA.2 मे घातकता किसकी अधिक है, स्वास्थ्य मंत्रालय पता लगाने का काम कर रहा है. सभी स्टेट के लैब से डाटा कलेक्ट किया जा रहा है. भारत के कुछ स्टेट में BA.1 और कुछ में BA.2 अधिक मिले हैं.

उन्होंने बताया कि कुछ लोगों का यह कहना बिल्कुल गलत है कि जब हमें पता चल गया है कि कम्युनिटी में ओमिक्रोन का कम्युनिटी ट्रांसमिशन हो चुका है तो ओमिक्रोन का पता लगाने के लिए जिनोम सीक्वेंसिंग बंद कर दिया जाए, यह पैसे की बर्बादी है. उन्होंने कहा कि जब तक पैंडेमिक कंट्रोल नहीं होता है तब तक नियमित कुछ सैंपल के जिनोम सीक्वेंसिंग होती रहनी चाहिए. जिनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया लंबी और खर्चीली होती है, लेकिन फिर भी यह होते रहनी चाहिए.

ताकि जिनोम सीक्वेंसिंग से यह पता चल सके कि वायरस कहां म्यूटेंट हो रहा है और म्यूटेंट होने के बाद इसके बिहेवियर में कितना चेंज आ रहा है. संक्रामकता कितनी बढ़ रही है या घट रही है. वायरस का क्लीनिकल फीचर कितना बदल रहा है. गंभीर बीमारी करने की क्षमता बढ़ रही है या घट रही है. वैक्सीन के असर को कितना चकमा दे पा रहा है. इन सब तमाम बातों की जानकारी प्राप्त की जा सके और यदि कहीं किसी एरिया में वायरस म्यूटेंट कर रहा है तो तुरंत जरूरी कदम उठाए जा सकें और इसके आगे के फैलाव को रोका जा सकें.

डॉक्टर अभय कुमार ने बताया कि जिनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया लंबी होती है, लेकिन जिनोम सीक्वेंसिंग से जब कोई एक वैरिएंट का पता लग जाता है तो उस स्पेशल वैरिएंंट का पता लगाने के लिए कई किट बन जाते हैं और उस वैरीअंट का पता लगाने के लिए कम समय में पता लगा लिया जाता है, लेकिन जब उसमें म्यूटेशन होता है तो वह किट पता नहीं लगा पाता. उन्होंने कहा कि देश में कुछ लैबोरेट्रीज है, जहां आरटी पीसीआर बेस्ड ऐसेट तैयार किए गए हैं, एक टाटा ने ओमिश्योर बनाया है. इसमें पहले आरटी पीसीआर से यह पता चलता है कि संक्रमण है या नहीं और फिर उसके बाद संक्रमण निकलने पर आरटी पीसीआर कर यह पता करते हैं कि ओमिक्रोन है या नहीं.

लेकिन, यदि ओमिक्रोन में म्यूटेशन हो तो यह नहीं पकड़ पाता है. किसी पर्टिकुलर वैरिएंट के लिए आरटी पीसीआर बेस्ड डिटेक्शन किट डिजाइन किए गए हैं और भारत में भी इस प्रकार के किट डिजाइन किए गए हैं, जिससे 3 से 4 दिनों में कोरोना की रिपोर्ट के साथ-साथ किस वैरिएंट का संक्रमण है यह भी पता चल जाता है, लेकिन आईजीआईएमएस में जिनोम सीक्वेंसिंग की पूरी प्रक्रिया के तहत सीक्वेंसिंग की जाती है और इस दौरान रिपोर्ट आने में 8 से 9 दिन का समय लगता है.

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