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बिहार में 5 साल बाद फिर से शराबबंदी के लिए 'शपथ', सवाल- पूर्ण सफलता कब मिलेगी?

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Published : Nov 26, 2021, 1:30 PM IST

बिहार में 5 साल बाद फिर से शराबबंदी के लिए 'शपथ'
बिहार में 5 साल बाद फिर से शराबबंदी के लिए 'शपथ'

बिहार में जहरीली शराब कांडों में 40 से अधिक लोगों की मौत के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज एक बार फिर से सभी को शपथ (Oath For Not Drink Liquor) दिलायी है. 1 अप्रैल 2016 में कानून लागू हुआ था तब भी ऐसी ही शपथ दिलवाई गई थी. अब देखनेवाली बात होगी इस बार सरकार को कानून लागू करवाने में कितनी सफलता मिलती है. पढ़ें पूरी खबर...

पटना: बिहार में 26 नवंबर यानी आज मद्य निषेध दिवस मनाया जा रहा है. सभी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को एक बार फिर से शराबबंदी (Liquor Ban In Bihar) की शपथ दिलायी गयी है. इससे पहले भी शराब नहीं पीने की (Oath For Not Drink Liquor) की शपथ दिलाई गई थी. साथ ही मानव श्रृंखला का भी निर्माण कराया गया था. लेकिन करीब 6 साल के दौरान जिस बड़े पैमाने पर शराब की बरामदगी हो रही है. बड़े पैमाने पर देसी शराब बनाए जा रहे हैं. जहरीली शराब से लोगों की मौत भी हो रही है तो शराबबंदी को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं. इसलिए आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को पुन: यह शपथ दिलवाई है कि आजीवन शराब नहीं पीनी है. साथ ही दूसरों को भी शराब का सेवन नहीं करने के लिए प्रेरित करना है.

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बिहार में शराबबंदी, कब क्या हुआ : राज्य में 1977 में जब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने शराब बंदी लागू कराई थी और इसकी घोषणा मार्च 1977 में राज्यपाल जगन्नाथ कौशल ने किया था लेकिन कर्पूरी ठाकुर शासन काल में लागू शराबबंदी को डेढ़ साल बाद ही वापस लिये जाने का फैसला लिया गया. जब राम सुंदर दास मुख्यमंत्री बने तो उनकी नेतृत्व वाली सरकार ने शराबबंदी वापस करने का फैसला लिया और उस समय इसका बड़ा कारण यह था कि बड़े पैमाने पर शराब की कालाबाजारी होने लगी थी.

30 हजार करोड़ की पैरेलल इकोनॉमी : सूबे इन दिनों बड़े पैमाने पर शराब की कालाबाजारी हो रही है. कहा जा रहा है कि आज 30 हजार करोड़ की पैरेलल इकोनॉमी खड़ा हो गई है. 2014 में जब बिहार सरकार को शराब की बिक्री से 3300 करोड़ का राजस्व हासिल हुआ था तो कुल राजस्व बिहार का 25621 करोड़ था. वित्तीय वर्ष 2015- 16 में शराब की बिक्री से 4000 करोड़ का राजस्व प्राप्त होने का लक्ष्य रखा गया था जबकि कुल राजस्व का लक्ष्य 30708 करोड़ लगाया गया था. बिहार में शराबबंदी नहीं होता तो विशेषज्ञों का अनुमान है कि अब शराब की बिक्री से 10000 करोड़ से अधिक का राजस्व प्राप्त होता.

अप्रैल 2016 में दूबारा शराबबंदी : बिहार में एक समय नीतीश कुमार के शासन में ही गांव गांव तक शराब की बिक्री शुरू हो गई थी उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते थे कि लोग जितना शराब पिएंगे सरकार को उतनी राजस्व प्राप्त होगी. लेकिन जब शराबबंदी की मांग तेज हुई तो नीतीश कुमार ने एक झटके में ही शराबबंदी लागू कर दी. 1 अप्रैल 2016 में शराबबंदी लागू की गई. शुरू में देसी शराब बंद किया गया लेकिन कुछ ही दिन में पूर्ण शराब बंदी लागू कर दी गई.

शराबबंदी पर सवाल : शराबबंदी को लेकर बिहार सरकार ने देश में सबसे सख्त कानून बनाया है. शराब पीने से लेकर बेचने तक तक अपराध है. रखने से लेकर निर्माण कर कहीं ले जाने तक अपराध है. सख्त कानून के कारण ही 3 लाख से अधिक लोगों की गिरफ्तारियां हो चुकी है. इसलिए विपक्ष के साथ कई बार सहयोगी दल के नेता भी शराबबंदी को लेकर सवाल खड़ा करते रहे हैं. हाल के दिनों में जितने बड़े पैमाने पर जहरीली शराब से लोगों की मौत हुई है उसके कारण सरकार की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं.

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शपथ दिलाने का निर्णय : ऐसे में एक बार फिर नीतीश कुमार शराबबंदी को लेकर अभी भी अड़े हुए हैं. पिछले दिनों 7 घंटे तक समीक्षा बैठक भी की. इस दौरान अधिकारियों की जमकर क्लास भी लगाई और सबको टास्क दिया जिम्मेवारी भी तय की. जन जागरूकता अभियान चलाने का भी फैसला हुआ और उसी के तहत आज से फिर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी सरकारी अधिकारियों को शराब नहीं पीने की शपथ दिलायी है.

देश के अन्य राजों में शराबंदी का हाल : देश में शराबबंदी गुजरात, नागालैंड, मणिपुर और लक्ष्यदीप में भी है. केरल में भी वहां की सरकार ने चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी का फैसला लिया है. जहां हर वर्ष 10% शराब की दुकानों को बंद किया जा रहा है. हरियाणा में मुख्यमंत्री बंसीलाल कि सरकार ने शराबबंदी लागू की थी लेकिन बाद में उसे वापस ले लिया. उसी तरह एनटी रामा राव जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उनके समय में आंध्र प्रदेश में शराब बंदी लागू की गई थी लेकिन जब चंद्रबाबू नायडू मुख्यमंत्री बने तो शराब बंदी को खत्म कर दिया. 1995 में मिजोरम में भी शराब बंदी लागू हुई थी लेकिन 2007 में उसे संशोधित कर दिया गया.

कानून का सकारात्मक असर: राज्य में शराबबंदी लागू होने के बाद आद्री से एक सर्वे भी करवाया गया और उसमें कई तरह के चौकानेवाले परिणाम भी आए है. जिसमें लोगों ने कपड़ा से लेकर खानपान तक में खर्च कई गुना बढ़ा दी है. बच्चों की शिक्षा पर अधिक खर्च और घरेलू हिंसा से लेकर अन्य मामले में भी कमी आई. अन्य रिपोर्टों में भी कई पॉजिटिव चीजें देखने को मिली हैं. शराब पीकर सड़क दुर्घटना के बिहार में एक भी मामले सामने नहीं आए हैं. कुल मिलाकर शराबबंदी के कई सकारात्मक पहलू भी देखने को मिले हैं.

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नीतीश शराबबंदी पर कायम : बिहार में पूर्ण शराबबंदी है. इसका मतलब सूबे में ना तो किसी तरह की शराब की बिक्री हो सकती हैं ना ही निर्माण हो सकता है ना ही कोई पी सकता है. लेकिन जितने बड़े पैमाने पर शराब बरामद हो रही है. कानून उल्लंघन के मामले में लोगों की गिरफ्तारियां हो रही है. जिससे अब शराबबंदी पर सवाल खड़े हो रहे हैं. हालांकि नीतीश कुमार पूर्ण शराबबंदी को लेकर अभी भी अडिग हैं.

ओथ से लगेगी रोक ? : पिछले दिनों 7 घंटे तक मैराथन समीक्षा बैठक की थी और आज एक बार फिर से जन जागरूकता के लिए अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक को शपथ दिला रहे हैं. जनप्रतिनिधियों को भी शपथ दिलाया जा रहा है. कुल मिलाकर सरकार शराब बंदी को सफल बनाने के लिए दोबारा शपथ दिला रही है. ऐसे में देखनेवाली बात होगी सरकार की इस बड़ी शपथ कार्यक्रम से से कितनी सफलता मिलती है, ये आनेवाले समय में पता चलेगा.

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