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एक बार फिर बिहार में नक्सली हुए एक्टिव, पूर्व IPS बोले- नक्सलियों से लड़ना नीतीश सरकार की प्राथमिकता में नहीं

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Published : Nov 24, 2021, 5:28 PM IST

Updated : Nov 25, 2021, 12:38 PM IST

बिहार में लाल आतंक
बिहार में लाल आतंक

एक बार फिर से बिहार में लाल आतंक (Naxal in Bihar) के कहर से लोग दहशत में है. करीब 11 साल बाद नक्सली एक्टिव (Naxal active in Bihar) हो गए हैं. बिहार के पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ दास (Former IPS Amitabh Das) ने नीतीश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि 'सीएम नीतीश की प्राथमिकता में नक्सलियों से लड़ना नहीं है.'

पटना: बिहार में एक बार फिर से 11 साल बाद नक्सली एक्टिव (Naxal active in Bihar) हो गए हैं. गया में कथित नक्सलियों ने 4 लोगों को फांसी पर लटका कर हत्या (Naxal attack in Gaya) कर दी थी. वहीं, औरंगाबाद में किसान भवन और मोबाइल टावर में हमले के साथ-साथ मधुबनी जिले में एक युवा पत्रकार की हत्या की वारदात (Naxal attack in Madhubani) को अंजाम दिया गया है.

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बता दें कि इससे पहले फरवरी 2010 में जमुई के फुलवरिया गांव में ऐसी ही घटना (Naxal attack in Jamui) घटित हुई थी, तब पूरे गांव को घेर कर नक्सलियों द्वारा गोलियां बरसाई गई थी. इस घटना में 2 महिला और एक बच्चे समेत 12 लोगों की मौत हुई थी. सामाजिक और राजनीतिक हलचलों पर नजर रखे तो लोगों का मानना है कि बिहार में नक्सली वारदात इतिहास में पहली ऐसी घटना हुई है जिस में नक्सलियों द्वारा मुखबिरी के आरोप में पुरुष ही नहीं महिलाओं को भी फांसी पर लटका दिया.

देखें रिपोर्ट

बिहार सहित देश के कुछ राज्य में जिस तरह से नक्सली फिर से एक्टिव दिख रहे हैं, उसको लेकर बिहार के पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ दास ने कहा कि विगत कुछ दिन पहले बिहार के गया जिले में नक्सलियों द्वारा चार लोगों को मारकर फांसी पर लटका दिया गया है और सरकार ने चुप्पी साध रखी है.

''विगत कुछ साल पहले केंद्र सरकार ने नक्सल प्रभावित राज्यों में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन ग्रीन हंट की शुरुआत की थी, परंतु नीतीश कुमार ने इस ऑपरेशन को अपनाने से मना कर दिया था. उन्होंने कहा था कि हम विकास के माध्यम से नक्सलियों का खात्मा करेंगे.''- अमिताभ दास, पूर्व आईपीएस अधिकारी

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पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ दास (Former IPS Amitabh Das) ने कहा कि पहले बिहार पुलिस में आईजी अभियान का पद हुआ करता था, जो कि सिर्फ नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाया करता था. उस पद को भी नीतीश सरकार ने खत्म कर दिया. यही कारण है कि नक्सलियों का प्रभाव फिर से बिहार में बढ़ रहा है. उन्होंने नीतीश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि इनकी प्राथमिकता में नक्सलियों से लड़ना नहीं है. बतौर एसपी मैंने कई नक्सली क्षेत्रों में कार्य किया है जिसके लिहाज से मैं यह कह सकता हूं कि नक्सली चाहते हैं कि आंध्रप्रदेश से लेकर नेपाल तक उनका रेड कॉरिडोर बनाया जाए. दरअसल, नक्सली तिरुपति से पशुपति तक रेड कॉरिडोर बनाना चाहते हैं.

वहीं, पॉलिटिकल एक्सपर्ट डॉक्टर संजय की माने तो जो नक्सली पहले नैतिकता की बात करते थे, वह नक्सली नैतिकता को तोड़कर इस बार महिलाओं की भी हत्या कर रहे हैं. कहीं ना कहीं पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा चलाए जा रहे अभियान के तहत नक्सली खुद को कमजोर देख रहे हैं. उनको भारी राजस्व का नुकसान हो रहा है, जिस वजह से गया की घटना को उन्होंने अंजाम दिया. बिहार पुलिस और अर्धसैनिक बल के द्वारा कई मोस्ट वांटेड नक्सलियों की गिरफ्तारी की गई है. बहुत सारे नक्सलियों ने खुद भी सरेंडर किया है. हालांकि, राज्य सरकार सरेंडर करने वाले नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ना के उद्देश्य से उनके लिए रोजगार की व्यवस्था कर रही है.

दरअसल, नक्सलियों के द्वारा लिखी गई चिट्ठी में कहा गया है कि यह घटना मुखबिरी की सजा देने के लिए की गई है. मुखबिरी की वजह से साल 2021 के 16 मार्च को चार नक्सलियों की मौत हुई थी. दरअसल, नक्सलियों द्वारा 3 घंटे तक गांव में रहकर फांसी की घटना को अंजाम दिया गया था. अब सवाल यह है कि इतनी बड़ी घटना हो जाने के बावजूद भी ना तो विपक्ष और ना ही सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने आ रही है. दोनों ओर से चुप्पी साध ली गई है. हालांकि, इस घटना के बाद पुलिस मुख्यालय के विशेष सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार नक्सलियों के टॉप मोस्ट कमांडरों को चिन्हित कर बिहार और झारखंड पुलिस के द्वारा जॉइंट ऑपरेशन किया जा रहा है.

बता दें कि बिहार के गया, औरंगाबाद और जमुई समेत कुछ जिलों में बड़े नक्सली हमले (Naxal attack in Bihar) हुए हैं. 18 जुलाई 2016 को गया के डुमरिया नाले के पास नक्सलियों द्वारा किए गए आईडी ब्लास्ट में कोबरा के 10 जवान शहीद हुए थे. 4 जुलाई 2014 को जम्मू में सीआरपीएफ की सातवीं बटालियन के द्वितीय कमांडिंग ऑफिसर हीरा कुमार झा शहीद हुए थे. इसके अलावा कई अन्य नक्सली हमले में भी पुलिस और अर्धसैनिक बलों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था. दरअसल, पिछले 1 महीने में बिहार में नक्सली वारदातों का अंजाम देख कर अपनी धमक एक बार फिर से दिखाने की कोशिश नक्सलियों द्वारा की जा रही है.

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इसी साल जुलाई में जारी गृह मंत्रालय की रिपोर्ट (Home Ministry report on Naxal) के मुताबिक बिहार में 6 जिले नक्सल प्रभावित क्षेत्र से मुक्त किए गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 10 जिले नक्सल प्रभावित हैं, जबकि 6 जिलों से लाल आतंक खत्म हो चुका है. बिहार में अब औरंगाबाद, बांटा, गया, जमुई, कैमोर, लखीसराय, मुंगेर, नवादा, रोहतास और पश्चिम चंपारण नक्सलवाद से प्रभावित हैं. इनमें से 3 जिले गया, जमुई और लखीसराय अत्यधिक प्रभावित हैं.

आपको बता दें कि 6 नक्सली नेताओं की गिरफ्तारी और नक्सली नेताओं के मारे जाने पर उनके साथियों और नक्सली संगठन के द्वारा 3 दिनों के बंद की घोषणा की गई है. 23 नवंबर से 25 नवंबर तक बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और यूपी के सीमावर्ती क्षेत्रों में किए गए बंद के ऐलान के चलते सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस मुख्यालय ने भी अलर्ट कर रखा है.

नक्सली हमले में 6 राज्यों के नाम बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु सबसे आगे आते हैं. पिछले कुछ सालों में बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा नक्सली हमले हुए हैं. साल 2017 के अप्रैल माह में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले स्थित बुर्का पाल क्षेत्र में तैनात सीआरपीएफ जवानों पर नक्सलियों का हमला किया गया, जिसमें अंधाधुंध फायरिंग और ग्रेनेड हमले में भोजन कर रहे सीआरपीएफ के 74वीं बटालियन के 25 जवान शहीद हो गए थे. दरअसल, छत्तीसगढ़ आज भी नक्सलियों के नाम से जाना जाता है. लोगों के मन में नक्सलियों का आतंक खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है.

भारतीय इतिहास का वह काला दिन 6 अप्रैल 2010 को पूरा भारत सहम गया था, जब अचानक सुकमा जिले के चिंतलनार सीआरपीएफ कैंप के पास ताड़मेटला नाम की जगह पर सीआरपीएफ के जवान और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई थी, जिसमें 76 जवान शहीद हुए थे. 1000 नक्सलियों के बीच डेढ़ सौ जवान फंसे हुए थे. साल 1995 में नक्सलियों द्वारा नारायणपुर जिले में पुलिस की एक 1 बस उड़ा दी गई थी, जिसमें एक डीएसपी समेत 25 जवान शहीद हुए थे. इसके अलावा ताड़मेटला के अलावा 2008 में बीजापुर जिले के रानी बदली गांव में फोर्स के कैंप पर नक्सलियों द्वारा निशाना बनाया गया, जिसमें 55 जवान शहीद हुए थे.

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वहीं, 29 जुलाई से 3 अगस्त के बीच नक्सलियों द्वारा अपने मारे गए साथियों की याद में शहीद सप्ताह मनाया जा रहा है. तभी 21 जुलाई को जमुई स्थित चौरा रेलवे स्टेशन पर सुबह-सुबह नक्सलियों द्वारा स्टेशन को अपने कब्जे में ले लिया गया था, जिसके बाद पटना हावड़ा रेल मार्ग पर ट्रेनों का परिचालन घंटों रोका गया था. 18 जुलाई 2013 को बिहार के औरंगाबाद जिले के गांव अंचल में शाम के वक्त नक्सली हमले में तीन जवान सहित कुल 5 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. मारे गए जवान स्पेशल दिल्ली पुलिस यानी सैप के थे, जबकि दो अन्य निजी सुरक्षाकर्मी की मौत हुई थी. इस घटना को अंजाम देने के बाद नक्सलियों द्वारा हथियार की भी लूट की गई थी.

8 वर्ष पूर्व बिहार के धनबाद पटना एक्सप्रेस वे पर नक्सलियों द्वारा हमला कर एक बार फिर आरपीएफ के जवान को मौत के घाट उतार दिया गया था, जिसमें नक्सलियों द्वारा कुछ हथियार भी लूट लिए गए थे. 15 नवंबर 2005 की रात करीब 9 बजे 1000 नक्सलियों ने जहानाबाद जेल पर हमला कर दिया और रात के अंधेरे में गोलियों और बम के धमाकों से पूरा जहानाबाद थर्रा उठा था, जिसमें नक्सलियों ने सुरक्षाकर्मी और जेल में बंद कैदियों की हत्या तो की ही थी, सात ही अजय कानू समेत 300 कैदियों को छुड़ा कर फरार हो गए थे. हालांकि, उनमें से नक्सली अजय कानू अभी पटना के बेउर जेल में बंद है. यह भारत का सबसे बड़ा जेल अटैक था.

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Last Updated :Nov 25, 2021, 12:38 PM IST
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