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जुगाड़ तकनीक का कमाल, लाइटिंग कंडक्टर से होगी ठनका से होने वाली मौतों में कमी

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Published : Mar 27, 2022, 8:15 PM IST

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बिहार समेत पूरे देश में आकाशीय बिजली गिरने से सालाना सैकड़ों लोगों की मौत (lightning deaths in Bihar) हो जाती है. अब एक जुगाड़ तकनीक का इजाद किया गया है तो कम खर्च में जानमाल के नुकसान को कम कर सकता है. इस तकनीक के बारे में प्रत्येक जिले के सैकड़ों वॉलंटियर को प्रशिक्षित भी किया गया है. पढ़ें पूरी खबर.

पटना: देश भर में ठनका गिरने से भारी संख्या में मौतें होती हैं. प्रत्येक वर्ष बिहार में आसमानी बिजली गिरने की वजह से सैकड़ों लोगों की मौतें होती हैं. दक्षिण बिहार में ठनका गिरने की घटनाएं (Incidents of lightning in Bihar) अधिक होती हैं. ऐसे में बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने ठनका गिरने की घटनाओं को कम (jugaad technique will reduce lightning deaths) करने को लेकर एक देसी तकनीक इजाद किया है. इस तकनीक के बारे में प्रत्येक जिले के सैकड़ों वॉलंटियर को प्रशिक्षित भी किया गया है.

200 मीटर है रेंज: वॉलंटियर को बताया जा रहा है कि कैसे ठनका गिरने से होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है और यह जुगाड़ का उपकरण कितनी आसानी से बनाया जा सकता है. दरअसल इस तकनीक में साइकिल की रिंग में कॉपर वायर बांधकर बांस के सहारे उसे जमीन में गाड़ दिया जाता है. ऐसे में जो आसमानी बिजली, जिसे ठनका कहते हैं, वह जब गिरती है तो यह उपकरण 200 मीटर तक के दायरे में गिरने वाले ठनका को अपने में एबजार्व कर लेता है और उसे सीधे जमीन में डाल देता है.

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बिहार में ठनका गिरने की घटनाएं सर्वाधिक: बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Bihar State Disaster Management Authority) से इस तकनीक में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके सामुदायिक वॉलंटियर बाल कृष्ण ने बताया कि यह जुगाड़ तकनीक का लाइटिंग कंडक्टर है. बिहार में ठनका गिरने की घटनाएं सर्वाधिक होती हैं. ऐसे में यह लाइटिंग कंडक्टर अपने आसपास के रेंज में 200 मीटर के दायरे में गिरने वाले आसमानी बिजली को अपनी तरफ खींच लेता है और इसे अर्थिंग में डाल देता है. इसको बनाने के लिए साइकिल का रिंग, कॉपर वायर नमक और कोयला का इस्तेमाल किया जाता है.

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कम खर्च में उपलब्ध: यह बहुत आसानी से कम खर्चे पर उपलब्ध हो सकता है. इसके अलावा बरसाती मौसम में ठनका गिरने की घटनाएं अधिक होती हैं. ऐसे में लोगों को सलाह भी दी जाती है कि बरसात के मौसम में हरे पेड़-पौधे के नीचे शरण ना लें. मौसम खराब हो रहा है तो किसी पक्के मकान के नीचे शरण लें. कहीं भी खुले में ना घूमें.

बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से लाइटिंग कंडक्टर के इस तकनीक के बारे में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके स्वयंसेवक वॉलंटियर प्रमोद कुमार कर्मकार ने बताया कि इस उपकरण को तैयार करने में सबसे पहले एक साइकिल का रिंग में लिया जाता है. उसके बाद 20 से 25 फुट का एक खंभा लिया जाता है. इसके लिए सामान्य तौर पर सूखे बांस का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा इसे तैयार करने में कम से कम 6 एमएम का तांबा का तार होना चाहिए.

इसके बाद खंभे को बीच से 15 से 20 सेंटीमीटर चीर कर उसमें रिंग फसाया जाता है. दो तांबे के तार लिए जाते हैं और दोनों तरफ जहां रिंग को फसाया जाता है, वहां 10 से 15 सेंटीमीटर सीधा तार ऊपर की तरफ नुकीला ही छोड़ा जाता है. फिर उसे मोड़ कर साइकिल के रिंग के दोनों तरफ बांध दिया जाता है. फिर उसे लपेटकर बांस के सहारे जमीन में गाड़ दिया जाता है.

6 से 7 फीट गड्ढा खोदा जाता है और उसमें नमक और कोयला का मिश्रण डाला जाता है और फिर उसमें तार के साथ-साथ बांस को गाड़ दिया जाता है. इसके बाद यह लाइटिंग कंडक्टर पूरी तरह तैयार हो जाता है. ठनका गिरने के समय यदि 200 मीटर के दायरे में यह उसे एबजर्व कर लेता है और तांबे की तार के माध्यम से सीधे उसे जमीन में डाल देता है. इससे जानमाल के नुकसान के मामले कम हो जाते हैं.

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