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बिहार में 9 हजार से अधिक बच्चे हैं लापता, बड़ा सवाल- कहां गए मासूम?

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Published : Jun 7, 2022, 5:27 PM IST

बिहार पुलिस द्वारा जारी आंकड़ों (Bihar Police Crime Data) की माने तो राज्‍य में तीन साल के दौरान करीब 16 हजार बच्‍चे लापता हुए. जिनमें से केवल 7219 ही मिल सके हैं. आंकड़ें बताते है कि बिहार में रोजाना 15 से अधिक बच्‍चे लापता (15 children missing daily in Bihar) हो रहे हैं. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि आखिर लापता बच्चे कहां हैं? उनके साथ क्या हुआ? पढ़ें पूरी खबर

बिहार में 9340 बच्चे लापता
बिहार में 9340 बच्चे लापता

पटना: बिहार में पिछले तीन सालों में हर दिन 15 से ज्यादा बच्चे लापता होते हैं. यह आंकड़ा बिहार पुलिस ने मंगलवार को जारी (Bihar Police Missing data) किया. आंकड़ों के अनुसार, बिहार पुलिस और रेलवे पुलिस ने पिछले तीन सालों में 16,559 बच्चों के लापता होने की शिकायत दर्ज की है. चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य पुलिस सिर्फ 7,219 बच्चों का पता लगाने में ही कामयाब रही, जबकि 55 प्रतिशत यानी बिहार में 9340 बच्चे अभी भी लापता (9340 children missing in Bihar) हैं.

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बिहार में 9 हजार से अधिक बच्चे हैं लापता : साल 2021 में 6,395 बच्चे लापता हुए, जिनमें 2838 बच्चे ही बरामद हुए, जबकि 3557 बच्चे अब तक लापता हैं. वहीं साल 2020 में, कई पुलिस स्टेशन और रेलवे पुलिस स्टेशन में 2,867 बच्चों की गुमशुदगी की शिकायतें दर्ज कराई गईं. जिसमें सिर्फ 1,193 ही घर लौटे और बाकि बच्चों की अभी तक कोई जानकारी नहीं हैं. साल 2019 में लापता बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा रही. 7,297 लापता बच्चों की शिकायतें दर्ज की गई. जिसमें केवल 3,188 बच्चों को ही बचाया गया जबकि 4,109 बच्चों की कोई खबर नहीं है.

इन जिलों से होते हैं ज्यादा बच्चे लापता : लापता बच्चे ज्यादातर पटना, गया, भागलपुर, मोतिहारी, वैशाली, मुजफ्फरपुर, सारण, गोपालगंज और रोहतास जिलों से थे. इन जिलों में हर साल औसतन 200 बच्चे लापता होते हैं. पटना पुलिस ने 2019 में 870, 2020 में 360 और 2021 में 830 बच्चों के लापता होने की शिकायत दर्ज की थी. राज्य में लापता बच्चों की बरामदगी दर 50 फीसदी से भी कम है.

मानव तस्करी भी मुख्य वजह : बिहार से बच्चों के खोने की मुख्य वजह मानव तस्करी भी माना जाता है. ऐसी कुछ घटनाएं भी सामने आयी हैं, जिसमें बच्चों को दूसरे राज्य भेजने के मामले सामने आये हैं. साथ ही, कई बच्चे परिजनों से बिछड़ जाते है, या फिर किसी कारण बच्चे घर से भाग जाते है, जिस कारण भी गुमशुदगी होती है. पिछले दिनों ऐसा ही एक मामला बिहार के जहानाबाद में सामने आया था.

पिता ने डांटा तो घर से भाग गई लड़की : जहानाबाद पुलिस ने मानव तस्करी से जुड़े आठ लोगों को गिरफ्तार किया था. उनके चुंगल से तीन लड़कियों को भी मुक्त करवाया. जहानाबाद एसपी दीपक रंजन ने बताया था कि 7 फरवरी को टेहटा की रहने वाली गीता (बदला हुआ नाम) पिता की डांट से नाराज होकर घर से निकल गई. लड़की की मां ने मखदूमपुर थाने में शिकायत दर्ज करवाई .पुलिस ने जांच शुरू की तो पाया कि रीता ने 16 मई को बहनोई को फोन पर हरियाणा में रहने की बात कही थी. इसके बाद पुलिस ने हरियाणा के कैथल से रीता को बरामद किया. साथ ही पैसे देकर उससे शादी करने वाले अमन उर्फ विजय को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस के मुताबिक, अमन ने रीता को एक लाख साठ हजार में मानव तस्करों से खरीदा था.

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पोर्टल के माध्यम से की जाती है तलाशी : बता दें कि जो बच्चे खुद से घर वापस लौट आते हैं उन बच्चों के परिजन पुलिस को बताना जरूरी भी नहीं समझते. जिससे वापस आए बच्चों के गुमशुदगी का रिपोर्ट दर्ज ही रह जाता है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार के विभिन्न पोर्टल के माध्यम से भी बच्चों की तलाशी की जाती है. विशेष टीम के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाए भी आगे बढ़कर काम कर रहे हैं. हालांकि केंद्र सरकार ने गायब हो रहे बच्चों को ढूंढने के लिए ट्रैक द चाइल्ड पोर्टल और खोया-पाया पोर्टल के माध्यम से बच्चों को ढूंढा जाता है.

एफआईआर दर्ज होना अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट के 2013 के आदेश के बाद सभी गायब बच्चों के लिए एफआईआर दर्ज होना अनिवार्य कर दिया है. बच्चों के गायब होने वाले करीबन 8,000 मामले न्यायालय में चल रहे हैं. दूसरे राज्यों के दलाल बिहार आकर गरीब परिवार को निशाना बनाते हैं. दूसरे राज्यों में अच्छी नौकरी का प्रलोभन देकर लड़कियों और लड़कों को बाहर ले जाते हैं. लड़कियों को अक्सर वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया जाता है. वहीं लड़कों से जबरन बाल श्रम करवाया जाता है.

क्या कहते है एक्सपर्ट: बाल श्रम के खिलाफ काम कर रहे पटना के गैर सरकारी संगठन सेंटर डायरेक्ट के निदेशक सुरेश कुमार की मानें तो पहले की तुलना में बिहार में मानव तस्करी बढ़ गई है. दूसरे राज्य से आए दलालों के माध्यम से बिहार के अलग-अलग जिले से मानव तस्करी किया जा रहा है. जिसमें ज्यादातर बाल तस्करी ज्यादा हो रही है. दलाल गरीब परिवारों को झांसा देकर उनके बच्चों को अच्छे काम दिलवाने के बहाने दूसरे राज्य ले जा रहे हैं.

''इन दिनों दलाल नए-नए पैंतरा आजमा रहे हैं. लगातार छापेमारी कर बाल श्रम को मुक्त करवाया जा रहा है. जिस वजह से इन दिनों दलाल पुलिस से बचने के लिए बच्चों के साथ-साथ उनके परिजनों को भी ले जा रहे हैं. पुलिस को धोखा देने के लिए दलाल बच्चों का फर्जी आधार कार्ड और परमानेंट एड्रेस प्रूफ भी बनाते हैं.'' -सुरेश कुमार, निदेशक, गैर सरकारी संगठन सेंटर

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