जातीय जनगणना के जरिये OBC वोट बैंक को साधने की कवायद!

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Published : Aug 24, 2021, 9:18 PM IST

जातीय जनगणना

जातीय जनगणना (Caste Census) के मुद्दे पर सभी दलों के नेता एक मंच पर आ गये हैं. ओबीसी वोट बैंक (OBC Vote Bank) के लिए सभी दल जोर-आजमाइश में लगे हुए हैं. सभी दल एक बार फिर जातिगत जनगणना के मसले पर राजनीति को नया रंग देने की कोशिश कर रहे हैं. पढ़ें रिपोर्ट..

पटना: 'मंडल' और 'कमंडल' की सियासत ने देश में राजनीति की दिशा और दशा बदल दी. कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों (Regional Parties) का मजबूती के साथ उदय हुआ और जाति आधारित राजनीति (Caste Based Politics) की बुनियाद पर कई नेता लंबे समय तक सत्ता के शीर्ष पर बने रहे. एक बार फिर जातिगत जनगणना के मसले पर राजनीति को नया रंग देने की कोशिश की जा रही है.

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जातिगत जनगणना के सवाल पर बिहार के तमाम राजनीतिक दल एक फोरम पर हैं. सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में 10 पार्टियों के 11 सदस्यों वाले प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से मुलाकात की. नेताओं ने प्रधानमंत्री से मुलाकात कर जातिगत जनगणना के पक्ष में आवाज बुलंद की है.

राजनीतिक दलों को ऐसा लग रहा है कि जातिगत जनगणना के मुद्दे पर एक बार फिर ओबीसी वोट बैंक (OBC Vote Bank) में ध्रुवीकरण किया जा सकता है. जातिगत जनगणना के पक्ष में आवाज उठाने वाले दलों के हित एक-दूसरे के विरोध में भी हैं.

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बिहार के तमाम राजनीतिक दल ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए एक मंच पर दिख रहे हैं. राजनीतिक दलों के नेताओं को उम्मीद है कि पीएम मोदी उनके अनुरोध को स्वीकार करेंगे, क्योंकि प्रधानमंत्री ने उनकी मांगों को अस्वीकार नहीं किया है.

जनगणना की अगर बात करें तो सबसे पहले 1872 में अंग्रेजी शासन काल में पहली जनगणना हुई थी. लेकिन 1881 में विधिवत तरीके से जनगणना की शुरुआत हुई. 1931 तक जाति के आधार पर जनगणना होती रही. 1941 में भी जातिगत आधार पर जनगणना हुई थी, लेकिन आंकड़ा जारी नहीं किया जा सका था. आज की तारीख में पुराने आंकड़ों के आधार पर ही देश में नीतियां बन रही हैं.

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मंडल कमीशन के बाद ओबीसी वोट बैंक में तेजी से ध्रुवीकरण हुआ. 1996 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में कांग्रेस के पास जहां 25% ओबीसी वोट बैंक आया. वहीं, बीजेपी को 19 फीसदी वोट मिले. जबकि 49% ओबीसी वोट बैंक क्षेत्रीय दलों के साथ रहा. वोटिंग का ये ट्रेंड 2009 तक रहा, लेकिन 2014 और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर वोटों का ध्रुवीकरण हुआ. बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को पिछड़ा वर्ग से आने वाला नेता बताया और पार्टी ओबीसी वोट बैंक में सेंधमारी में कामयाब हुई.

पिछले लोकसभा चुनाव की अगर बात करें तो भी सिर्फ वोट बैंक का बड़ा हिस्सा बीजेपी के खाते में आ गया. लगभग 44 फीसदी ओबीसी वोट बैंक पर बीजेपी ने कब्जा जमा लिया. कांग्रेस पार्टी के पक्ष में 15% वोट शेयर रहा, जबकि समाजवादी पार्टी और राजद समेत तमाम दल 27% में सिमट गए.

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बिहार की बात करें तो हाल के चुनाव में कुछ अजीबोगरीब ट्रेंड देखने को मिला. ओबीसी वोट बैंक का बड़ा हिस्सा लोकसभा चुनाव के दौरान जहां बीजेपी के साथ रहा. वहीं, विधानसभा चुनाव में ओबीसी वोट बैंक का बड़ा तबका क्षेत्रीय दलों के साथ रहा. जातिगत जनगणना जहां क्षेत्रीय दलों के राजनीतिक हितों को पूरा करती है, वहीं राष्ट्रीय दलों के लिए जातिगत जनगणना चिंता का सबब है. हालांकि, गेंद फिलहाल नरेंद्र मोदी के पाले में है.

''प्रधानमंत्री से मिलकर हम लोगों ने अपनी बात रखी है. उम्मीद है कि उस पर सकारात्मक कार्यवाही होगी. देश में जब हर चीज की गणना हो सकती है, तो जातिगत जनगणना में परेशानी क्यों हो रही है.''- शक्ति सिंह यादव, प्रवक्ता राजद

''समता पार्टी के जमाने से ही हम जातिगत जनगणना की मांग करते आ रहे हैं और आज भी हमारे नेता उस स्टैंड पर कायम है.''- अभिषेक झा, प्रवक्ता जदयू

''प्रधानमंत्री ने सबकी बात सुन ली है. उचित समय पर वह उचित फैसला लेंगे. जहां तक बिहार की राजनीति का सवाल है, तो हमारी पार्टी राजनीति की नहीं देश हित की चिंता करती है.''- मिथिलेश तिवारी, नेता बीजेपी

''बिहार के क्षेत्रीय दल ओबीसी वोट बैंक ने हिस्सेदारी के लिए जातिगत जनगणना का मुद्दा उठा रहे हैं. मंडल कमीशन की रिपोर्ट के बाद क्षेत्रीय दल राजनीति को धार देने की कोशिश कर रहे हैं. इसे हम मंडल-2 की संज्ञा दे सकते हैं.''- डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विशेषज्ञ

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