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दिवाली से पहले उपचुनाव के नतीजों में दिखा देश का मूड, बीजेपी के लिए क्यों बजी खतरे की घंटी ?

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Published : Nov 2, 2021, 9:14 PM IST

देश की 3 लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों के नतीजे आ चुके हैं. सवाल है कि क्या इन नतीजों ने बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है ? ये सवाल क्यों उठ रहा है ? जानने के लिए पढ़िये पूरी ख़बर

उपचुनाव
उपचुनाव

हैदराबाद: 'कांग्रेस ने महंगाई को बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है, महंगाई मुद्दा बन गया और ये मुद्दा उनके हाथ लग गया' ये बयान उपचुनाव के नतीजों के बाद हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का है. मंगलवार को देशभर के 13 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 3 लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की मतगणना हुई. 30 अक्टूबर को इन सभी सीटों पर मतदान हुआ और जब मंगलवार को आए नतीजे चौंकाने वाले थे.

हिमाचल में बीजेपी खाली हाथ

हिमाचल की दो विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था. एक सीट बीजेपी विधायक और दूसरी पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के निधन के बाद खाली हुई थी. वहीं मंडी लोकसभा सीट भी बीजेपी सांसद रामस्वरूप शर्मा के निधन के बाद खाली हुई थी. उपचुनाव में तीनों सीटों पर बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी और मंडी लोकसभा सीट से समेत दोनों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया. मंडी से कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह पत्नी प्रतिभा सिंह को टिकट दिया था, जबकि बीजेपी ने करगिल वॉर हीरो ब्रिगेडियर खुशाल सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था.

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तीन लोकसभा सीटों का नतीजा

हिमाचल की मंडी सीट के अलावा दादर नगर हवेली और मध्य प्रदेश की खंडवा लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे. इनमें से हिमाचल और मध्य प्रदेश की सीटें बीजेपी के खाते में थी, जबकि दादर नगर हवेली से निर्दलीय सांसद थे. लेकिन उपचुनाव में बीजेपी सिर्फ मध्य प्रदेश की सीट बचा पाई, हिमाचल की मंडी लोकसभी सीट कांग्रेस और दादर नगर हवेली की सीट से शिवसेना उम्मीदवार बलाबेन देलकर को जीत मिली है.

राजस्थान से लेकर हरियाणा और बंगाल तक बीजेपी धड़ाम

राजस्थान की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे लेकिन दोनों ही सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों के लिए रनर-अप यानि दूसरे नंबर पर पहुंचना भी दूभर हो गया. दोनों सीटों पर कांग्रेस ने जोरदार जीत हासिल की. इसी तरह पश्चिम बंगाल की चारों सीटों पर तृणमूल कांग्रेस ने बाजी मारी है. हिमाचल की ही तरह हरियाणा में भी बीजेपी की सरकार है लेकिन अपनी सीट से इस्तीफा देने वाले इनेलो विधायक अभय चौटाला की ही उपचुनाव में जीत हुई है.

बीजेपी के लिए कहां से आई अच्छी ख़बर ?

असम में 5 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुआ, जिनमें से बीजेपी ने तीन और और उसके सहयोगी दल यूपीपीएल ने जीत हासिल की. मध्यप्रदेश की 3 विधानसभा सीटों में से दो पर बीजेपी को जीत मिली है और साथ ही खंडवा लोकसभा सीट पर भी कमल खिला है. तेलंगाना की इकलौती हुजूराबाद सीट पर उपचुनाव हुए, जो बीजेपी के नाम रही. कर्नाटक में भी दो सीटों में से एक बीजेपी जीतने में कामयाब रही.

बीजेपी को कितनी सीटें मिली हैं

29 विधानसभा सीटों के हिसाब के नतीजों पर नजर डालें तो बीजेपी को 7 सीटों पर जीत मिली जबकि एनडीए को कुल 16 सीटें मिली हैं. कांग्रेस को 8 सीटों पर जीत मिली है जबकि टीएमसी ने 4 सीटों पर जीत हासिल की है. वहीं दो विधानसभा सीटें अन्य दलों ने जीती हैं.

बीजेपी की हार की वजह

महंगाई- मौजूदा वक्त में महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है, खुद हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मान चुके हैं कि उपचुनाव में महंगाई मुद्दा रही है. पेट्रोल-डीजल के दाम रोज़ बढ़ रहे हैं, कुछ राज्यों में पेट्रोल 120 के पार पहुंच चुका है तो डीजल 110 रुपये प्रति लीटर से अधिक कीमत पर बिक रहा है. जिसके चलते घर में इस्तेमाल होने वाली रोजमर्रा की चीजों से लेकर खाद्य पदार्थों और परिवहन सुविधाएं तक महंगी हुई हैं. खाने के तेल से लेकर दाल, चावल, प्याज, टमाटर तक के दाम बढ़ने से किचन का बजट बिगड़ गया है.

क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व- 13 राज्यों के उपचुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व कायम रहा है. बंगाल की चारों सीटें टीएमसी के खाते में गई तो दादर नगर हवेली लोकसभा सीट शिवसेना के खाते में गई. बिहार की दोनों सीटें भले बीजेपी की सहयोगी जेडीयू ने जीती हो लेकिन सियासी जानकार इसका श्रेय बीजेपी को नहीं देते. आंध्र प्रदेश से लेकर हरियाणा तक क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवारों को ही जीत मिली है.

सत्ता विरोधी लहर- केंद्र में पिछले 7 साल से बीजेपी की सरकार है. जिन राज्यों में उपचुनाव हुए हैं उनमें हिमाचल, हरियाणा, कर्नाटक, बिहार, असम, मध्य प्रदेश में बीजेपी या सहयोगियों की सरकार है. ऐसे में जानकार मानते हैं कि ये सत्ता विरोधी लहर का भी नतीजा है कि बीजेपी उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है. क्योंकि जिन सीटों पर उपचुनाव हुआ है वो या तो पहले बीजेपी के खाते में थी या फिर वो बीजेपी का गढ़ मानी जा रही थीं.

टिकट बंटवारे में खामियां- कुछ जानकार इसके लिए टिकट बंटवारे में भी खामियां तलाश रहे हैं. दादर नगर हवेली के सांसद के निधन के बाद शिवसेना ने उनकी पत्नी को टिकट दे दिया जो शिवसेना की जीत की बुनियाद बनी. जबकि बीजेपी ऐसा नहीं कर पाई, उधर हिमाचल की जुब्बल-कोटखाई विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए हैं, बीजेपी के विधायक नरेंद्र बरागटा के निधन के बाद ये सीट खाली हुई थी. लेकिन पार्टी ने नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन को टिकट ना देकर नीलम सरैक को टिकट दे दिया. चेतन निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए और महज 6293 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी से हार गए, जबकि बीजेपी उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहीं, जिन्हें सिर्फ 2644 वोट मिले. इसी तरह राजस्थान की दोनों विधानसभा सीटों पर भी बीजेपी के उम्मीदवार तीसरे और चौथे नंबर पर रहे.

बीजेपी के लिए खतरे की घंटी

एक आम धारणा रही है कि उपचुनाव के नतीजे हमेशा सत्ता के समर्थन में जाते हैं. कुछ राज्यों में सही भी साबित हुआ है लेकिन हिमाचल से लेकर हरियाणा जैसे राज्य भी है जहां बीजेपी सत्ता में है. ऐसे में बीजेपी के लिए उपचुनाव के नतीजे खतरे की घंटी बजा रहे हैं.

5 राज्यों के चुनाव- महज तीन महीने बाद देश के 5 राज्यों में चुनाव है, खासकर यूपी विधानभा चुनाव पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. भले मौजूदा उपचुनाव के नतीजे 3 लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों के हों लेकिन जानकार इसे जनता का मूड मान रहे हैं, ऐसे में उपचुनाव के नतीजों पर बीजेपी को मंथन करने की जरूरत है.

विपक्ष को संजीवनी- बीते 7 साल में हुए अधिकतर चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन शानदार रहा है और कांग्रेस का गिरा है. भले इन उपचुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार ना रहा हो लेकिन राजस्थान, हिमाचल जैसे राज्यों में वो अपनी जीत पर पीठ थपथपा सकती है. साथ ही क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन भी बता रहा है कि उपचुनाव के ये नतीजे पूरे देश में बीजेपी के विरोधियों के लिए संजीवनी साबित हो सकते हैं. कई विरोधी बीजेपी के विकल्प के लिए एक साथ मिलकर आने की वकालत पहले से करते रहे हैं और ये नतीजे उसे और बल देंगे. अगर ऐसा हुआ तो विरोधियों के एकजुट होने का नुकसान बीजेपी को हो सकता है.

राज्यों में सत्ता परिवर्तन की आहट- अगले लोकसभा चुनाव भले 2024 में हों लेकिन उससे पहले देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. खासकर हिमाचल और गुजरात में अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. हिमाचल में बीजेपी की सरकार होने के बावजूद कांग्रेस ने क्लीन स्वीप किया है, इसलिये कुछ सियासी जानकार इन नतीजों को राज्यों में सत्ता परिवर्तन की आहट के रूप में भी देख रहे हैं.

क्षेत्रीय दल बनेंगे बड़ी चुनौती- उपचुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ रहा है. जो राज्यों में बीजेपी की मुश्किल बढ़ा सकते हैं. वैसे भी बंगाल से लेकर दिल्ली और बिहार तक के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को क्षेत्रीय दलों से ही सबसे बड़ी चुनौती मिली है. दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़ दें तो बाकी राज्यों में बीजेपी के पल्ले वैसे भी कुछ नहीं है.

महंगाई डायन खाय जात है

ये भले किसी फिल्मी गीत की लाइनें हों लेकिन बीजेपी के लिए ये सच हो रही हैं. चुनावी चाल और प्लानिंग अपनी जगह है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी को सबसे बड़ा खामियाजा इस महंगाई के चलते ही भुगतना पड़ रहा है. जानकार भी मानते हैं कि बीजेपी के लिए उपचुनाव के नतीजों पर महंगाई की मार पड़ी है और इससे पार पाने के लिए ना तो संगठन कुछ कर सकता है और ना ही प्रत्याशी, इसलिये गेंद अब मोदी सरकार के पाले में ही है.

वैसे ये तो उपचुनाव है लेकिन इससे पहले महंगाई सरकारों को सत्ता से बेदखल कर चुकी है और बीजेपी महंगाई का वो दंश झेल चुकी है ऐसे में महंगाई के मोर्चे पर जल्द हल ढूंढना होगा. वरना देर होने पर सियासी तौर पर नुकसान बढ़ता जाएगा. 2021 की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव होनें हैं.

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