चित्रकूट : भगवान श्रीगणेश को कृपा प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को व्रत किया जाता है. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ठी चतुर्थी कहा जाता है. पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन ऋद्धि सिद्धि के देवता विध्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा जीवन में लोकमंगल का मार्ग प्रशस्त करता है. इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं. संकष्टी चतुर्थी को पूरे विधि-विधान से गणपति की पूजा-पाठ की जाती है.
चित्रकूट के पंडित राजेशजी महाराज के अनुसार, बैसाख मास की तृतीया के बाद प्रात:काल उदयकालीन लग्न को चतुर्थी तिथि उदय हो रहा है. पंचांग के अनुसार, 19 अप्रैल 2022, मंगलवार को पूरे दिन तिथि संकष्ठी चतुर्थी की तिथि रहेगी. चतुर्थी का व्रत जीवन में उल्लास, सुख शांति और समृद्धि देने वाला है. मंगलवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद अपनी इच्छा अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें. लाल वस्त्र धारण करें और गणपति की पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें. संकल्प मंत्र के बाद भगवान श्रीगणेश की धूप, दीप, नेवैद्य, गंध, अक्षत और पुष्प से भगवान गणेश की अर्चना करें. लड्डू या मोदक का भोग लगाएं और गणेश चालीसा का पाठ करें. समृद्धि के लिए भगवान गणेश को पौराणिक मंत्र ऊं गं गणपतये नम: का एक माला जाप करें.
पंडित राजेशजी महाराज बताते हैं कि गणेश चतुर्थी व्रत में भगवान श्रीगणेश के मंत्रों का जाप किया जाए तो परेशानियां दूर हो सकती हैं.
- श्री गणेशाय नमः
- ऊँ गं गणपतये नमः
- ऊँ विघ्नेश्वराय नमः
इसके साथ ही इन मंत्रों से भी श्रीगणेश की पूजा करें.
वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा॥
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
भक्तार्तिनाशनपराय गनेशाश्वराय, सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय!
विद्याधराय विकटाय च वामनाय , भक्त प्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते!!
पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बाटें. शाम के समय चांद के निकलने से पहले आप गणपति की पूजा करें. रात को चांद देखने के बाद संकष्ठी चतुर्थी का व्रत खोला जाता है और इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण होता है. आचार्य राजेशजी महाराज ने बताया कि इस व्रत में चंद्र दर्शन का विशेष महत्व है. जब चंद्रोदय हो जाए तो वह जातक चंद्र देव का दर्शन करें और उन्हें अर्घ्य दें उसके बाद अपने व्रत को खोलें. इस व्रत को करने वाले जातकों को भगवान गणेश के व्रत कथा को पढ़ना चाहिए और सुनना चाहिए. पुराणों में यह विदित है कि जो भी जातक इस व्रत के कथा को पढ़ता है और श्रवण करता है, उन्हें ही इस व्रत का पूर्ण फल मिलता है.