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लॉकडाउन से सेक्स वर्कर्स की आजीविका प्रभावित, भुखमरी की कगार पर 'बदनाम बस्ती'

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Published : Jun 13, 2021, 11:58 AM IST

लॉकडाउन से सेक्स वर्कर्स की आजीविका प्रभावित
लॉकडाउन से सेक्स वर्कर्स की आजीविका प्रभावित

दिल्ली की एक ऐसी बदनाम बस्ती, जिसे सभ्य समाज से अलग रखा जाता है. जिसके वजूद को न तो दिल्ली पुलिस और न ही प्रशासन स्वीकारता है. लेकिन यह बदनाम गली आज भी हजारों मजबूर, बेसहारा महिलाओं के लिए एक आसरा है. जीने की मजबूरी है. दिल्ली का स्वामी श्रद्धानंद मार्ग, जिसे जीबी रोड के नाम से जाना जाता है.

नई दिल्ली : सालों पहले इस सड़क का नाम भले ही बदल गया हो, लेकिन पहचान अब भी जीबी रोड के नाम से है. मौजूदा समय में वैश्विक महामारी ने जहां हर एक सेक्टर पर अपना असर छोड़ा है. वहीं दिल्ली की इस बदनाम बस्ती पर भी कोरोना और लॉकडाउन का साया बरकरार है. यहां रह रहीं सैकड़ों महिलाएं भूखे मरने की कगार पर हैं. इनकी नाराजगी से साफ जाहिर है कि लॉकडाउन और कोरोना काल में मदद के लिए कोई नहीं पहुंचा है.

लॉकडाउन के बीच इस इलाके में कैसे हालात हैं. यहां काम कर रही सेक्स वर्कर्स किस तरीके से अपना जीवन यापन कर रही हैं. इस स्थिति का जायजा लेने के लिए ईटीवी भारत की टीम दिल्ली के स्वामी श्रद्धानंद मार्ग पहुंची जो कि अजमेरी गेट से लाहौरी गेट तक स्थित है.

लॉकडाउन से सेक्स वर्कर्स की आजीविका प्रभावित

मिलते हैं सिर्फ वादे और आश्वासन
जीबी रोड स्थित 49 नंबर कोठे में रह रही शीला (बदला हुआ नाम) ने ईटीवी भारत को बताया हर साल दिल्ली पुलिस, बीजेपी आदि पार्टियों की ओर से आर्थिक और राशन की मदद के लिए कई वादे किए जाते हैं. यहां तक कि हर एक महिला के दस्तावेज भी लेते हैं, लेकिन कोई मदद नहीं की जाती. राशन से लेकर आर्थिक मदद तक नहीं दी जाती.

महिला ने आरोप लगाया कि कई बार हमारे नाम से दूसरे लोगों को राशन बांट दिया जाता है. पहले हमारा आधार कार्ड जमा कर लेते हैं, लेकिन हमारे नाम से दूसरे लोगों को राशन बांट देते हैं. हम तक कोई मदद नहीं पहुंचती. महिला ने कहा कि कोरोना के चलते हर किसी पर आर्थिक समस्या खड़ी हुई है. इसके चलते यहां ग्राहक भी नहीं आ रहे हैं क्योंकि लोगों के पास पैसे ही नहीं हैं.

कोरोनाकाल में भूखी रहने को मजबूर
58 नंबर कोठे में रह रही पुष्पा (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वह बंगाल से हैं और पिछले 20 सालों से जीबी रोड पर रह रही हैं. उन्होंने बताया कि उनके दो बच्चे हैं, जिनकी उम्र 18 और 13 साल है. बच्चे गांव में रहते हैं और हर साल उनसे मिलने के लिए वह गांव जाती हैं, लेकिन पिछले तीन साल से वह अपने गांव नहीं जा पा रही हैं क्योंकि कोई काम-धंधा नहीं है. गांव जाने के लिए पैसे भी नहीं हैं.

पुष्पा ने कहा कि वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड बैंक अकाउंट सभी दस्तावेज दिल्ली के ही हैं और वह यहां पर वोट भी देती हैं, लेकिन किसी भी नेता या सरकार की ओर से कोई मदद नहीं पहुंचती. इस लॉकडाउन के दौरान हजारों महिलाएं भूखे मरने की कगार पर हैं, लेकिन सरकार ने कोई मदद नहीं दी, कुछ अन्य संस्थाओं की ओर से पांच किलो आटा चावल एक किलो चने की दाल तेल आदि की मदद की गई.

इनके लिए नहीं हैं कोई सुविधाएं
कोठा नंबर 58 में रह रही ममता (बदला हुआ नाम) ने बताया कि यहां आर्थिक समस्या के साथ महिलाओं को स्वास्थ्य से जुड़ी भी कई समस्याएं होती हैं, लेकिन मौजूदा हालातों में कोई भी यहां पर महिलाओं के स्वास्थ्य की सुविधा के लिए नहीं आया. किसी भी प्रकार से मदद नहीं की गई.

ममता (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वह कर्नाटक की रहने वाली हैं और यहां करीब 30 सालों से रह रही हैं. उन्होंने बताया कि यहां पर 100 से ज्यादा कोठे हैं और हर एक कोठे में 100-150 महिलाएं रहती हैं. कोरोना काल में जैसे-तैसे महिलाओं का गुजारा हो पा रहा है. कोरोना के डर के चलते ग्राहक भी नहीं आ रहे हैं. सरकार की ओर से भी कोई मदद नहीं की गई है. कभी-कभार कुछ संस्थाओं की ओर से राशन आदि की मदद कर दी जाती है, लेकिन उससे भी गुजारा पर्याप्त नहीं है.

दिल्ली के इस रेड लाइट एरिया में दो से तीन मंजिला अलग-अलग इमारतें बनी हुई हैं. इन इमारतों के ग्राउंड फ्लोर पर हार्डवेयर सॉफ्टवेयर और अलग-अलग इलेक्ट्रॉनिक सामान की दुकानें हैं. दिन भर दुकानें चलती हैं और रात में दुकानें बंद हो जाने के बाद यहां रेड लाइट एरिया शुरू हो जाता है.

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इसी इलाके की एक दुकान के मालिक तंवरउद्दीन ने बताया इन महिलाओं के लिए मौजूदा समय में कोई मदद नहीं आ रही है यह भूखी मरने की कगार पर है. दुकानदार ने बताया कि उनकी दुकान इस इलाके में पिछले 70 साल से है और शाम होते ही इस इलाके में काफी रौनक होती है. महिलाओं के नीचे आ जाने से लोगों की भीड़ लगना शुरू हो जाती है ऐसे में कई बार दुकानदारी में परेशानी आती है, महिलाओं को देखकर कई बार ग्राहक दुकान पर नहीं आते.

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