Chandrayaan-3 : जहां पर उतरना था, वहीं पर उतरा लैंडर, संभव है 14 दिन बाद भी काम कर सकेगा प्रज्ञान

author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 24, 2023, 7:15 PM IST

Updated : Aug 24, 2023, 7:48 PM IST

chandrayaan 3 team

भारत का चंद्रयान-3 मिशन निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार बढ़ रहा है. इसकी लैंडिंग जहां पर निर्धारित की गई थी, उससे करीब 300 मीटर के दायरे में ही लैंड हुई. इस लैंडिंग को चंद्रमा के उस एरिया के हिसाब से देखेंगे, तो हमारी लैंडिंग बिल्कुल सटीक मानी जाएगी. कुछ वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई है कि हमारा पेलोड 14 दिन के बाद भी काम कर सकता है. इसरो ने लैंडिंग की नई तस्वीर भी जारी की है.

बेंगलुरु : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने गुरुवार को कहा कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान का लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर चिह्नित क्षेत्र के अंदर उतरा. सोमनाथ ने कहा, 'लैंडर चिह्नित स्थान पर सही से उतरा. लैंडिंग स्थल को 4.5 किमी गुणा 2.5 किमी के रूप में चिह्नित किया गया था. मुझे लगता है कि उस स्थान पर, और उसके सटीक केंद्र की पहचान उतरने के स्थल के रूप में की गई थी. यह उस बिंदु से 300 मीटर के दायरे में उतरा. इसका मतलब है कि यह लैंडिंग के लिए चिह्नित क्षेत्र के अंदर है.' इसरो ने लैंडिंग की एक और तस्वीर जारी की है.

इसरो ने बुधवार को अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक नया इतिहास रचते हुए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान से लैस एलएम की सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिग कराई. भारतीय समयानुसार शाम करीब छह बजकर चार मिनट पर इसने चांद की सतह को छुआ. इसरो प्रमुख ने एक सवाल के जवाब में कहा कि रोवर अब अच्छी तरह काम कर रहा है.

चंद्रयान-3 से चंद्रमा पर जीवन की संभावना और सौर मंडल के रहस्यों को जानने में मिलेगी मदद- वैज्ञानिकों का कहना है कि अब सबसे महत्वपूर्ण चुनौती चांद के दुर्गम दक्षिणी ध्रुवीय इलाके में पानी की मौजूदगी की संभावना की पुष्टि और खानिज एवं धातुओं की उपलब्धता का पता लगाने की होगी. वैज्ञानिकों का मानना है कि इन अध्ययनों से चंद्रमा पर जीवन की संभावना एवं सौर मंडल की उत्पत्ति के रहस्यों से परदा हटाने में भी मदद मिलेगी.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर शांतब्रत दास ने को बताया, 'चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव बेहद दुर्गम और कठिन क्षेत्र है. इसमें 30 किलोमीटर तक गहरी घाटियां और 6-7 किलोमीटर तक ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र आते हैं. इस इलाके में लैंडिंग करना ही अपने आप में काफी चुनौतिपूर्ण कार्य था.' उन्होंने बताया कि चंद्रमा के इस हिस्से में कई इलाके ऐसे हैं जहां सूर्य की किरणें पड़ी ही नहीं हैं. ऐसे में यहां जमे हुए पानी के महत्वपूर्ण भंडार हो सकते हैं. चंद्रयान-1 से इस बारे में संकेत भी मिले थे.

प्रो. दास ने बताया कि प्रज्ञान रोवर पर दो पेलोड लगे हैं. इसमें पहला लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप है जो चांद की सतह पर मौजूद रसायनों की मात्रा और गुणवत्ता का अध्ययन करने के साथ ही खनिजों की खोज करेगा. दूसरा पेलोड अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है जो तत्वों एवं अवयवों की बनावट का अध्ययन करेगा और मैग्नीशियम, अल्यूमिनियम, सिलिकान, पोटैशियम, कैल्शियम, टिन, लोहे के बारे में पता लगायेगा.

चंद्रमा पर धातुओं एवं खनिजों की उपलब्धता के बारे में एक सवाल के जवाब में आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर दास ने कहा, 'मैं वहां धातुओं एवं खनिजों की मौजूदगी से इंकार नहीं कर रहा. लेकिन यह कितनी मात्रा में होगी, यह महत्वपूर्ण विषय है.'

उन्होंने बताया कि चंद्रमा की मिट्टी की संरचना का अध्ययन करने से यह बात सामने आई है कि इसका औसत घनत्व 3.2 ग्राम प्रति क्यूबिक सेंटीमीटर है जो पृथ्वी के औसत घनत्व 5.5 ग्राम प्रति क्यूबिक सेंटीमीटर से करीब करीब आधा है. चंद्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी के बाद हुई है, ऐसे में वहां भारी धातुओं की मौजूदगी की मात्रा अध्ययन का विषय होगी. प्रो. दास ने बताया कि चंद्रमा पर आगे अध्ययन से निश्चित रूप से भविष्य के अभियान, वहां जल की मौजूदगी आदि के बारे में जानने में काफी मदद मिलेगी.

पुणे स्थित इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए) के वैज्ञानिक प्रो. दुर्गेश त्रिपाठी ने बताया कि चंद्रयान-3 मिशन के तहत लैंडर और रोवर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा है और ऐसा अनुमान है कि यहां जमे हुए पानी के भंडार मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि इस मिशन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य पानी की मौजूदगी का पता लगाना रहेगी. इसके अलावा खनिजों की मौजूदगी, उनकी गुणवत्ता और उनकी मात्रा संबंधी अध्ययन भी किया जायेगा. प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि पानी जीवन के लिए बहुत जरूरी है और अगर चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता चलता है तो प्रौद्योगिकी का उपयोग करके इसे हाइड्रोजन और आक्सीजन के रूप में अलग किया जा सकता है. आईयूसीएए के वैज्ञानिक ने बताया कि इससे भविष्य के अभियानों में काफी मदद मिलेगी.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), जोधुपर के प्रोफेसर, डा. अरूण कुमार ने बताया, 'इस अभियान के तहत चंद्रमा की सतह पर भूकंपीय गतिविधि का पता लगाने का प्रयास किया जाएगा. इसके अलावा, इलैक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से जुड़ा अध्ययन भी किया जाएगा.'

इसरो को उम्मीद कि लैंडर और रोवर केवल एक चंद्र दिवस तक ही काम नहीं करेंगे- इसरो को उम्मीद है कि इस मिशन की अवधि एक चंद्र दिवस या पृथ्वी के 14 दिन तक सीमित नहीं रहेगी और चांद पर फिर से सूर्य निकलने पर यह पुन: सक्रिय हो सकता है. लैंडर और रोवर के उतरने के बाद, उन पर मौजूद प्रणालियां अब एक के बाद एक प्रयोग करने के लिए तैयार हैं, ताकि उन्हें 14 पृथ्वी दिनों के भीतर पूरा किया जा सके, इससे पहले कि चंद्रमा पर गहरा अंधेरा और अत्यधिक ठंडा मौसम हो जाए.

कुल 1752 किलोग्राम वजनी लैंडर और रोवर चंद्रमा के वातावरण का अध्ययन करने के वास्ते एक चंद्र दिन के प्रकाश में परिचालन करने के लिए डिजाइन किए गए हैं. हालांकि, इसरो के अधिकारी इनके एक और चंद्र दिवस के लिए सक्रिय होने की संभावना को खारिज नहीं कर रहे. इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने सॉफ्ट लैंडिंग के बाद की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा था, 'इसके बाद एक के बाद एक सारे प्रयोग चलेंगे. ये सभी चंद्रमा के एक दिन में जो पृथ्वी के 14 दिन के बराबर है, में पूरे करने होंगे.' उन्होंने कहा था कि जब तक सूरज की रोशनी रहेगी, सारी प्रणालियों को ऊर्जा मिलती रहेगी.

सोमनाथ ने कहा, 'जैसे ही सूर्य अस्त होगा, हर तरफ गहरा अंधेरा होगा. तापमान शून्य से 180 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाएगा. तब प्रणालियों का काम कर पाना संभव नहीं होगा और यदि यह आगे चालू रहता है तो हमें खुश होना चाहिए कि यह फिर से सक्रिय हो गया है और हम एक बार फिर से प्रणाली पर काम कर पाएंगे.'

ये भी पढ़ें : Chandrayaan 3 : चंद्रमा की सैर पर निकला प्रज्ञान, जानें क्यों इसपर ही है मिशन की पूरी जिम्मेदारी

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated :Aug 24, 2023, 7:48 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.