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2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को टक्कर देंगे नीतीश.. कौन गठबंधन पड़ेगा भारी

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Published : Aug 12, 2022, 5:48 PM IST

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बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के साथ सरकार बना ली है. बीजेपी और एआईएमआईएम को छोड़कर सभी सातों दल एक साथ हो गए हैं. नीतीश कुमार बीजेपी को 2024 का चुनौती देना भी शुरू कर दिया है. जल्द ही राहुल गांधी और सोनिया गांधी से भी मिलने की तैयारी है. राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्ष एकजुट हो इसके लिए नीतीश रणनीति बनाने वाले हैं. ऐसे पहले भी प्रयास किया था और मुलायम सिंह को गठबंधन का नेता बनाया था लेकिन वह प्रयास सफल नहीं हुआ. राष्ट्रीय स्तर पर नीतीश कितना असर डालेंगे यह तो देखने वाली बात है. लेकिन बिहार में आरजेडी के साथ गठबंधन बनाने से बीजेपी को कई सीटों पर नुकसान हो सकता है.

पटना: बिहार में नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) जिस गठबंधन के साथ रहे हैं, उसी की सरकार 2005 के बाद से बनती रही है. नीतीश कुमार के चेहरे पर बीजेपी का ना केवल विधानसभा चुनाव में बल्कि लोकसभा चुनाव में भी प्रदर्शन शानदार रहा है. जदयू के एनडीए से बाहर निकलने के बाद 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जबरदस्त झटका लगा था. लेकिन नीतीश कुमार के फिर से एनडीए में आने के बाद 2019 में लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन एनडीए का शानदार रहा. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी एनडीए की फिर से बिहार में सरकार बनी. अब नीतीश एक बार फिर से एनडीए के फोल्डर से बाहर हो गए हैं. बिहार में 7 दलों का एक महागठबंधन बना है. राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं यह गठबंधन एकजुटता के साथ लोकसभा चुनाव में उतरा तो 2024 (Lok Sabha Election 2024) के चुनाव में बीजेपी को बड़ा नुकसान हो सकता है.

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साथ लड़े तभी मिली नीतीश को सफलता: नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) ने शपथ ग्रहण के बाद ही 2024 को लेकर अपनी रणनीति का संकेत दे दिया है. अब राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास करेंगे. लेकिन, सबसे ज्यादा नुकसान बिहार में बीजेपी को पहुंचाएंगे. लोकसभा चुनाव में 2004 से बीजेपी और जदयू के प्रदर्शन को देखें तो साफ है कि अकेले चुनाव लड़ने पर नीतीश कुमार को भी नुकसान हुआ है. अब तक नीतीश महागठबंधन के साथ लोकसभा का चुनाव एक बार भी नहीं लड़े हैं. 2015 में अकेले ही जेडीयू ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था. तब महज 2 सीट पर ही जेडीयू अटक गई थी. लेकिन इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में 7 दलों के साथ चुनाव में उतरने की तैयारी नीतीश कर रहे हैं. नरेंद्र मोदी के एंटीइंकंबेंसी को जेडीयू एक अवसर मानकर चल रही है.


''अब तक वोटों के बंटवारे के कारण बीजेपी को लाभ मिलता रहा है. लेकिन इस बार बीजेपी को छोड़कर बिहार में सभी विपक्षी दल एकजुट हैं. इसलिए वोटों का बंटवारा नहीं होने वाला. बीजेपी को बड़ा झटका लग सकता है. नरेंद्र मोदी का चेहरा अब 2014 वाला नहीं हैं. 2024 में जब चुनाव होगा तो उनका 10 साल का कार्यकाल हो चुका होगा. एन्टीइंकंबेंसी फैक्टर भी काम करेगा''- निखिल मंडल, जदयू प्रवक्ता


2014 में जेडीयू का प्रदर्शन सबसे खराब: हालांकि बीजेपी का अपना तर्क है. बीजेपी प्रवक्ता विनोद शर्मा का कहना है कि नीतीश कुमार 8वीं बार मुख्यमंत्री बने हैं. जिसमें से 5 बार बीजेपी के सहयोग से बने हैं. तो कभी लालू प्रसाद के कंधे पर ही मुख्यमंत्री बनते रहे हैं. 2014 में इनको अपनी औकात पता चल गई थी. जब केवल 2 सीट मिला था. इसलिए बीजेपी को क्या नुकसान पहुंचाएंगे? हां इनकी मदद से कुछ सीट जरूर जीत सकते हैं. जनता नरेंद्र मोदी के काम और उनके चेहरे पर भरोसा करती है. पिछड़ा और अति पिछड़ा कार्ड भी खेलना चाहते हैं. लेकिन उसमें भी सफलता नहीं मिलेगी.

ईटीवी भारत GFX.
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''नीतीश कुमार 8वीं बार मुख्यमंत्री बने. 5 बार बीजेपी के सहयोग से नीतीश सीएम बने थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में इनको अपनी औकात पता चल गई थी. तब केवल 2 सीट मिली थी. इसलिए ये बीजेपी को क्या नुकसान पहुंचाएंगे? हां इनकी मदद से कुछ सीट जरूर जीत सकते हैं. जनता नरेंद्र मोदी के काम और उनके चेहरे पर भरोसा करती है. इनका पिछड़ा और अतिपिछड़ा कार्ट भी नहीं चलेगा''- विनोद शर्मा, बीजेपी प्रवक्ता

क्या कह रहे राजनीतिक विशेषज्ञ: राजनीतिक विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि जब जदयू से बीजेपी अलग हुई है तो दो धुर विरोधी एक साथ हुए हैं. संकेत साफ है. लेकिन देश स्तर पर नरेंद्र मोदी के मुकाबले विपक्ष का कोई भी चेहरा दिख नहीं रहा है. नीतीश कुमार का एक्सेप्टेंस राष्ट्रीय स्तर पर होगा, इसकी संभावना कम है. बिहार में सात दल एक साथ हुए हैं तो इसका 2025 विधानसभा चुनाव में जरूर असर होगा.

जेडीयू और बीजेपी की जीत का रिपोर्ट कार्ड: बिहार में 2004 लोकसभा चुनाव में जदयू 24 सीट पर चुनाव लड़ी थी. जबकि 6 सीट जीती, लेकिन 2009 में 25 सीटों पर चुनाव लड़ी और 20 सीटें जीती. वहीं 2004 में भाजपा 16 पर चुनाव लड़ी और 5 पर जीती. जबकि 2009 में 15 सीट पर चुनाव लड़ी और 12 सीटें जीतीं. 2009 में जदयू और बीजेपी ने कुल 32 सीटें जीतीं थीं. लेकिन 2014 में जब जदयू बीजेपी से अलग हो गई और अकेले चुनाव लड़ी तो जदयू के मात्र दो उम्मीदवार जीते थे और एनडीए को 31 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में जब जदयू के साथ फिर बीजेपी चुनाव लड़ी तो एनडीए को 40 में से 39 सीट मिल गयी. महागठबंधन के घटक दल कांग्रेस को किशनगंज की एकमात्र सीट से संतोष करना पड़ा.

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7 दल साथ लड़े तो बीजेपी के लिए चुनौती: अब एक बार फिर से जदयू एनडीए से अलग है. पहली बार महागठबंधन के साथ लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी हो रही है. क्योंकि अब तक लोकसभा का चुनाव 2004 से लेकर 2019 तक देखें तो जदयू कभी भी आरजेडी के साथ चुनाव नहीं लड़ी है. 2015 का विधानसभा चुनाव का रिजल्ट देखें तो 80 सीट आरजेडी को मिला था और 71 सीट जदयू को मिला था. 2015 में जदयू-आरजेडी और कांग्रेस महागठबंधन में शामिल थे. लेकिन इस बार तीन दलों के अलावे जीतन राम मांझी का हम और तीनों वामपंथी दल माले, सीपीआई और सीपीएम भी शामिल हैं. वोटों के समीकरण के हिसाब से देखें तो आरजेडी का यादव, मुस्लिम और जदयू का कोइरी कुर्मी, साथ में जीतन राम मांझी का मांझी वोट और वामपंथी दलों का कैडर वोट बीजेपी के लिए (challenge for Bjp by Mahagathbandhan) परेशानी बन सकता है.



2020 के चुनाव में पार्टियों का प्रतिशत: 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 19.46 % वोट मिला था और कुल 74 सीटें बीजेपी ने जीती थीं. जबकि, जदयू को 15.42% वोट मिला था और 43 सीट जदयू ने जीती थीं. वहीं, आरजेडी को 23.11% वोट और आरजेडी 75 सीट जीती थी. कांग्रेस को 9.48 प्रतिशत वोट मिला था और 19 सीट जीती थी. जबकि हम को 2.2% वोट मिला था और 4 सीटों पर जीत मिली थी. लोजपा को 5.6% वोट मिला था जबकि एक सीट जीत पाई थी. इसके अलावा सीपीआई, माकपा जैसे दलों को 1% से भी कम वोट आये थे. एआईएमआईएम को 1.24% वोट आया था और 5 सीटें जीती थीं. बसपा भी 1.49% वोट लाई थी और महज एक सीट जीती थी. बसपा और लोजपा के विधायक बाद में जदयू में शामिल हो गए.


7 दलों का वोट प्रतिशत बीजेपी से कहीं ज्यादा: विधानसभा के वोट प्रतिशत आंकड़े को देखें तो जदयू और महागठबंधन दलों के वोट प्रतिशत को मिला दें तो बीजेपी के वोट प्रतिशत से काफी अधिक हो जाता है. विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अंतर जरूर होता है लेकिन बिहार में जिस प्रकार से जातीय आधार पर वोटिंग होती है उसके कारण बीजेपी की मुश्किल बढ़ सकती है.


महागठबंधन में चेहरे पर होगी चक चक: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शपथ लेने के बाद से ही 2024 में नरेंद्र मोदी की फिर से वापसी नहीं होने देने की बात कही है. विपक्षी दलों को एकजुट होने का आह्वान भी किया है. जल्द ही राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मिल भी सकते हैं. इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास भी करेंगे. लेकिन हाल में जिस प्रकार से राजनीतिक घटनाक्रम दिख रहा है उसमें राष्ट्रीय स्तर पर ममता बनर्जी, हेमंत सोरेन, अरविंद केजरीवाल, बीजू पटनायक, जगन रेड्डी, मायावती विपक्ष के फोल्डर में जाएंगे इसकी संभावना कम है. अब महाराष्ट्र में भी बीजेपी की सरकार बन चुकी है. पवार भी विपक्ष के साथ होंगे, इसकी संभावना भी कम है. वो पहले भी नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर चुके हैं. मुलायम सिंह को नेता भी बनाया था लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली और उसके बाद फिर से नीतीश एनडीए के फोल्डर में आ गए थे. अब एक बार फिर से महागठबंधन के साथ गए हैं तो राष्ट्रीय स्तर पर कितना असर डालेंगे यह तो देखने वाली बात है. लेकिन, बिहार में नीतीश इफेक्ट पड़ना तय माना जा रहा है. राजनीतिक जानकार भी कहते हैं नीतीश लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे के बावजूद बीजेपी को कई सीटों पर नुकसान पहुंचा सकते हैं.

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