ETV Bharat / bharat

विश्व जैविक विविधता दिवस– प्रकृति में ही छिपे हैं हमारे समाधान

author img

By

Published : May 22, 2020, 9:55 AM IST

Updated : May 29, 2020, 12:27 PM IST

विश्व जैविक विविधता दिवस 2020 मनाते समय हमें यह याद रखना चाहिए कि हम प्रकृति से अलग नहीं बल्कि उसके अभिन्न अंग हैं. हमारे आदि सन्तों ने इस रिश्ते को एक बड़े विश्व परिवार के रूप में परिभाषित किया है, वसुधैव कुटुम्बकम के रूप में जो एक दूसरे पर निर्भर है. हमें अपना स्वभाव और भाषा बदलनी होगी जो प्रकृति को एक निर्जीव चीज समझती है. हमें उसे कोई चीज न समझ कर देवी के रूप में पूजना होगा क्यों कि वह वास्तव में एक देवी है.

etvbharat
प्रतीकात्मक चित्र

विश्व जैविक विविधता दिवस 2020 मनाते समय हमें यह याद रखना चाहिए कि हम प्रकृति से अलग नहीं बल्कि उसके अभिन्न अंग हैं. हमारे आदि सन्तों ने इस रिश्ते को एक बड़े विश्व परिवार के रूप में परिभाषित किया है, वसुधैव कुटुम्बकम के रूप में जो एक दूसरे पर निर्भर है, एक लिचलीचे और छोटे से केंचुए से लेकर विशाल हाथी तक.

हमने कई बार सूखे, बाढ़ जैसी परिस्थियों में ग्रह चेतना से सबक सीखा, और सभी जीवन की अंतर-निर्भरता को समझा. हमारे सभी पूर्वजों ने, सदियों से कड़ी मेहनत की है जिनकी वजह से हमें विविध जलवायु के अनुकूल और पौष्टिक बीजों का लाभ मिला है. इसी का नतीजा है कि आज भारत के लोगों के पास सबसे ज्यादा विविधता वाले वनस्पति और खाद्य पदार्थ हैं. अकेले भारत में 200,000 किस्म के धान पाए जाते हैं.

हमने स्वास्थ्य को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए जौ से लेकर रागी तक बीजों को पवित्र अनुष्ठानों में सम्मानित किया. हम नवरात्रि के दौरान नौ देवी-देवताओं की प्रार्थना करते हैं और उन्हें पवित्र बीज अर्पित करते हैं. हमारी जैव विविधता जन्म से लेकर मृत्यु तक के हमारे संस्कारों में संरक्षित है. भारत के कई समुदायों में आज भी जब दुल्हन ससुराल जाती है तो अपने साथ मइके से बीज और हल्दी जैसे पवित्र मसाले उपहार के रूप में ले जाती है. संस्कृत में गन्ने को इक्षु कहा जाता है और इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि राजा राम इक्ष्वाकु के वंशज थे.

पशु जगत को हमने अलग नहीं बल्कि उन्हें देवी देवताओं की सवारी या सहचारी माना. यहाँ तक कि पश्चिम में जिसे हिकारत से देखा जाता है उस चूहे को भी हमने सबसे पवित्र देवता गणेश के साथ सम्मान दिया. उपमहाद्वीप की सभ्यता ने नस्ल की संकुचित दृष्टी के बदले हरेक मनुष्य को पवित्र समझा क्यों कि प्रत्येक ने विशाल जीवन चक्र में अपना योगदान दिया है. दुःख की बात है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसरों ने इन्हें 'अन्धविश्वास और जंगली रीती रिवाज' समझा.

रहस्यों से अनजान और चकित हो कर उन्होंने इन पवित्र बीजों को कबूतर के दाने, गाय के दाने और घोड़ों के दाने जैसे हिकारत भरे नाम दिए. पराक्रमी गनबोट के बल पर और सोने की लालसा के कारण उपनिवेशवादियों ने एक ऐसे वर्ग को जन्म दिया जिन्होंने हमारे प्राचीन जीवन के तरीकों को मिटाने की कोशिश की. उन्होंने हमें प्रकृति पर जीत पाने के वायरस से संक्रमित कर दिया. साम्राज्यवाद के युग के साथ, समुद्री डाकुओं ने पृथ्वी के सभी जीवित प्राणियों को नरक में धकेलने का काम शुरू कर दिया.

लेकिन क्या प्रकृति पर विजय पूरी तरह से पा ली गई है? नहीं, विजय का स्वरुप बदल गया है. ईस्ट इंडियन कंपनी की जगह महाकाय कृषि कंपनियों ने ले ली है जो जैविक विविधता को लूटने और चुराने पर आधारित हैं. जैविक विविधता में समृद्ध भारत अपना असली ऐश्वर्य खो रहा है – हमारा जैविक विविधता से सम्बन्ध, हमारे बीज, हमारे औषधि जड़ी बूटियाँ, हमारे पशुओं की वंशीय विविधता.

लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ा खतरा है वह है विदेश से हमारे भारतीय पौधों के स्रोत जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा हैं, चुराए जा रहे हैं. यह कानून की रक्षा करनेवालों की ढील की वजह से या गैर कानूनी तरीके से हो रहा है. आई.टी.पी.जी.आर.एफ. और यु.पी.ओ.वी. जैसी संधियों से भारत पर दबाव डाल कर उसके पौधों के सोत्रों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा शोषण करने के लिए बहुत कम दाम पर और जिन समुदायों ने इन्हें और इनके बीजों को तैयार किया है उनके हितों की कीमत पर खरीद लिया जा रहा है. दूसरी तरफ हमारे जैविक विविधता कानून को भी धता दिखाया जा रहा है और इन संधियों द्वारा हमारे राष्ट्रिय जैविक विविधता प्राधिकरण के अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है.

चीन सहित अन्य बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियां उनकी 100 प्रतिशत सहभागी भारतीय कंपनियों के माध्यम से भारत के बीज और पौधे खरीद कर अपने देशों को भेज रही हैं जबकि वहां से उनके देशों की प्रजातियों को भारत लाने की बात तो दूर, भारत की कोई कंपनी चीन, थाईलैंड आदि देशों की कोई भी कंपनी नहीं खरीद सकती है.

हमें भारत में विदेशी निवेश की नीति को राष्ट्रिय हितों को ध्यान में रख कर अपनानी चाहिए विशेष कर देश के बीज और पौधों के स्वदेशी भंडार को देखते हुए ताकि हम आने वाले मौसम परिवर्तन सहित अन्य चुनौतियों का सामना कर सकें.

जैविक विविधता सम्बन्धी नीति में दूसरा कदम किसानों के बीज उत्पादन और उसके विकास करने के अधिकारों की रक्षा करने का होना चाहिए.

जैसा कि इस लेख का शीर्षक 'प्रकृति में ही हमारे समाधान हैं' बताता है हमें हमारे यहाँ के जंगली पौधे, और वैविध्यपूर्ण जमीन के अनुकूल बीजों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है ताकि हम नयी चुनौतियों का सामना कर सकें. यह किसान और स्थानीय समुदायों की हिस्सेदारी से स्वावलंबन होने के लिए किया जाना चाहिए न कि पेटेंट की हुई तकनीक आधारित जो न केवल महँगी है बल्कि मुनाफे को बढ़ावा देती है.

हरित क्रांति के जनक एम.एस. स्वामीनाथन ने इस बात को कई बार जोर दे कर कहा है कि भारत की जैविक विविधता में हमारी सभी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता है और हमें इनमें जीन इंजीनियरिंग या कोई और परिवर्तन लाने की जरूरत नहीं है. हमें अपनी समस्याओं के निदान के लिए प्रकृति और उसकी विविधता की ओर ध्यान देना चाहिए.

हममें से हर एक को जैविक विविधता की चीजों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए. यह न केवल आर्थिक रूप से बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक होगा. हम इसकी शुरुआत अपने रोज के खाने में जवार, बाजरा जैसे दानों या भात और गेहूं की स्थानीय उपज को शामिल कर के कर सकते हैं. इससे जैविक विविधता को बढ़ावा मिलेगा और हमारा स्वास्थ्य भी बेहतर होगा.

हमें कोल्ड स्टोरेज में रखे फल और तरकारियों के बदले स्थानीय और मौसमी देशी तरकारी को प्राथमिकता देनी चाहिए. प्रोसेस किए गए खाद्य पदार्थ में भी हमें जैविक विविधतावाली चीजें खरीदनी चाहिए और जनजातियों का समर्थन करना चाहिए. कपड़ों के बारे में भी हमें बीटी कपास के एकाधिकार को समाप्त करने के लिए भारतीय नागरिकों को जागृत करना होगा कि वे हैंडलूम और अन्य सहकारी प्रयास से बनने वाले कपड़ों का इस्तेमाल करें.

सही समाधान जागरूकता में हैं. हमें वसुधेव कुटुम्बकम को अपनाकर हमारे जीवन में जैविक विविधता की पवित्रता को लाना होगा. हमें मुनाफे के लिए प्रकृति के खिलाफ युद्ध भावना को दूर कर उसके द्वारा दिए अकूट सम्पदा का सम्मान करना होगा. हमें अपना स्वभाव और भाषा बदलनी होगी जो प्रकृति को एक निर्जीव चीज समझती है. हमें उसे कोई चीज न समझ कर देवी के रूप में पूजना होगा क्यों कि वह वास्तव में एक देवी है.

इन्द्र शेखर सिंह (निदेशक – पालिसी एंड आउटरीच, नेशनल सीड्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया)

Last Updated :May 29, 2020, 12:27 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.