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संन्यास के बाद अब धोनी करेंगे कड़कनाथ पालन, दिया ऑर्डर

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Published : Nov 11, 2020, 11:03 PM IST

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी अपने शहर रांची में झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गों को बेचेंगे. धोनी ने इसके लिए मध्य प्रदेश में झाबुआ के कड़कनाथ के 2 हजार चूजों के लिए एडवांस भुगतान के साथ ऑर्डर भी झाबुआ के आदिवासी किसान को दे दिया है.

mahendra singh dhoni
mahendra singh dhoni

झाबुआ : भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी अब कड़कनाथ मुर्गे का पालन करेंगे. क्रिकेट से रिटायरमेंट लेने के बाद क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी अपने रांची स्थित फॉर्म हाउस पर कड़कनाथ पालन का काम शुरू करने वाले हैं. इसके लिए उन्होंने मध्य प्रदेश कड़कनाथ ऐप के माध्यम से झाबुआ जिले के रूंधीपाड़ा गांव में कड़कनाथ की फार्मिंग करने वाले विनोद मेडा को कड़कनाथ के चूजों का ऑर्डर दिया है. इसके लि‍ए रांची में धोनी ने अपने वेटनरी कॉलेज के प्रोफेसर दोस्त के जरिऐ एमपी में झाबुआ के आदिवासी किसान विनोद मैडा को अग्रिम भुगतान के साथ 2 हजार चूजों की डिलीवरी 15 दिसंबर तक करने को कहा है.

किसको दिया है चूजों का ऑर्डर
झाबुआ के आदिवासी किसान विनोद धोनी के इस ऑर्डर से काफी खुश हैं. विनोद को उम्मीद है कि जब वह कड़कनाथ चूजों की डिलीवरी देने रांची जाएंगे, तो धोनी से उनकी मुलाकात जरूर होगी. क्योंकि वो धोनी के फैन भी हैं.

ईटीवी भारत रिपोर्ट

क्या है कड़कनाथ ऐप
कड़कनाथ की ब्रांडिंग के लिए मध्य प्रदेश सरकार समय-समय पर प्रचार-प्रसार अभियान चलाती है. इसी अभियान के तहत एमपी कड़कनाथ के नाम से एक ऐप तैयार किया गया है. इस ऐप के माध्यम से ही क्रिकेटर और भारतीय टीम के पूर्व कप्तान ने झाबुआ के एक आदिवासी युवक विनोद मेडा को 2000 कड़कनाथ चूजों के लिए ऑर्डर दिया है. इसके लिए विनोद को 1 लाख 80 हजार का एडवांस भी मिल चुका है. ऑर्डर की पुष्टि होने के बाद थांदला विकासखंड के विनोद ने 15 दिसंबर तक चूजों की सप्लाई की बात कही है.

क्या होता है कड़कनाथ
मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ और धार जिले में विशेष रूप से कड़कनाथ मुर्गा पाया जाता है. स्थानीय भाषा में इसे काली मासी मुर्गा भी कहा जाता है. कड़कनाथ मुर्गे की कलगी, त्वचा, मांस, टांग, हड्डियां, नाखून, पंख, अंडा और खून सभी काले रंग के होते हैं. इसी के चलते इसे कड़कनाथ मुर्गा कहा जाता है. इसका मांस अन्य प्रजातियों के मुर्गे की तुलना में स्वादिष्ट होता है. वहीं कड़कनाथ मुर्गे के मांस में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और कम मात्रा में वसा होता है.

इसको खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है, जिसकी वजह से नॉनवेज खाने वालों की पहली पसंद कड़कनाथ मुर्गा बन जाता है. खास तौर पर ठंड के दिनों में कड़कनाथ मुर्गे की डिमांड अत्यधिक हो जाती है, अब इसकी पहचान मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं रह गई है.

औषधीय गुणों से भरपूर कड़कनाथ
अपने औषधीय गुणों और रंग रूप के चलते पूरे भारत में प्रसिद्धि पा चुका कड़कनाथ मुर्गा अब देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचने लगा है. कड़कनाथ की डिमांड के चलते लोग बड़ी संख्या में इसकी फार्मिंग कर रहे हैं. कड़कनाथ के पालन के लिए बड़ी संख्या में लोग झाबुआ पहुंचते हैं, ताकि यहां की ऑरिजिनल ब्रिट को अपने गांव, जिले और प्रदेश में पालन के लिए ले जा सके. कड़कनाथ की फार्मिंग करने वालों में जल्द ही एक बड़ा नाम जुड़ने जा रहा है.

चिकन के शौकीनों की पहली पसंद कड़कनाथ
चिकन के शौकीनों की पहली पसंद कड़कनाथ मुर्गा बनता जा रहा है. उसकी खास वजह कड़कनाथ मुर्गे के औषधीय गुण हैं. कड़कनाथ मुर्गे में अन्य प्रजातियों के मुर्गे की तुलना (18 प्रतिशत) में प्रोटीन की मात्रा (25 प्रतिशत) अधिक होती है. कड़कनाथ मुर्गे के मांस में वसा (0.73 से 1.05 प्रतिशत) अन्य प्रजाति (12 से 25 प्रतिशत) के मुर्गों की तुलना में काफी कम होती है, जिसके चलते इस प्रजाति के मुर्गे के मांस का सेवन हृदय रोगियों और डायबिटीज के रोगियों के लिए लाभदायक साबित होता है.

ठंड में कड़कनाथ की विशेष मांग
जैसे ही ठंड के मौसम की शुरुआत होती है, वैसे ही कड़कनाथ मुर्गे की मांग बड़ी तेजी से बढ़ने लगती है. इसके पीछे की वजह कड़कनाथ मुर्गे के मांस की तासीर को बताया जाता है, क्योंकि कड़कनाथ मुर्गे के मांस की तासीर गर्म होती है. इसी के चलते ठंड के दिनों में कड़कनाथ मुर्गे के मांस का सेवन करने से शरीर को गर्मी मिलती है, जो कड़ाके की ठंड में राहत देने का काम करती है.

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