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बाल तस्करी में नंबर तीन पर बिहार, 10 साल में सात हजार नाबालिग बच्चे लापता

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Published : Feb 1, 2021, 10:52 PM IST

बिहार में इन दिनों नाबालिग बच्चों की तस्करी के मामलों के इजाफा हुआ है. आये दिन बच्चों को बहला-फुसलाकर तस्करी की जा रही है. वहीं, प्रदेश में अब तक लगभग सात हजार नाबालिग बच्चे-बच्चियां लापता हैं.

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बाल तस्करी

पटना : बिहार राज्य में हत्या, लूट, दुष्कर्म, तस्करी जैसी घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है. बता दें कि पिछले कुछ सालों में चार से 14 साल तक के नाबालिग बच्चे-बच्चियों के लापता होने का सिलसिला लगातार जारी है. वहीं, प्रदेश से लगभग 7,000 नाबालिग बच्चे-बच्चियां लापता हैं. इन सभी लापता बच्चों के बारे में कुछ भी कह पाना अभी मुश्किल है.

लगातार बढ़ रहा अपराध
बिहार में लगातार बढ़ रहे अपराध और लगभग हजारों की संख्या में गायब हो रहे बच्चों को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. बिहार में इन दिनों लगातार मानव तस्करी का मामला बढ़ता ही जा रहा है. बाल तस्करी के मामले में बिहार तीसरे नंबर पर है. बिहार में हर दिन एक बच्चे की तस्करी किया जा रहा है. देश में राजस्थान और पश्चिम बंगाल के बाद बाल तस्करी के दर्ज प्रकरणों के मामले में बिहार तीसरा राज्य बन गया है.

एडीजी जितेंद्र कुमार ने दी जानकारी

नि:शुल्क FIR दर्ज करने का निर्देश
पुलिस मुख्यालय के एडीजी जितेंद्र कुमार की मानें तो मानव तस्करी को लेकर पुलिस मुख्यालय इसे बहुत गंभीरता से लेता है. उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद पुलिस मुख्यालय ने सभी जिले के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया है कि नाबालिग बच्चों के गायब होने वाले मामलों में 24 घंटे के अंदर नि:शुल्क एफआईआर दर्ज होना अनिवार्य है. यही कारण है कि ज्यादा से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं.

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टास्क फोर्स का गठन
बिहार के हर जिले में बच्चों की बरामदगी को लेकर टास्क फोर्स का भी गठन किया गया है. साथ ही साथ पुलिस मुख्यालय वर्कशॉप के माध्यम से पुलिसकर्मियों को भी बच्चों की बरामदगी को लेकर ट्रेनिंग और टिप्स दे रहा है. पुलिस प्रयासरत है कि जल्द से जल्द गायब बच्चों को बरामद कर, उनके परिजनों तक पहुंचाया जा सके. पुलिस मुख्यालय से मिल रही जानकारी के अनुसार, सरकारी आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2011 से अब तक कुल 7,599 गुमशुदगी के मामले बिहार के अलग-अलग थानों में दर्ज हुए हैं, जिनमें से 2,730 नाबालिग बच्चियां और 4,866 नाबालिक बच्चे शामिल हैं.

4000 बच्चों की हो चुकी है बरामदगी
पुलिस मुख्यालय के एडीजी जितेंद्र कुमार भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि बिहार से बच्चों का गायब होने का सिलसिला बदस्तूर जारी है, लेकिन साथ ही उनका यह भी कहना है कि इनमें से तकरीबन 4,000 बच्चे बच्चियों मिल चुके हैं. जितेंद्र कुमार के मुताबिक, लापता बच्चों को खोजने के लिए समय-समय पर विशेष अभियान भी चलाया जाता है.

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पोर्टल के माध्यम से की जाती है तलाशी
जो बच्चे खुद से घर वापस लौट आते हैं, उन बच्चों के परिजन पुलिस को बताना जरूरी भी नहीं समझते. जिससे वापस आए बच्चों के गुमशुदगी का रिपोर्ट दर्ज ही रह जाती है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार के विभिन्न पोर्टल के माध्यम से भी बच्चों की तलाशी की जाती है. विशेष टीम के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाए भी आगे बढ़कर काम कर रहे हैं. हालांकि, केंद्र सरकार ने गायब हो रहे बच्चों को ढूंढने के लिए ट्रैक द चाइल्ड पोर्टल और खोया-पाया पोर्टल के माध्यम से बच्चों को ढूंढा जाता है.

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एफआईआर दर्ज होना अनिवार्य
सुप्रीम कोर्ट के 2013 के आदेश के बाद सभी गायब बच्चों के लिए एफआईआर दर्ज होना अनिवार्य कर दिया है. बच्चों के गायब होने वाले करीबन 8,000 मामले न्यायालय में चल रहे हैं. दूसरे राज्यों के ब्रोकर बिहार आकर गरीब परिवार को निशाना बनाते हैं. दूसरे राज्यों में अच्छी नौकरी का प्रलोभन देकर लड़कियों और लड़कों को बाहर ले जाते हैं. लड़कियों को अक्सर वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया जाता है. वहीं लड़कों से जबरन बाल श्रम करवाया जाता है.

पुलिस के माध्यम से चलाया जा रहा अभियान
पुलिस के माध्यम से समय-समय पर विशेष अभियान चलाकर ट्रेनों, बसों से तस्करी पर रोक लगाई जाती है. भारत में वेश्यावृत्ति कानून में कई मामले में स्पष्टता नहीं है. बाल श्रम के खिलाफ काम कर रहे पटना के गैर सरकारी संगठन सेंटर डायरेक्ट के निदेशक सुरेश कुमार की मानें तो पहले की तुलना में बिहार में मानव तस्करी बढ़ गई है. दूसरे राज्य से आए ब्रोकरों के माध्यम से बिहार के अलग-अलग जिले से मानव तस्करी किया जा रहा है. जिसमें ज्यादातर बाल तस्करी ज्यादा हो रही है. ब्रोकर गरीब परिवारों को झांसा देकर उनके बच्चों को अच्छे काम दिलवाने के बहाने दूसरे राज्य ले जा रहे हैं.

''इन दिनों दलाल नए-नए पैंतरा आजमा रहे हैं. लगातार छापेमारी कर बाल श्रम को मुक्त करवाया जा रहा है. जिस वजह से इन दिनों दलाल पुलिस से बचने के लिए बच्चों के साथ-साथ उनके परिजनों को भी ले जा रहे हैं. पुलिस को धोखा देने के लिए दलाल बच्चों का फर्जी आधार कार्ड और परमानेंट एड्रेस प्रूफ भी बनाते हैं.'' -सुरेश कुमार, निदेशक, गैर सरकारी संगठन सेंटर

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