कुचामनसिटी. डीडवाना अपनी गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता है. यहां दोनों सम्प्रदाय के लोग एक साथ धार्मिक परंपराएं निभाकर दीपावली, होली, ईद एक साथ मनाते हैं. महाशिवरात्रि पर भी डीडावाना में बरसों से एक ऐसी अनूठी परम्परा निभाई जाती है, जो दोनों धर्मो के सौहार्द्ध को एक डोर में बांधती है. महाशिवरात्रि के पावन मौके पर हर-हर महादेव कि गूंज के साथ साथ जोगामंडी धाम के नाथ सम्प्रदाय के महंत का जुलूस मुस्लिम मोहल्लों में पहुंचा, तो मुस्लिम समाज ने महंत के जुलूस का स्वागत किया.
स्थानीय निवासी राजेंद्र माथुर ने बताया कि डीडवाना में सदियों पूर्व साम्प्रदायिक सद्भावना की जो नींव हिन्दू-मुस्लिम समुदायों के पूर्वजों ने डाली थी, वो आज भी जारी है. दोनों समुदाय के लोग न केवल इस परम्परा को निभा रहे हैं, बल्कि देश व दुनिया को भी साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश दे रहे हैं. इसी परम्परा के तहत नाथ सम्प्रदाय के प्राचीन धाम जोगामंडी के प्रमुख पीर लक्षमणनाथ महाशिवरात्रि के मौके पर घोड़ी पर सवार होकर गाजे-बाजे के साथ जुलूस के रूप में नगर भ्रमण पर निकले. उनका जुलूस सबसे पहले सैयदों की हताई और काजियों के मोहल्ले में पहुंचा, जहां सदियों पुरानी परंपरा के तहत मुस्लिम समुदाय के लोगों ने नाथजी का स्वागत सत्कार किया और उन्हें श्रीफल भेंट किया.
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मुस्लिम समाज ही पहनाता है महंत को पगड़ी : इस मौके पर नाथजी ने लोगों को विशेष रोट भेंट किया. बताया जाता है कि यह रोट अन्न को समर्पित होता है और मान्यता है कि इस रोट को अनाज के साथ रखने पर घर में बरकत होती है और कभी भी अन्न की कमी नहीं रहती है. इस परंपरा के साथ एक खास बात और जुड़ी हुई है, जो साम्प्रदायिक सौहार्द की जड़ों को और मजबूत करती है. जोगा मंडी धाम में जब भी नाथ सम्प्रदाय के नाथ मठाधीश की नियुक्ति होती है, तब मुस्लिम समाज ही उन्हें पगड़ी पहनाता है और माथुर समाज की ओर शॉल ओढ़ाई जाती है.