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यहां खेली जाती है अनोखी 'जूता मार होली', भैंसा गाड़ी पर बैठकर निकलते हैं 'लाट साहब', जानिए क्या है परंपरा

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 18, 2024, 10:14 AM IST

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यूपी के शाहजहांपुर अनोखी होली खेली जाती है. यहां जूता मार होली (Holi is played in Shahjahanpur) से रंगों के पर्व की लोग शुरुआत करते हैं. इस स्पेशल रिपोर्ट में जानिए जूता मार होली की कब शुरुआत हुई?

शाहजहांपुर में खेली जाती है अनोखी 'जूता मार होली

शाहजहांपुर : रंगों का त्योहार होली पूरे विश्व में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. कहीं फूलों से होली खेली जाती है तो कहीं लट्ठमार होली मनाई जाती है. लेकिन, उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में अनोखी 'जूते मार होली' खेलने का प्रचलन है. इस अनोखी होली को अंग्रेजों के प्रति गुस्सा प्रकट करने के लिए मनाया जाता है. इस हुड़दंग वाली होली में किसी तरह का कोई विवाद न हो इस लिए जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन जुलूस में मौजूद रहते हैं. शाहजहांपुर की गंगा जमुनी तहजीब को कोई शरारती तत्व बिगाड़ न दे इसके लिए 'लाट साहब' के जुलूस के रास्ते में पड़ने वाली मस्जिदों को तिरपाल से ढकवा दिया जाता है और मस्जिदों की सुरक्षा के लिए पुलिसकर्मियों की तैनाती की जाती है.

डेढ़ सौ वर्ष से अधिक समय से चली आ रही परंपरा : दरअसल, उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में विश्व की अनोखी जूता मार होली खेली जाती है. इस अनोखी जूता मार होली में एक शख्स को लाट साहब बनाकर भैंसा गाड़ी पर बैठाया जाता है और फिर उसे बेतहाशा जूते और झाड़ू मार कर पूरे शहर में घुमाया जाता है. इस दौरान आम लोग लाट साहब को जूते भी फेंककर मारते हैं. वहीं, जब लाटसाहब का जुलूस चौक कोतवाली पहुंचता है तो कोतवाल उस लाटसाहब को सलामी देता है. जब लाट साहब उससे पूरे साल का क्राइम रिकॉर्ड मांगते हैं तब कोतवाल लाट साहब को उपहार देकर उन्हें मना लेते हैं. ये परंपरा डेढ़ सौ वर्ष से अधिक समय से चली आ रही है. गौरतलब है शाहजहांपुर में निकलने वाले लाट साहब के जुलूस की परंपरा बेहद ही पुरानी है. चूंकि अंग्रेजों ने जो जुल्म हिन्दुस्तानियों पर किये हैं वो दुख आज भी हर किसी के दिल मे मौजूद है. यहां के लोग अंग्रेजों के प्रति अपना दर्द और आक्रोश बेहद अनूठे ढंग से प्रदर्शित करते हैं. इस जुलूस में हजारों की संख्या में हुड़दंगी जमकर हुड़दंग मचाते हैं.

सराय काईया से निकाला जाता है जूलूस : लाट साहब का जुलूस शहर में दो स्थानों से निकाला जाता है. पहला जुलूस थाना कोतवाली के बड़े चौक से और दूसरा जुलूस थाना आरसी मिशन के सराय काईया से निकाला जाता है, जिसमें भारी संख्या में हुड़दंगी हर साल शामिल होते हैं और जमकर हुड़दंग करते हैं. पहला बड़ा जुलूस कोतवाली क्षेत्र में फूलमती मंदिर में पूजा अर्चना से शुरू होता है. लाट साहब को एक भैंसागाड़ी में तख्त पर हेलमेट पहनाकर बैठाया जाता है. भैंसा गाड़ी पर चारों तरफ पुलिसकर्मी मोर्चा संभाल लेते हैं ताकि लाट साहब को कोई भारी चोट न पहुंचे. इसके बाद जुलूस जब कोतवाली चौक पहुंचता है तब परंपरा के मुताबिक, कोतवाल लाट साहब को सलामी देता है और लाट साहब के द्वारा 1 साल का क्राइम रिकॉर्ड मांगने पर कोतवाल लाट साहब को उपहार और नकदी देते हैं. इसके बाद जुलूस चार खंबा, केरूगंज, बेरी चौकी, अंटा चौराहा, खिरनीबाग होते हुए सदर बाजार थाने पहुंचता है. यहां पर भी सदर थाने के प्रभारी निरीक्षक लाट साहब को उपहार देते हैं. इसके बाद जुलूस बाबा विश्वनाथ मंदिर पहुंचता है, यहां मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है.

लाट साहब पर उड़ेला जाता है रंग : इसी तरह से लाट साहब का दूसरा बड़ा जुलुस थाना रामचंद्र मिशन क्षेत्र में सरायकाइयां से निकला जाता है. जगह-जगह लाट साहब पर रंग उड़ेला जाता है और जूते और झाड़ू से स्वागत किया जाता है. जुलूस सराय काइयां चौकी से चलकर तारीन गाड़ीपुरा, पक्का पुल, दलेलगंज, गढ़ी गाड़ीपुरा पुत्तूलाल चौराहा से होते हुए पुन: सराय काइयां पर आकर खत्म होता है. दोनों जुलूसों के दौरान हुड़दंगी हुड़दंग करते हैं और कहीं-कहीं बहक रहे हुरियारों को पुलिस ने समझा-बुझाकर शांत करते हैं. शहर में लाटसाहब के जुलूस में किसी प्रकार का कोई हुडदंग ना हो इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों और भारी पुलिस सुरक्षा के बीच इस जुलूस को निकाला जाता है. वहीं, कई बार ऐसा हुआ जब मस्जिद में लोगों ने रंग डाल दिया और विवाद की स्थिति पैदा हो गई. इसी के चलते हर बार की तरह इस बार भी जुलूस के रास्ते में पड़ने वाली मस्जिदों को पूरी तरीके से तिरपाल से ढक दिया गया है. इसके साथ ही भारी संख्या में पुलिस फोर्स जुलूस में मौजूद होता है तथा जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के आला अधिकारी भी मौके पर होते हैं. सुरक्षा व्यवस्था के लिए ड्रोन कैमरे भी इस जूलूस की निगरानी के लिए लगाए जाते हैं. पूरे जुलूस की वीडियो ग्राफी की जाती है.

इस मामले में इतिहासकार डॉ. विकास खुराना का कहना है कि सन् 1857 से इस जुलूस की परंपरा है. यह जुलूस मुगलकालीन इतिहास से संबंधित है. 1980 में शाहजहांपुर के जिला अधिकारी ने इस जुलूस का नाम बदलकर लाट साहब का जुलूस रख दिया था. जुलूस बहुत ही विशाल है क्योंकि आईएएस ट्रेनिंग में तीन जुलूस का मैनेजमेंट सिखाया जाता है. उसमें एक जुलूस शाहजहांपुर का लाट साहब का जुलूस है. इसके प्रबंधन के बारे में आईएएस को ट्रेनिंग दी जाती है.

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