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कहानी कारसेवकपुरम की, जिसने सरयू तट के जंगलों से शुरू किया राम मंदिर अध्याय

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 21, 2024, 6:49 PM IST

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कहानी कारसेवकपुरम की

अयोध्या में राम मंदिर के बनकर तैयार होने से पहले के संघर्षों को यदि याद किया जाए तो उसमें एक अध्याय जुड़ता है, कारसेवा का. पढ़िए (Story of Karsevakapuram) कारसेवकपुरम की कहानी, जिसे बनाए जाने का उद्देश्य ही कारसेवकों को आश्रय देना था.

बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेम शुक्ल ने दी जानकारी

अयोध्या: रामनगरी में राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है. भगवान रामलला अपने गर्भगृह में विराजमान हो चुके हैं. ऐसे में इस दिन को लेकर हर कोई उत्साह से भरा हुआ दिख रहा है. लेकिन, इस बीच हम उन लोगों को भी याद कर रहे हैं, जिनकी वजह से यह संघर्ष शुरू हुआ और आज उनका सपना साकार हो रहा है. हम बात कर रहे हैं, उन कारसेवकों की और कारसेवा में लगे लोगों के लिए बने कारसेवकपुरम की. कारसेवकपुरम को बनाए जाने का उद्देश्य ही कारसेवकों को आश्रय देना था. एक समय था जब यह क्षेत्र सरयू का तट हुआ करता था. अमरूद के बाग और जंगल हुआ करता थे. यहीं पर रहकर कारसेवक अपना संघर्ष कर रहे थे. आइए जानते हैं क्या है ये कारसेवकपुरम.

अयोध्या में हर ओर राम नाम का उल्लास है. हर कोई इस उल्लास में शामिल है. कोई लंगर लगा रहा है, तो कोई किसी और तरीके से रामभक्तों की सेवा कर रहा है. राम मंदिर के बनकर तैयार होने से पहले के संघर्षों को अगर याद किया जाए, तो उसमें एक अध्याय जुड़ता है, कारसेवा का. कारसेवकों ने किस तरह से राम मंदिर बनाए जाने का संकल्प लेकर कारसेवा की थी, किस तरह से विश्व हिन्दू परिषद ने कारसेवा को आगे बढ़ाया और हजारों से लाखों लोगों का कारवां बनता गया. जब कारसेवा का दौर अयोध्या में चल रहा था उस दौर में सरयू नदी के तट पर वर्तमान में बसे कारसेवकपुरम में लोगों ने आश्रय लिया था.

1990 में की गई थी कारसेवा की घोषणा: बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश शर्मा बताते हैं, हर नाम भारत में और भारतीय संस्कृति में कुछ अर्थ प्रकट करता है. कारसेवकपुरम भी इसी प्रकार का है. कारसेवकपुरम का अर्थ है जहां पर कारसेवक लोगों ने आश्रय प्राप्त किया हो. जब 1990 की कारसेवा की घोषणा संतों के द्वारा की गई थी. उस समय यहां की दंभी सरकार और दंभी मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने यह घोषणा कर दी थी कि परिंदे को पर नहीं मारने देंगे. तब यहीं पर अमरूद के बाग और जंगलों के बीच में हजारों की संख्या में कारसेवकों ने यहां आश्रय लिया था. रेत में, थोड़ा बहुत पानी में कष्ट सहते हुए कई-कई दिनों तक वे लोग रुके रहे.

30 अक्टूबर को हजारों कारसेवक निकल पड़े: वे बताते हैं कि अगर कारसेवकों को भोजन मिल गया तो कर लिया. नहीं तो अपने साथ लाया गया चना-चबैना खाकर अपना दिन बिताया था. 30 अक्टूबर के दिन अशोक सिंघल, नृत्य गोपालदास दास महाराज और वामदेवजी के नेतृत्व में ये लोग जब कारसेवा का लक्ष्य लेकर निकले तो हजारों की संख्या में कारसेवक उनके साथ हो लिए. इन सभी ने संतों के कृतसंकल्प को पूरा किया. इन्होंने दुनिया को दिखाया कि हम जो संकल्प लेते हैं उसको हर कीमत पर अपनी जान की बाजी लगाकर पूरा करते हैं. आप राम के पूरे जीवन को देखेंगे तो जो दौर राम के जीवन में आया था आज यही अयोध्या की स्थिति है.

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दुनिया में बढ़ रहा है अयोध्या का वैभव: प्रकाश शर्मा बताते हैं कि, वह भी दौर था कि राम वन-वन में नंगे पैर अपनी पत्नी और अपने भाई के साथ जंगल-जंगल भटकते हुए लंका तक गए. रावण को परास्त किया और अयोध्या वापस आए. एक लंबा वनवास झेलते के बाद रामलला भी अपने गर्भगृह में स्थापित हो चुके हैं. अयोध्या सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व का उत्कृष्ट शहर बनने जा रहा है. जैसे-जैसे अयोध्या का वैभव बढ़ रहा है. वैसे-वैसे भारत का भी वैभव बढ़ रहा है. भारत पूरे विश्व को दिशा देने का काम आगे आने वाले समय में करने वाला है. इसको इस अयोध्या के कार्यक्रम के माध्यम से हम देख पा रहे हैं.

हमने वचन निभाया है, मंदिर वहीं बनाया है: वे बताते हैं कि जब कारसेवा का दौरा चल रहा था तब हमारा नारा था कि रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे. अब हमारा नारा हो गया है कि हमने वचन निभाया है, मंदिर वहीं बनाया है. पहला वचन निभाया है. अयोध्या आए हैं. जल्दी ही काशी-मथुरा भी आएंगे. उन्होंने बताया कि आज कारसेवकपुरम में लंगर चल रहे हैं, विद्यालय चल रहे हैं, आश्रम हैं और भी कई तरह की सेवाओं को देने का काम किया जा रहा है. इसके साथ ही कारसेवकों के रुकने की व्यवस्था भी यहां पर की गई है. ऐसे में यहां निशुल्क भोजन लगभग रोजाना दिए जा रहे हैं, जिसमें अलग-अलग संस्थाएं लगी हुई हैं.

अयोध्या नगरी में भगवान राम का मंदिर में काम कर रहे कारीगरों और मजदूरों के लिए हर घर से चुटकी भर अनाज लेकर कारसेवकपुरम में एक बड़े भंडारे का आयोजन किया जा रहा है. इस भंडारे का संचालन जय गुरुदेव के द्वारा किया जा रहा है. इन भंडारों के आयोजन में हजारों लोग खाना खाते हैं. लेकिन, एक ऐसा भी भंडारा चल रहा है जो इन सबसे अलग है. इस भंडारे का आयोजन राम मंदिर के निर्माण में लगे श्रमिकों, मजदूरों आदि के लिए किया जा रहा है. आयोजकों का कहना है कि साल 2020 से इस भंडारे का संचालन हो रहा है. हर दिन यहां पर हजारों लोगों का भोजन बनता है. अलग-अलग राज्यों और जिलों से जत्था यहां खाना बनाने आता है.

हर घर से एक चुटकी अनाज जुटाते हैं: सेवादार जग्गू राम ने इस बारे में बताया कि जयगुरुदेव के संत सतगुरु बाबा उमाकांत जी महाराज के आदेश के अनुसार हम लोग काम कर रहे हैं. पूरे देश में करोड़ों भक्त हैं जो उनको मानते हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का राम मंदिर के पक्ष में फैसला आने के बाद से गुरुदेव की तरफ से राम मंदिर निर्माण में लगे लोगों को खाना खिलाने का आदेश दिया गया था. हम हर घर से एक चुटकी अनाज भी लेते हैं, तो इतना अनाज हो जाता है कि रोज हजारों लोगों का खाना बनाया जाता है. अगर एक-एक पाव भी राशन मिलता है तो भी हजारों किलो राशन इकट्ठा हो जाता है. इसी से हम राम मंदिर के निर्माण में लगे श्रमिकों को भोजन कराया जा रहा है.

रोजाना 1500 लोगों को मिलता है भोजन: सेवादार जग्गू राम बताते हैं कि मंदिर परिसर में 1500 लोगों और सड़क पर जरूरत मंदों के लिए भोजन की व्यवस्था, सुबह में ब्रेक फास्ट, चाय-नाश्ता, दोपहर बारह बजे भोजन और शाम के समय चाय-नाश्ता के साथ रात के समय भोजन की व्यवस्था रहती है. बाहर के लोगों को खाना खिलाने के लिए सुबह साढ़े ग्यारह से 12 बजे तक यहां से एक गाड़ी निकल जाती है, जो लोगों में खाना बांटने का काम करती है. इसके साथ ही लगभग 1500 लोग रोज कारसेवकपुरम में खाना खाते हैं. इस काम में लगभग 75 लोग लगे हुए हैं, जबकि रसोइया अलग से कार्य कर रहे हैं. बाटी-चोखा बनाने के लिए मशीन रखी गई है. हम सभी इस कार्य में लगे हुए हैं.

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