वाराणसी: संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में अब पुजारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसके लिए बाकायदा कैप्सूल कोर्स तैयार किया गया है. इसके तहत पहले से कर्मकांड कर रहे पुरोहित व पुजारी को प्रशिक्षण देकर र भी ज्यादा प्रशिक्षित किया जाएगा.
इस कोर्स का उद्देश्य है कि काशी के मंदिरों में पूजा-पाठ करा रहे ब्राह्मणों-पुजारियों के ज्ञान में और वृद्धि की जा सके. उन्हें शास्त्रीय पद्धतियों से हवन-पूजन की और अधिक जानकारी दी जा सके, जिससे कि उनका कौशल निखरे और भक्तों को शुद्धता के साथ पूजन का लाभ मिल सके.
वाराणसी आने वाले लोगों अक्सर वे शामिल होते हैं जो काशी की खूबसूरती और यहां के घाटों को निहारते हैं. साथ ही मंदिरों में दर्शन-पूजन करते हैं. इसके साथ ही कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो कर्मकांड के लिए भी काशी आते हैं. उसमें पिंडदान, अस्थि विसर्जन जैसी तमाम क्रियाएं भी शामिल होती हैं.
ऐसे में पुजारियों के पास हवन-पूजन की जानकारी तो होती है. मगर, किसी न किसी के पास शास्त्रीय पद्धतियों से इस प्रक्रिया को लेकर जानकारी नहीं होती है. ऐसे में वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय इन पुजारियों-पंडितों के लिए कैप्सूल कोर्स तैयार कर रहा है, जिसके माध्यम से उन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा और उनके कौशल में वृद्धि की जाएगी.
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने बताया कि काशी धर्म नगरी है, ज्ञान नगरी है और देव नगरी है. दुनियाभर से यहां लोग सांस्कृतिक पर्यटन की दृष्टि से आते हैं और धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत होकर मंदिरों में दर्शन करने के लिए भी आते हैं.
काशी में मंदिरों की संख्या बहुत अधिक है और सभी मंदिरों का अपना महत्व है. इसलिए देशभर से आने वाले जो लोग हैं, जो भक्तजन हैं वे लोग जब मंदिरों में दर्शन-पूजन करते हैं, हवन करते हैं तो वह शास्त्रीय रीति-नीति से शुद्धता के साथ संपन्न हो, ये भाव उनका रहता है.
उन्होंने कहा कि काशी आने वालों के इस भाव की पूर्ति के लिए संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ने ये संकल्प लिया है. जो भक्त यहां पर आते हैं उनको मंदिरों में पूजन पद्धति शास्त्रीय रीति-नीति से शुद्धता के साथ प्राप्त हो. उसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए हमने ये संकल्प लिया है.
काशी के मंदिरों के जो पुजारी हैं वे कुशल जरूर होंगे, लेकिन उनके कौशल संवर्धन के लिए विश्वविद्यालय उनकी सुविधा के लिए रिफ्रेशर कोर्स चलाएगा. इसके लिए छोटे-छोटे कोर्सेज चलाए जाएंगे. इसकी तैयारी विश्वविद्यालय ने कर ली है.
प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने बताया कि कम समय में अधिक से अधिक हम क्या दे सकते हैं, इस भाव से हम अपने यहां के विद्वानों के माध्यम से काशी के मंदिरों के सम्मानीय पुजारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था कर रहे हैं. इस कोर्स की व्यवस्था हम ऑनलाइन करेंगे.
मंदिर के पुजारी समय निकालकर फुल टाइम कोर्स करें तो ऐसे में उनके लिए असुविधा न हो. हमारा लक्ष्य भी पूरा हो और जो हमारा संकल्प है वह भी पूरा हो. इसीलिए इसकी ऑनलाइन व्यवस्था हम करेंगे. इससे पुजारी घर बैठे-बैठे पूजा-पद्धतियों का विधिपूर्वक संपादन सीख सकेंगे.
उन्होंने बताया कि इस कोर्स से पुजारियों के कौशल की अभिवृद्धि होगी. उनके पूजा करवाने के कौशल और भी प्रामाणिक होंगे. साथ ही और भी शास्त्रीय रीति-नीति के आधार पर होंगे. हम इसको लेकर अभी 15-15 दिन का प्रशिक्षण एवं रिफ्रेशर कोर्स चलाएंगे.
जिसके आधार पर उनके परिणामों का आकलन करके आगे उस कोर्स में हमें कुछ विशेष जोड़ना होगा तो वह भी करेंगे. इस कोर्स में एडमिशन के लिए विज्ञापन तैयार किया जा रहा है. हमारी कमेटी ने इसके संदर्भ में निर्णय लिया है. अभी एक सप्ताह के अंदर हम इसको डिजाइन कर लेंगे.
बता दें कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) न्यास ने बैठक में ये फैसला लिया था कि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को अनुदान दिया जाएगा. इसके साथ ही श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों को मानदेय दिया जाएगा. मंदिर के मुख्य पुजारी को बतौर मानदेय 90 हजार रुपये दिए जाएंगे.
इसके साथ ही कनिष्ठ पुजारी को 80 हजार रुपये और सहायक पुजारी को 65 हजार रुपये का मानदेय दिया जाएगा. बैठक में यह भी फैसला लिया गया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर में पुजारियों के कुल 50 पद होंगे. भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला जाएगा.
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