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जिस तारा देवी मंदिर में पहली बार कोई राष्ट्रपति करेगा पूजा, जानें उसकी कहानी, भंडारा करवाने के लिए सालों की वेटिंग लिस्ट - Tara Devi temple Shimla

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : May 7, 2024, 9:12 AM IST

Updated : May 7, 2024, 10:55 AM IST

Tara Devi temple Shimla
शिमला स्थित तारादेवी मंदिर (Etv Bharat)

Tara Devi temple Shimla: शिमला में स्थित जिस ऐतिहासिक तारादेवी मंदिर में आज राष्ट्रपति माता के दर्शन के लिए जाएंगी. जहां राष्ट्रपति को सेपू बड़ी, राजमा, कढ़ी चावल, मीठा बदाणा, मालपुए समेत दस व्यंजन प्रसाद के तौर पर परोसे जाएंगे. इसी मंदिर में मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालुओं को भंडारे के लिए बुकिंग करनी पड़ती है. जिसके बाद 3 से 5 साल बाद भंडारा देने की बारी आती है.

शिमला: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इन दिनों हिमाचल दौरे पर मौजूद हैं. आज हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रपति के दौरे का चौथा दिन है. राष्ट्रपति आज शिमला स्थित तारादेवी मंदिर में जाएंगी. वहीं, तारादेवी के मंदिर में जाने वाली द्रौपदी मुर्मू देश की पहली राष्ट्रपति होंगी. इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू संकटमोचन मंदिर में भी दर्शनों के लिए जाएंगी.

तारादेवी मंदिर की रोचक कहानी

हिमाचल प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक तारादेवी मंदिर राजधानी से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. चोटी पर बने इस मंदिर की कहानी बड़ी ही रोचक है. कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण राजा भूपेंद्र सेन ने करवाया था. भूपेंद्र सेन इस रियासत के सबसे ताकतवर राजाओं में से एक थे. कथाओं के अनुसार एक बार राजा शिकार के लिए तारादेवी के घने जंगलों में चले गए. ऐसा माना जाता था कि इस जंगल में मां तारा वास करती हैं. इस मंदिर को नया रंग रूप देने में पूर्व सीएम स्वर्गीय वीरभद्र सिंह का बहुत बड़ा योगदान है.

पहली कहानी

तारा देवी मंदिर के ट्रस्टी रहे कमल स्वरूप वर्मा ने बताया कि शिकार के दौरान राजा को मां तारा ने दर्शन दिए. मां ने इच्छा जताई कि वह इसी जंगल की पहाड़ी पर बसना चाहती हैं, ताकि भक्त आसानी से यहां आकर उनके दर्शन कर सकें. राजा ने भी हामी भर दी. राजा ने अपनी आधी से ज्यादा जमीन मंदिर निर्माण के लिए सौंप दी. यहां मंदिर निर्माण का काम शुरू हो गया. कुछ समय बाद जब मां का मंदिर तैयार हुआ तो राजा ने लकड़ी की मूर्ति के स्वरूप में यहां माता को स्थापित कर दिया. कहते हैं भूपेंद्र सेन के बाद मां ने उनके वंशज बलबीर सेन को भी दर्शन दिए. सेन ने यहां अष्टधातु की मूर्ति स्‍थापित की और मंदिर का निर्माण आगे बढ़ाया.

दूसरी कहानी

एक दूसरी कथा के अनुसार कहा जाता है कि 250 साल पहले मां तारा को पश्चिम बंगाल से शिमला लाया गया था. शिमला में सेन काल का एक शासक मां तारा की मूर्ति बंगाल से यहां लाया था. मां तारा भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं. यही वजह है कि हर साल यहां लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं. इसके अलावा पश्चिम बंगाल से शिमला आने वाले पर्यटक इस मंदिर में जाना नहीं भूलते. लोगों की ऐसी मानता है कि मंदिर के साथ करीब दो किलोमीटर नीचे जंगल में शिव बावड़ी भी है जहां बावड़ी में पैसे डालने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.

भंडारे के लिए करना पड़ता है सालों इंतजार

तारा देवी मंदिर के ट्रस्टी रहे कमल स्वरूप वर्मा का कहना है कि तारा देवी में रविवार के दिन भंडारा देने के लिए पहले बुकिंग करनी पड़ती है. बुकिंग के बाद तीन से चार साल में भंडारे देने का नंबर आता है. वर्मा ने बताया कि उन्होंने खुद भी तारा देवी मंदिर में रविवार के दिन भंडारा देने के लिए 2019 में बुकिंग कराई है. उन्होंने बताया कि चोटी पर विराजमान माता तारा देवी हर मनोकामना को पूर्ण करने वाली है. जो भी सच्चे मन से मंदिर में आता है कभी खाली हाथ वापस नहीं लौटा. ऐसे में मनोकामना पूर्ण होने के बाद यहां भंडारा देने भी परंपरा है. जिसके लिए श्रद्धालुओं को सालों इंतजार करना पड़ता है. इस मंदिर में मनोकामना पूरी होने पर लोग हर रविवार को भंडारे देते हैं. इसके लिए लोगों को भंडारे की पहले से ही बुकिंग लेनी पड़ती है और इसके बाद दो से तीन साल बाद भंडारा देने के लिए इंतजार करना पड़ता है. आज इसी ऐतिहासिक तारादेवी मंदिर में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सेपू बड़ी, राजमा, कढ़ी चावल, मीठा बदाणा, मालपुए समेत दस व्यंजन प्रसाद के तौर पर परोसे जाएंगे.

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Last Updated :May 7, 2024, 10:55 AM IST
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