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निशिकांत दुबे ने कहा- कांग्रेस इंपोर्टेड कैंडिडेट का कर रही है इंतजार, गोड्डा में नहीं है कोई टक्कर, प्रदीप और फुरकान पर साधा निशाना - contest on Godda lok sabha seat

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 21, 2024, 12:46 PM IST

Updated : Mar 21, 2024, 12:52 PM IST

CONTEST ON GODDA LOK SABHA SEAT
CONTEST ON GODDA LOK SABHA SEAT

Contest on Godda lok sabha seat सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता है. उन्होंने कहा कि गोड्डा से कोई उनके टक्कर में नहीं है. प्रदीप यादव और फुरकान अंसारी लगातार हारते रहे हैं. वे लोग अपना मुखिया तक नहीं बना पा रहे हैं.

सांसद निशिकांत दुबे का बयान

गोड्डाः लोकसभा चुनाव को लेकर बयानबाजी का दौर जारी है. एक तरफ बीजेपी ने झारखंड में तीन सीटों को छोड़कर 11 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है. वहीं दूसरी ओर इंडि गठबंधन में अभी तक सीट शेयरिंग पर ही चर्चा चल रही है. बीजेपी के घोषित प्रत्याशियों में से एक गोड्डा से निशिकांत दुबे भी हैं. वो चुनाव प्रचार में जुट गए हैं. विपक्ष पर जमकर निशाना भी साध रहे हैं.

सांसद निशिकांत दुबे कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार प्रदीप यादव और फुरकान अंसारी पर बयानबाजी कर रहे हैं. वहीं उनका कहना है कि कांग्रेस किसी बाहरी उम्मीदवार की तलाश में है, जो उन्हें टक्कर दे सकें. निशिकांत दुबे ने कहा कि उनके टक्कर में कौन चुनाव लड़ेगा जो चार चार बार चुनाव हार चुके हैं वे क्या चुनाव लड़ेंगे. वे लोग अपना जिला परिषद और अपना मुखिया तक नहीं बना पाते हैं. उनका साफ इशारा प्रदीप यादव की ओर था.

वहीं उन्होंने कहा कि फुरकान अंसारी भी हारते- हारते थक गए हैं. एक बार 2004 में जीते हैं. निशिकांत दुबे ने कहा कि हो सकता है कि फुरकान अंसारी सोचते हों कि अगर दुर्गा सोरेन नहीं लड़ते तो वो जीत सकते थे.

बता दें कि प्रदीप यादव पांच बार 2002, 2004, 2009, 20014, 2019 में लोकसभा चुनाव गोड्डा से लड़ चुके हैं. जिसमे दो बार भाजपा से और तीन बार झाविमो से. इनमें से वे 2002 में वे भाजपा के टिकट पर उपचुनाव जीते और 2004 में भाजपा से लड़े लेकिन कांग्रेस के फुरकान अंसारी से हार गए.

वहीं तीन चुनाव झाविमो से 2009, 2014 और 2019 में लड़े, जिसमें उन्हें हार झेलनी पड़ी. ये और बात है कि आखिरी चुनाव में वे कांग्रेस के साथ गठबंधन के उम्मीदवार थे. वहीं फुरकान अंसारी की बात करें तो वे 2002, 2004, 2009 और 2014 में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे हैं. जिसमें से एक बार 2004 में भाजपा के उम्मीदवार प्रदीप यादव को हरा कर जीत दर्ज की है.

बता दें कि निशिकांत दुबे के प्रतिद्वंदी दोनों ही रहे हैं, लेकिन फुरकान अंसारी के उम्मीदवार होने पर ध्रुवीकरण का फायदा होने की वजह से वे उनके लिए सूट करने वाला प्रतिद्वंद्वी हो सकते हैं. वहीं प्रदीप यादव के मामले अल्पसंख्यक के ही पिछड़ा का कॉम्बिनेशन अपेक्षाकृत चुनोती देना वाला होगा. हालांकि एक नाम दीपिका पांडेय सिंह महगामा विधायक का भी है, जो पिछड़ा, अल्पसंख्यक के साथ अगड़े को भी साधने में सफल है. क्योंकि दीपिका पांडेय सिंह खुद ब्राह्मण हैं. वहीं वो बहू कोइरी कुर्मी समाज से बड़े कांग्रेस नेता और कई बार के विधायक रहे पूर्व मंत्री अवध बिहारी सिंह के बेटे की पत्नी हैं. जिसकी इस लोकसभा क्षेत्र में बडी आबादी भी है.

'इस पूरे मामले राजनीतिक मामलों के जानकार पत्रकार प्रो रंजन बहादुर बताते हैं कि जातिगत ध्रुवीकरण लोकसभा में मायने रखता है . इसके असर से आगामी लोकसभा चुनावा भी अछूता नहीं रहने वाला है. अब तक आपसी लड़ाई का भाजपा को फायदा मिलता रहा है लेकिन सीधा मुकाबला होगा तो परिणाम किसी के पक्ष में जा सकता है. '

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Last Updated :Mar 21, 2024, 12:52 PM IST
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