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रंगमंच के महारथी पद्मश्री राज बिसारिया का निधन, कला जगत में शोक की लहर

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 16, 2024, 9:33 PM IST

कलाजगत के पुरोधा पद्मश्री राज बिसारिया (Theater Master Padmashree Raj Bisaria Passes Away) ने शुक्रवार शाम 6 बजे दुनिया से अलविदा कह गए. राज बिसारिया लंबे समय से गले के कैंसर से पीड़ित थे. पीजीआई लखनऊ से उनका इलाज चल रहा था. उनका अंतिम संस्कार शनिवार को भैंसाकुंड में किया जाएगा.

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लखनऊ : मशहूर रंगकर्मी और भारतेंदु नाट्य अकादमी के संस्थापक निदेशक पद्मश्री राज बिसारिया का शुक्रवार को निधन हो गया. उन्होंने शुक्रवार शाम करीब 6 बजे विशालखंड, गोमतीनगर स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली. वह गले के कैंसर से पीड़ित थे. लंबे समय से उनका उपचार चल रहा था. उनका अंतिम संस्कार शनिवार दोपहर 12 बजे भैंसाकुंड में किया जाएगा. पत्नी किरण राज बिसरिया ने बताया कि राज बिसारिया को सांस लेने में भी तकलीफ थी. सीने में दर्द की भी शिकायत रहती थी. तीन वर्ष पहले मेदांता अस्पताल में उनकी एंजियोप्लास्टी की गई थी. वह इन दिनों अस्वस्थ थे. उनका उपचार संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान से चल रहा था. दो-तीन दिन पहले अस्पताल से घर लाया गया था. उनकी हालत लगातार नाजुक बनी थी.

राज बिसारिया की प्रमुख प्रस्तुतियां.
राज बिसारिया की प्रमुख प्रस्तुतियां.

राज बिसारिया का जन्म लखीमपुर खीरी में 10 नवंबर 1935 में हुआ था. उन्होंने काॅल्विन तालुकदार कॉलेज और लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षा प्राप्त की थी. लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त हुए. 1969 में बिसारिया ने किरण से शादी की थी. उनकी एक बेटी रजनी हैं, जो अमेरिका में रहती है. राज बिसारिया पश्चिमी क्लासिक्स और समकालीन नाटकीय कार्यों दोनों में एक ग्राउंडिंग के साथ एक मंच निर्देशक भी थे. उन्होंने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि नाटकीय और प्रदर्शन कला एक पेशेवर अनुशासन के अनुरूप हो और एक नए सौंदर्य माध्यम के माध्यम से संवाद करें. उनके नाटक पुरुष-महिला संबंधों और उनके लिए विशेष चिंता के सामाजिक मुद्दों से संबंधित हैं. नाटकों के निर्माण के माध्यम से बिसारिया ने निर्देशक और डिजाइनर के रूप में समकालीन विश्व नाटक का एक व्यापक स्पेक्ट्रम प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते थे. बड़े पैमाने पर अपने स्वयं के उपकरणों और रचनात्मक अभिव्यक्ति का उपयोग करते हुए उन्होंने अंग्रेजी में अपना काम शुरू किया और फिर 1973 से अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में हिंदुस्तानी का उपयोग करने के लिए उन्होंने लोक रंगमंच को प्रोत्साहित किया है.

राज बिसारिया को मिले सम्मान.
राज बिसारिया को मिले सम्मान.


1972 में उन्होंने आधुनिक यूरो-अमेरिकी प्रस्तुतियों से आधुनिक भारतीय नाटककारों के हिंदी नाटकों पर जोर दिया. इन वर्षों में राज बिसारिया ने 75 से अधिक थिएटर प्रस्तुतियों का निर्माण और निर्देशन किया. इसके अलावा उन्होंने 1975 से 1986 तक और बाद में भारतेंदु एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा और इसकी रिपर्टरी कंपनी के लिए निर्देशन और प्रस्तुति निर्माण किया. 1966 में शेक्सपियर के ओथेलो, क्रिस्टोफर फ्राई के काव्य नाटक ए फीनिक्स टू फ़्रीक्वेंट और यूजीन इओनेस्को के बेतुके नाटक द लेसन के साथ 1967 में अंग्रेजी भाषा में अपना उद्यम शुरू किया. इन दो नाटकों का चयन अपने रूप और सामग्री में बिल्कुल विपरीत एक ही शो में राज बिसारिया का एक प्रयोग था. यह बॉक्स ऑफिस पर असफल रही थी. 1967 में एक महत्वपूर्ण प्रगति हुई जब राज बिसारिया ने तीन-बिल की प्रस्तुति में जीन-पॉल सार्त्र के अस्तित्वगत इन कैमरा, एडना सेंट विंसेंट मिलय की आरिया दा कैपो और रोनाल्ड डंकन के 12 वीं शताब्दी के क्लासिक एबेलार्ड और हेलोइस के अनुवाद का निर्माण और निर्देशन करने का फैसला किया. इसके अलावा उन्होंने हिंदी और उर्दू थियेटर पर भी काम किया. उन्होंने लखनऊ में एक द्विभाषी थिएटर स्थापित करने की अपनी योजना को साकार करने के लिए तत्कालीन मौजूदा थिएटर समूहों के सहयोग की भी मांग की. उन्होंने मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक, अधे-अधूरे के निर्माण अधिकार भी लाए, जिसे वे उपयुक्त कलाकारों के अभाव में मंचित नहीं कर सके. हिंदी नाटक में स्विच करने के लिए उन्होंने दिल्ली के समूहों को टीएडब्ल्यू के तत्वावधान में हिंदी में नाटकों का निर्माण करने के लिए आमंत्रित किया, ताकि स्थानीय समूहों को हिंदी और उर्दू थिएटर की संभावनाओं और चुनौतियों के बारे में जागरूक किया जा सके. उन्होंने भारतेंदु नाट्य अकादमी में 23 सितंबर 1975 से 10 सितंबर 1989 तक अपनी सेवाएं दीं.

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