वाराणसी : लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी है. वाराणसी में एक बार माहौल गर्म बना हुआ है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार यहां से चुनाव लड़ने जा रहे हैं. नरेंद्र मोदी के चुनाव लड़ने को लेकर वर्ष 2014 और 2019 में विपक्षियों ने बाहरी बनाम घरेलू का मुद्दा बना दिया था, मगर बनारसियों ने पीएम मोदी को रिकॉर्ड वोटों से जिताकर एक 'बाहरी प्रत्याशी' पर जमकर प्यार और वोट लुटाया था. पीएम मोदी के साथ ही ऐसे कई प्रत्याशी रहे हैं जो 'पैराशूट' माध्मय से बनारस से चुनाव लड़ने पहुंचे और जीत गए. वहीं प्रधानमंत्री ने दो बार रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज कर नया इतिहास बनाया है. इनके साथ ही पूर्वांचल की ऐसी सीटें हैं, जिन पर पार्टियों ने पैराशूट प्रत्याशी पर भरोसा जताया.
लोकसभा चुनाव में सीटों पर स्थानीय के साथ पैराशूट प्रत्याशियों को भी उतारा जाता है. बात अगर बनारस की करें तो अब तक चार पैराशूट प्रत्याशी उतारे गए हैं. जिस पर लोगों ने दिल खोलकर प्यार लुटाया. वहीं नरेंद्र मोदी इकलौते ऐसे प्रत्याशी बन गए, जिन्होंने पैराशूट प्रत्याशियों की लिस्ट में अपना एक अलग रिकॉर्ड बनाया है. खास बात यह है कि बनारस से नहीं बल्कि पूर्वांचल की भी ऐसी आधा दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहां पर पैराशूट प्रत्याशी मैदान में आए. वहां की जमीन को अपने लिए मजबूत बनाया और वहां के लोगों ने उन पर दिल खोल कर वोट लुटाया. आजमगढ़, चंदौली, घोसी और मिर्जापुर में भी पार्टियों ने पैराशूट प्रत्याशी उतारे हैं.
कांग्रेस के राजेश मिश्रा को बनारसियों ने जिताया : डॉ. राजेश मिश्रा आज भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं. मगर ये काफी वक्त तक कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में से एक रहे हैं. इस बार के चुनाव में उनकी उम्मीदवारी की चर्चा भी चल रही थी. साल 2004 के आम चुनाव में वाराणसी लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. राजेश मिश्रा ने जीत दर्ज की थी. उन्हें 2 लाख छह हजार 904 वोट मिले थे, जबकि भारतीय जनता पार्टी के शंकर प्रसाद जायसवाल को 1 लाख 49 हजार 468 वोटों से ही संतोष करना पड़ा था. बात अगर डॉ. राजेश मिश्रा की करें तो वे मूल रूप से वाराणसी नहीं बल्कि देवरिया के रहने वाले हैं. ऐसे में बनारसियों ने एक बाहरी और पैराशूट प्रत्याशी पर भरोसा जताया था.
मुरली मनोहर जोशी प्रयागराज से आए : इस लिस्ट में भारतीय जनता पार्टी से उम्मीदवार रहे मुरली मनोहर जोशी का भी नाम है. जोशी भाजपा के दिग्गज नेताओं में से एक रहे हैं. उन्होंने पार्टी की विचारधारा के बलबूते वाराणसी में जीत दर्ज की थी. साल 2009 में उन्होंने बनारस सीट से चुनाव लड़ा था. उन्हें 2 लाख तीन हजार 122 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर रहे मुख्तार अंसारी को 1 लाख 85 हजार 911 वोट मिले थे. वहीं बनारस के रहने वाले अजय राय को 1 लाख 23 हजार 874 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहकर संतोष करना पड़ा था. अब बात करें मुरली मनोहर जोशी की तो वे भी बनारस के रहने वाले नहीं थे. वे मूलरूप से प्रयागराज के रहने वाले हैं. मगर फिर भी बनारस के लोगों ने उन्हें चुना था. उनके साथ ही 1991 में श्रीश चंद्र दीक्षित, जो कि एक आईपीएस अधिकारी थे. ये भी बाहर से आकर वाराणसी में चुनाव लड़े थे, जहां जनता ने अपना वोट देकर उनके जिताया था,ये मूलतः रायबरेली के रहने वाले थे. ख़ास बात ये है कि ये बनारस के पहले पैराशूट प्रत्याशी थे.जिन्हे बीजेपी ने चुनावी मैदान में उतारा था.
नरेंद्र मोदी को दो बार मिला खूब प्यार और वोट : चौथे नंबर पर देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आता है. नरेंद्र मोदी वाराणसी से दो बार 2014 और 2019 में चुनाव लड़ चुके हैं और दोनों ही बार बड़े अंतर से जीत हासिल की है. साल 2014 में नरेंद्र मोदी को 5 लाख 81 हजार 22 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे अरविंद केजरीवाल को 2 लाख 9 लाख 238 वोट मिले थे. वहीं साल 2019 के चुनाव में नरेंद्र मोदी को 6 लाख 74 हजार 664 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहीं सपा की शालिनी यादव को 1 लाख 95 हजार 159 वोट मिले थे. नरेंद्र मोदी ने दो चुनावों में लगातार अपना ही जीत का रिकॉर्ड तोड़ा. नरेंद्र मोदी गुजरात के वडनगर के रहने वाले हैं.
बनारस में उतरे थे दो बाहरी प्रत्याशी : इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक प्रो विजय नारायण कहते हैं कि बनारस कभी एक राजनीतिक शहर हुआ करता था. सांप्रदायिकता और जातिगत माहौल ने यहां के राजनैतिक माहौल को खत्म कर दिया. उसका परिणाम ये हुआ कि अब स्थानीय राजनैतिक लोग चुनाव के मैदान में आ नहीं रहे हैं. इसलिए यहां पर बाहरी उम्मीदवार आते हैं. एक घटना है 2009 की. उस समय दोनों प्रमुख उम्मीदवार पैराशूट उम्मीदवार थे. एक मुख्तार अंसारी और दूसरे मुरली मनोहर जोशी. दोनों ही जातिवाद या संप्रदायवाद के गणित के अंतर्गत यहां लाए गए थे. शहर में भी टेंशन हो गया. एक तरफ मुस्लिम उम्मीदवार और दूसरी तरफ हिन्दुओं की सभी प्रमुख जातियां थीं. उस समय जोशी ने जीत हासिल की थी.
पूर्वांचल की इन सीटों पर जीते 'बाहरी' : अब अगर बात करें पूर्वांचल के अन्य सीटों की तो इनमें कई प्रत्याशी रहे हैं जो मूल रूप से वाराणसी के रहने वाले नहीं रहे हैं. आजमगढ़ की बात करें तो मुलायम सिंह और अखिलेश यादव इटावा के रहने वाले हैं, जबकि दिनेश लाल यादव गाजीपुर के रहने वाले हैं. चंदौली की बात करें तो 2004 में कैलाशनाथ यादव (वाराणसी), 2014-2019 में महेंद्र नाथ पांडेय (गाजीपुर) के रहने वाले हैं. इसी तरह अगर घोसी की बात करें तो 2004 में चंद्रदेव प्रसाद राजभर (मऊ), 2014 में हरिनारायण राजभर (बलिया) और 2019 में अतुल राय (गाजीपुर) दम दिखाया था. इस बार अरविंद राजभर (वाराणसी) चुनावी मैदान में हैं.
फूलन के बाद अनुप्रिया पटेल दो बार जीतीं : मिर्जापुर की सीट भी सबसे खास सीटों में से एक है, जहां पर बाहरी यानी पैराशूट प्रत्याशियों को सफलता हाथ लगी है. 2004 में नरेंद्र कुशवाहा (सोनभद्र), 2009 में बाल कुमार पटेल (बुंदेलखंड), 2014 और 2019 में अनुप्रिया पटेल (इनके पिता कन्नौज के रहने वाले थे) ने जीत हासिल की थी. इन सभी पैराशूट प्रत्याशियों को मिर्जापुर के लोगों ने दिल खोलकर वोट दिया था. मिर्जापुर से सपा ने राजेंद्र बिंद को मौका दिया जो भदोही के रहने वाले हैं. इस सीट से 1996 और 1999 में फूलन देवी ने जीत दर्ज की थी. उनका जन्म जालौन में हुआ था. ऐसे में ये सभी आंकड़े बताते हैं कि पार्टियां पैराशूट प्रत्याशियों पर भरोसा जताती रही हैं.