आगरा: लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज गई. आगरा में तीसरे चरण में सात मई को मतदान होगा. लोकसभा सीट आगरा की बात करें तो आजादी के बाद लंबे समय तक इस पर कांग्रेस का कब्जा रहा. मगर, भाजपा ने कांग्रेस का विजय रथ रोका तो अब कांग्रेस यहां से जीत के लिए खूब गणित भिड़ा रही है. 15 साल से आगरा में कमल खिल रहा है. सपा की साइकिल भी यहां से दो बार दौड़ चुकी है. मगर, बसपा अभी अपना खाता खुलने का इंतजार कर रही है.
पांच बार ‘अचल’ रहे आगरा के सेठ: आजादी के बाद पहली बार सन 1952 के आम चुनाव में कांग्रेस के सेठ अचल सिंह यहां से चुनाव जीते. इसके बाद 1957, 1962, 1967 और 1971 तक लगातार पांच आम चुनाव तक न कांग्रेस ने अपना चेहरा बदला और ना जनता ने अपना नुमाइंदा बदला.
नेहरू परिवार के करीबी होने के चलते पांच बार सेठ अचल सिंह आगरा से सांसद रहे. जब कांग्रेस विरोधी लहर चली तो सन 1977 के लोकसभा चुनाव में भारतीय लोकदल के शम्भूनाथ चतुर्वेदी आगरा से सांसद बने.
सन 1980 के लोकसभा चुनाव में फिर कांग्रेस की फिर वापसी हुई. आगरा से कांग्रेस के निहाल सिंह सांसद बने. इंदिरा गांधी के निधन के बाद कांग्रेस लहर में निहाल सिंह दूसरी बार सन 1984 में भी सांसद चुने गए.
1989 में जनता दल ने बाजी मारी: सन 1989 के लोकसभा चुनाव में आगरा लोकसभा सीट पर जनता दल के आजाद सिंह ने जीत दर्ज की. मगर, राम मंदिर लहर में पहली बार 1991 में भाजपा का आगरा लोकसभा सीट पर खाता खुला. आगरा में भगवान शंकर रावत ने कमल खिलाया.
इसके बाद आगरा लोकसभा सीट से सन 1996, 1998 में भी भगवान शंकर रावत ने कमल खिलाया. फिर, 1999 के लोकसभा चुनाव में आगरा की जनता ने रुख बदला. चुनावी मैदान में सिनेस्टार राज बब्बर सपा से उतरे. उन्होंने साइकिल दौड़ाई. फिल्म स्टार राज बब्बर आगरा से 1999 और 2004 में चुनाव जीते.
2009 से कमल खिला रही जनता: आगरा लोकसभा सीट सुरक्षित है. यहां से भाजपा ने सन 2009 के लोकसभा चुनाव में राम शंकर कठेरिया को चुनाव मैदान में उतारा. राम शंकर कठेरिया ने 2009 में आगरा में कमल खिलाया. इसके बाद 2014 में भाजपा ने राम शंकर कठेरिया पर विश्वास जताया तो उन्होंने दूसरी बार भी आगरा में कमल खिलाया.
लेकिन, 2019 के चुनाव से पहले ही सांसद राम शंकर कठेरिया के कामकाज से भाजपाई खफा हुए तो उन्हें आगरा से इटावा भेज दिया गया. तब भाजपा ने 2019 में आगरा से एसपी सिंह बघेल को प्रत्याशी बनाया. उन्होंने जीत दर्ज की और मोदी सरकार में मंत्री बने.
आगरा लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्र
आगरा दक्षिण विधानसभा
आगरा उत्तर विधानसभा
छावनी विधानसभा
एत्मादपुर विधानसभा
जलेसर विधानसभा
बसपा दे रही टक्कर मगर जीत का इंतजार: जातीय समीकरणों के आधार पर आगरा से कांग्रेस, भाजपा, सपा, राष्ट्रीय लोकदल दल के प्रत्याशी जीत दर्ज करके सांसद बन चुके हैं. आगरा दलितों की राजधानी कही जाती है. मगर, अभी तक आगरा लोकसभा सीट पर बसपा का खाता नहीं खुला नहीं है.
भले ही तीन चुनाव से भाजपा और बसपा के प्रत्याशियों में सीधी टक्कर हो रही है. मगर, बसपा का हाथी आगरा लोकसभा सीट पर अभी तक नहीं चिंगाड़ा है. जबकि, जातीय समीकरण देखें तो यहां 2.80 लाख दलित और 2.70 लाख मुस्लिम वोटर हैं. 3 लाख से ज्यादा वैश्य वोटर हैं. ऐसे में आगरा लोकसभा सीट पर दलित-मुस्लिम वोटर्स के गठजोड़ से बसपा चार बार दूसरे और चार बार तीसरे नंबर पर रही है.
भाजपा और बसपा ने प्रत्याशी किए घोषित: आगरा सुरक्षित लोकसभा सीट पर भाजपा ने मौजूदा सांसद प्रो. एसपी सिंह बघेल पर विश्वास जताया है. जबकि, बसपा ने कांग्रेस नेत्री सत्या बहन की बेटी पूजा अमरोही को चुनाव मैदान में उतारा है. कांग्रेस और सपा गठबंधन में आगरा की सीट सपा के खाते में हैं. मगर अभी तक सपा ने यहां से अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है. सपा आगरा की सीट को लेकर दावेदारों के नाम पर मंथन कर रही है.
आगरा सीट पर क्या होता है चुनावी मुद्दा: इंटरनेशल एयरपोर्ट और हाईकोर्ट बेंच का मुद्दा यहां महत्वपूर्ण है. वैसे आगरा में लंबे समय से यमुना बैराज का मुद्दा रहता है. यूपी सरकार ने यमुना पर बैराज बनाने की दिशा में नया कदम भी उठाया है. अब यमुना नदी पर ताजमहल से आगे रबर डैम बनाया जाना प्रस्तावित है.
इसके साथ ही आगरा की पेयजल समस्या का समाधान भी गंगाजल आने से हो गया है. आलू अनुसंधान केंद्र भी आगरा के सींगना में बनाया जा रहा है. जिससे आलू किसानों की समस्या का समाधान हो गया. पर्यटन कारोबार इस बार भी मुद्दा रहेगा. इसके साथ ही आगरा में इंटरनेशल एयरपोर्ट का मुद्दा भी रहेगा.
महिला नहीं बनी एक भी बार सांसद: आगरा लोकसभा सीट से कभी कोई महिला उम्मीदवार नहीं जीती है. 2019 में कांग्रेस ने प्रीता हरित को चुनाव मैदान में उतारा था. मगर, उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इससे पहले भी आगरा में जब भी महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरीं. उन्हें हार का सामना करना पडा. इसके साथ ही यहां से कई ऐसे नाम भी चुनाव मैदान में जीते हैं, जिनकी जन्मभूमि आगरा नहीं है. मगर, कर्मभूमि उनकी आगरा बनी है.