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पूर्वांचल की सभी सीटों पर इंडी गठबंधन की निगाह, बनाई खास रणनीति, नेताओं ने झोंकी ताकत - lok sabha election 2024

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 16, 2024, 9:09 AM IST

इंडी गठबंधन पूर्वांचल की सीटों पर फतह के लिए जोर लगाए हुए है. गठबंधन सत्ता विरोधी लहर का लाभ उठाना चाहता है. इंडी गठबंधन भाजपा को यूपी में 50 से कम सीटों पर रोकना चाहता है.

पूर्वांचल की सीटों के लिए इंडी गठबंधन ने खास रणनीति तैयार की है.
पूर्वांचल की सीटों के लिए इंडी गठबंधन ने खास रणनीति तैयार की है. (PHOTO Credit; Etv Bharat)

लखनऊः जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव अपने अंतिम दौर की तरफ बढ़ रहा है उसी के साथ यूपी में बची हुई सीटों पर भाजपा और इंडी गठबंधन के बीच मुकाबला दिलचस्प होता जा रहा है. यूपी में अब अंतिम तीन चरणों की वोटिंग होनी है. प्रदेश की राजनीति के अनुसार पूर्वांचल की 21 लोकसभा सीटों पर सबसे अधिक जातीय समीकरण का मुकाबला होना है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और इंडी गठबंधन दोनों ही अपना वर्चस्व साधने में जुटे हैं. 2014 व 2017 के मुकाबले 2019 व 2022 में भाजपा की पूर्वांचल में विधानसभा और लोकसभा दोनों में सीटों की संख्या कम रही. ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल की सभी सीटों पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा.

पूर्वांचल में सियासत का मिजाज हमेशा की उन हिस्सों से अलग रहा है, जहां स्वभाव सत्ता विरोधी रहा है. पूर्वांचल किसी भी दल का लंबे समय तक खास बनकर नहीं रहा है. पूर्वांचल की पूरी राजनीतिक पृष्ठभूमि जातीय समीकरण पर निर्भर है. यह समीकरण लगभग हर चुनाव में बनता बिगड़ता है. यहां के अधिकतर क्षेत्रों में अति पिछड़ा वर्ग बड़े पैमाने पर चुनावी माहौल को प्रभावित करता है. लखनऊ विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर संजय गुप्ता ने बताया कि पूर्वांचल के सभी जिलों में राजभर, चौहान, कुर्मी, कुशवाहा, मौर्य, प्रजापति, निषाद, बिंद जैसी जातियां सबसे अधिक प्रभावी है.

पूर्वांचल का मिजाज कई चुनावों में बदलाव वाला रहा है.
पूर्वांचल का मिजाज कई चुनावों में बदलाव वाला रहा है. (PHOTO Credit; Etv Bharat)

उन्होंने बताया कि कुछ सीटों पर ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित वोटर भी निर्णायक भूमिका में हैं. पूर्वांचल की राजनीति में धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण का बड़ा प्रभाव रहा है. धार्मिक ध्रुवीकरण की वजह से 2014 के बाद से ओबीसी वर्ग का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ा. इससे पहले जातीय ध्रुवीकरण की राजनीति यहां हावी थी. इसका लाभ सपा और बसपा दोनों पार्टियों को होता था. पूर्वांचल की इसी नब्ज को सपा और भाजपा दोनों पकड़े हुए. भाजपा जहां धार्मिक ध्रुवीकरण को हवा दे रही है. वहीं सपा कांग्रेस के साथ मिलकर पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) के सहारे जातीय दूरी कारण पर फोकस कर रही है.

पूर्वांचल में मुख्य रूप से लोकसभा की 21 सीटें हैं. जबकि विधानसभा की 105 सीटे हैं. लोकसभा सीटों में डुमरियागंज, बस्ती, संतकबीर नगर, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछली शहर, भदोही, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज शामिल हैं. इन 21 सीटों पर अंतिम दो चरणों में मतदान होना है. पूर्वांचल के राजनीतिक स्वभाव की बात करें तो देश में 2014 से पहले कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां सट्टा विरोध की ऐसी लहर बनी कि भाजपा ने इलाके की 21 में से 19 सीटों पर कब्जा कर लिया.

मिर्जापुर सीट को भाजपा के सहयोगी अपना दल ने जीत लिया. सिर्फ आजमगढ़ सीट समाजवादी पार्टी के हाथ लगी थी. 2019 का आम चुनाव आया तो केंद्र में भाजपा की सरकार थी. इसलिए पूर्वांचल का मिजाज कुछ बिगड़ गया और 2019 के लोकसभा चुनाव में 19 से 16 सीटों पर भाजपा आ गई. 2019 में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था. बसपा ने गाजीपुर, घोसी और लालगंज सीट बीजेपी से छीन ली. जबकि सपा ने आजमगढ़ सीट पर अपनी जीत बरकरार रखी. यह बात और है कि केंद्र में भाजपा की दोबारा सरकार बनी लेकिन पूर्वांचल में सीटें कम हुईं थीं.

विधानसभा चुनाव में भी पूर्वांचल की सीटों का स्वभाव ऐसा ही रहता है. इन 21 लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की 105 सीटे हैं. वर्ष 2007 से पहले प्रदेश में सपा की सरकार थी. 2007 के चुनाव में पूर्वांचल में सत्ता का विरोध करते हुए बहुजन समाज पार्टी को 45% से अधिक सीटे दीं. तब बसपा प्रमुख मायावती मुख्यमंत्री बनी थीं. इसी तरह 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल के लोगों ने सपा को हाथों-हाथ लिया और इलाके की 55% से अधिक सीटे सपा के खाते में डाल दी. जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल ने फिर अपना मिजाज बदला और इस चुनाव में पूर्वांचल के लोगों ने 67% से अधिक सीटे भाजपा को दे दी.

पूर्वांचल में लोकसभा की 21 सीटें हैं.
पूर्वांचल में लोकसभा की 21 सीटें हैं. (PHOTO Credit; Etv Bharat)

इसी तरह 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में एक बार फिर से सरकार तो बना ली लेकिन उसकी सीटें 2017 के मुकाबले कम हो गईं. 2022 के चुनाव में भाजपा को पूर्वांचल की 105 सीटों में से करीब 50% यानी 53 सीटें मिली. जबकि सपा को 34 सीटें मिली थीं. सपा के साथ गठबंधन का चुनाव लड़ रही सुहेलदेव समाज पार्टी को 6 सीटें, भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी को 6, अपना दल को 4, कांग्रेस को एक और बसपा को एक सीटें मिली थी.

2019 और 2022 में पूर्वांचल सत्ता परिवर्तन तो नहीं कर पाया लेकिन सीटों की संख्या घटकर अपने स्वभाव को कायम रखा था. अब 2024 का लोकसभा चुनाव धीरे-धीरे अपने अंतिम पड़ाव पूर्वांचल की ओर बढ़ चला है ऐसे में भाजपा के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे इंडी गठबंधन पूर्वांचल की सीटों पर जीत हासिल करने के लिए अलग रणनीति पर काम कर रहा है. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पूर्वांचल की पूरी राजनीतिक जातीय समीकरण पर निर्भर है. यह समीकरण लगभग हर चुनाव में बनता बिगड़ता है.

इसी को ध्यान में रखते हुए इंडिया गठबंधन पूर्वांचल की सभी सीटों पर अपने प्रचार में जातीय समीकरण के आधार पर नेताओं को उतार रही है. कांग्रेस प्रवक्ता सीपी राय ने बताया कि 14 मई को कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे महराजगंज और बांसगांव लोकसभा सीट पर पार्टी के प्रत्याशियों के लिए प्रचार कर चुके हैं. 17 मई के बाद राहुल और अखिलेश यादव पूर्वांचल की सीटों पर चुनावी रैली करने की तैयारी में हैं. 22 मई से यह दोनों नेता बनारस, भदोही, मऊ, गाजीपुर और आजमगढ़ जैसे जिलों में बड़ी संयुक्त सभा करने जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि पांचवें चरण में 14, छठे चरण में 14, और सातवें चरण में 13 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है. इन सभी चरणों में कांग्रेस को 9 सीटों पर चुनाव लड़ना है.

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