कोरबा: एसईसीएल की 9 परियोजनाओं में कोरबा का कोयलांचल क्षेत्र भी शामिल है. यहां के दीपका खदान में 211 करोड़ रुपए की लागत से साइलो का वर्चुअल उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में किया था. साइलो से कोयले की लोडिंग अब शुरू हो चुकी है. जिसका फायदा क्षेत्रवासियों को मिलेगा. सालों से प्रदूषण की मार झेल रहे कोयलांचल के लोगों को साइलो के अस्तित्व में आने के बाद कुछ राहत जरूर मिलेगी. मालगाड़ी के डिब्बो में जब साइलो से कोयले को भरा जाएगा. तब धूल और प्रदूषण में काफी कमी आएगी. रोड सेल से कोयला परिवहन की मात्रा में भी कम होगी. जिससे खदान और रोड दोनों ही जगहों से होने वाले प्रदूषण पर लगाम लगेगी. एसईसीएल के लिए यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है.
1 घंटे में 8500 टन कोयला लोडिंग में सक्षम : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विकसित भारत - विकसित छत्तीसगढ़ कार्यक्रम के तहत एसईसीएल की तीन प्रमुख फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी (FMC) परियोजनाओं का वर्चुअल रुप से उद्घाटन किया था. 600 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत से बनीं यह परियोजनाएं तेज, पर्यावरण हितैषी और कुशल मशीनीकृत कोयला निकासी की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. एसईसीएल के दीपका क्षेत्र स्थित दीपका ओसीपी कोल हैंडलिंग प्लांट की लागत 211 करोड़ रुपये है. जो एसईसीएल की एक मेगा परियोजना है. वार्षिक 25 मीट्रिक टन की कोयला हैंडलिंग क्षमता के साथ इस परियोजना में 20,000 टन की ओवरग्राउंड बंकर क्षमता सहित 2.1 किलोमीटर लंबी कन्वेयर बेल्ट मौजूद है,जो प्रति घंटे 4,500 - 8,500 टन कोयले की तेजी से लोडिंग करने में सक्षम है. जिससे पिटहेड और रेल साइडिंग के बीच सड़क आधारित कोयले की आवाजाही कम होगी.
अब तक मैन्युअल लोडिंग, जिससे उड़ता था धूल का गुबार : फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी से पहले मालगाड़ी के वैगन में जेसीबी कोयला लोड किया जाता था. कोयले को वैगन में डंप करने के दौरान धूल का गुबार उठता है. जिससे पूरा इलाका कोयले के धूल से सराबोर हो जाता है. लेकिन अब साइलो के बन जाने के बाद यह मैन्युअल व्यवस्था पूरी तरह से बंद हो जाएगी. कन्वेयर बेल्ट से पहले कोयले को ऊपर पहुंचाया जाएगा फिर इसे वैगन में लोड किया जाएगा. सामान्य तौर पर इसे, इस तरह से समझिए कि जैसे आटा चक्की में गेहूं को पीसकर झोले में भर दिया जाता है. ठीक उसी तरह मालगाड़ी के वैगन में कोयला लोड होगा. जिससे मालगाड़ी के बगल में खड़े व्यक्ति को भी धूल और प्रदूषण की शिकायत नहीं होगी. साइलो में कोयला लोड करते वक्त कर्मचारियों की सेफ्टी का भी काफी ध्यान रखा जाता है. कोयला लदान के लिए इसे बेहद सुरक्षित भी माना गया है.
कोयला डिस्पैच करने की भी बढ़ेगी क्षमता: साइलो के अस्तित्व में आने के बाद कोयला डिस्पैच करने की क्षमता बढ़ेगी. अब तक रेलवे एक दिन में औसतन 45 से 50 रैक कोयला हर रोज कोरबा से देश के अलग-अलग राज्यों तक पहुंचाता है. एक रैक में 4000 टन कोयला लोड किया जाता है. अब साइलो से लोडिंग होने से कोल डिस्पैच की क्षमता भी बढ़ेगी.
प्रदूषण के साथ सड़क दुर्घटनाओं में आएगी कमी: सड़क मार्ग से कोल डिस्पैच के कारण ना सिर्फ सड़क खराब होती है बल्कि रोड एक्सीडेंट भी ज्यादा होते हैं.कुसमुंडा मेन रोड इसका शिकार है. यहां लगने वाला जाम ने लोगों के जीवन के रफ्तार को ही धीमा कर दिया है. लेकिन अब फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी से कोल भेजने से सड़क दुर्घटनाओं में भी कमी आएगी.
फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी योजना एसईसीएल की महत्वाकांक्षी परियोजना है.इस योजना के अस्तित्व में आने से कोरबा से सड़क मार्ग से कोयले के परिवहन में कमी आएगी. इससे कोयलांचल में प्रदूषण कम होगा. उपभोक्ताओं तक तेजी और इकोफ्रेंडली तरीके से कोयला पहुंचेगा -सनीष चंद्र, जनसंपर्क अधिकारी, एसईसीएल
देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजा जाता है कोरबा से कोयला : विश्व के विकसित देश कोयला आधारित बिजली का विकल्प तलाश रहे हैं. वह परमाणु ऊर्जा की तरफ बढ़ रहे हैं, लेकिन भारत में अब भी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत थर्मल पावर प्लांट ही हैं. भारत में कोयला आधारित पावर प्लांट के जरिए बिजली बनाई जाती है. इसलिए देश की ऊर्जा जरूरत को पूरा करने के लिए कोयला अब भी बेहद महत्वपूर्ण है. कोल इंडिया कंपनियों में एसईसीएल बड़ी कंपनी है. जिसकी 3 मेगा परियोजनाएं कोरबा में चल रही हैं. कुसमुंडा, दीपका और गेवरा में खदानों से कोल इंडिया लिमिटेड को देश का कुल 18 फीसदी कोयला मिलता है. कोरबा से निकले कोयले से गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों के पावर प्लांट चलते हैं.