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अचानक पढ़ाई में टॉपर आपका बच्चा हो गया है कमजोर तो हो सकती है यह बीमारी! - Schizophrenia Disease

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 23, 2024, 8:42 PM IST

Schizophrenia Disease Symptoms, 24 मई को वर्ल्ड सिजोफ्रेनिया डे के रूप में मनाया जाता है. इसको लेकर गुरुवार को कोटा में वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक डॉ. एमएल अग्रवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बीमारी को लेकर कई जानकारी दी.

विश्व सिज़ोफ्रेनिया दिवस पर प्रेस कॉन्फ्रेंस
विश्व सिज़ोफ्रेनिया दिवस पर प्रेस कॉन्फ्रेंस (ETV Bharat Kota)

वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक डॉ. एमएल अग्रवाल (ETV Bharat Kota)

कोटा. देश में करीब 1.4 करोड़ व्यक्ति मनोरोग सिजोफ्रेनिया से पीड़ित हैं. इनमें से 75 फीसदी लोग 40 से कम उम्र के हैं. अधिकांश को यह बीमारी किशोरावस्था में ही हो जाती है, जिसकी पहचान नहीं होने पर व्यक्ति अजीबोगरीब हरकतें करने लग जाता है. मनोरोग चिकित्सकों का का मानना है कि यह बीमारी सिजोफ्रेनिया है. यह डिजीज बीपी और डायबिटीज की तरह रिकवर हो सकती है, लेकिन इसका इलाज नहीं हो सकता है. इसके लिए मेंटेनेंस डोज (रूटीन में दवा) खानी ही पड़ेगी. यह जानकारी कोटा के वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक डॉ. एमएल अग्रवाल ने वर्ल्ड सिजोफ्रेनिया डे (24 मई) से पहले गुरुवार को मीडिया से साझा की है.

डॉ. अग्रवाल का कहना है कि यह बीमारी किसी को भी हो सकती है. कोटा शहर में भी करीब 15000 के आसपास लोगों को यह बीमारी होगी. इसमें पीड़ित व्यक्ति को अलग-अलग तरह की आवाजें सुनाई देती हैं. उसे लोगों पर शक होने लगता है. व्यक्ति साफ सफाई नहीं रखता और नित्य काम भी ठीक से नहीं करता है. सामाजिक रूप से पूरी तरह कट जाता है. अपनी ही दुनिया में खोया रहता है. ऐसे लोग आत्महत्या भी कर लेते हैं. ऐसे में इसको लेकर जागरूकता जरूरी है. लक्षण के अनुसार इसका इलाज कराया जा सकता है. जिस तरह से एक बच्चा परीक्षा में टॉप कर रहा हो, लेकिन अचानक से ही वह पढ़ाई में कमजोर हो गया. इस बीमारी में दवा, इंजेक्शन और थेरेपी के जरिए इलाज होता है.

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पढ़े लिखे लोग भी खोजते हैं तांत्रिक : डॉ. अग्रवाल ने कहा कि ग्रामीण परिवेश के लोग भी अब मनोरोग की बीमारियों का पूरा इलाज करवाते हैं. वह शुरुआत में तो तांत्रिक या देवी देवताओं के धोक लगाने चले जाते हैं. हालांकि, कुछ समय बाद वह जब चिकित्सक को दिखाते हैं तो पूरा इलाज भी लेते हैं. वहीं, कई बार देखने को मिलता है कि शहरी और पढ़े-लिखे लोग ही इलाज लेने की जगह तांत्रिकों को खोज रहे हैं. लड़कियों में यह बीमारी 16 से 24 साल में भी हो सकती है. वहीं लड़कों में यह बीमारी 18 से 30 साल में होने की सबसे ज्यादा संभावना रहती है.

उन्होंने बताया कि बुढ़ापे में भी इस बीमारी के होने के मामले सामने आते हैं, लेकिन 75 फ़ीसदी लोगों में 40 की उम्र के पहले ही यह बीमारी होती है. 40 की उम्र में जिन लोगों को यह बीमारी होती है, तब तक उनकी पर्सनैलिटी डेवलप हो जाती है, तो वहां पर व्यक्तिगत विकृति (पर्सनैलिटी डेटोरेशन) कम नजर आता है. कम उम्र में पर्सनैलिटी डेवलप नहीं होने के चलते व्यक्तिगत विकृति नजर आ जाती है. अगर इलाज नहीं होता तो 2 साल में ही स्थिति बिगड़ जाती है.

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दिमाग के केमिकल में गड़बड़ बड़ा कारण : डॉ. अग्रवाल ने बताया कि हाल ही में एक रिसर्च में पता चला है कि इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण ब्रेन के रसायन का गड़बड़ा जाना है, जिसे आम भाषा में केमिकल लोचा भी कहा जाता है। इसमें न्यूरोट्रांसमीटर में कुछ गड़बड़ होती है, जिसे अच्छी दवा के जरिए दुरुस्त किया जा सकता है। इस बीमारी को खत्म कर दे, ऐसा कोई इलाज नहीं है। हालांकि अच्छी दावों के जरिए यह रिकवरेबल है. इसका उपचार लंबे समय तक चलता है. इस पर देश-विदेश में जीन स्टडी भी हो रही है, आने वाले समय में इस बीमारी का इलाज भी मिल सकता है.

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