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मातृत्व दिवस पर सुरक्षित प्रसव की पहल, उत्तराखंड में हर साल जान गंवा रही महिलाएं! आंकड़े दे रहे तस्दीक - National Safe Motherhood 2024

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 11, 2024, 6:15 PM IST

Updated : Apr 12, 2024, 3:18 PM IST

National Safe Motherhood 2024 आज पूरे देशभर में राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व मनाया जा रहा है. भारत में इसकी शुरुआत 2003 में व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया के अनुरोध की गई थी. नेशनल सेफ मदरहुड डे मनाने की मुख्य वजह मातृत्व सुरक्षा को बढ़ावा देना है. इसे सुरक्षित प्रसव की पहल के तौर पर भी देखा जाता है.

National Safe Motherhood 2024
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस

मातृत्व दिवस पर सुरक्षित प्रसव की पहल

देहरादून: मातृत्व सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए हर वर्ष 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व (National Safe Motherhood) दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षित प्रेग्नेंसी, प्रसव और प्रसव के दौरान होने वाली परेशानियों के बारे में जागरूक करना है. जिससे प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाएं तमाम सावधानियां बरत सकें. दरअसल, उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देशभर में हर साल हजारों की संख्या में प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की मौत हो जाती है. कई बार लोगों में जागरूकता की कमी होने के चलते अस्पतालों में डिलीवरी करने की बजाय घर पर ही प्रसव कराया जाता है, जिसका खामियाजा बाद में परिजनों को भुगतना पड़ता है.

National Safe Motherhood 2024
उत्तराखंड में प्रसव के दौरान मातृ और नवजात के मौत के आंकड़े

भारत में 2003 में मनाया गया था पहला राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस: बता दें कि 11 अप्रैल 1987 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सुरक्षित मातृत्व पहल को लांच किया था. दरअसल, व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया के अनुरोध पर साल 2003 में पहली बार इस दिवस को मानने की शुरुआत भारत में हुई थी. जिसके बाद हर साल 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में मनाते हैं. सुरक्षित मातृत्व पहल यानी एसएमआई को लांच करने की मुख्य वजह सुरक्षित और प्रभावी मातृ और नवजात देखभाल को बढ़ावा देने के साथ-साथ दुनिया भर में मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम करना था.

महिलाओं को पोषण युक्त भोजन की दी जाती है जानकारी: राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के अवसर पर हर साल केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से तमाम कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. जिसके तहत शहर, गांव और कस्बों में स्वास्थ्य विभाग की टीम जाकर गर्भावस्था, प्रसव और डिलीवरी के बाद महिलाओं की अधिक देखभाल की जरूरत क्यों होती है, इसकी जानकारी देती है. साथ ही क्या कुछ सावधानियां बरतनी होती है, जांच कितनी जरूरी होती है, पोषण युक्त भोजन का इस्तेमाल कितना महत्वपूर्ण होता है, इसकी भी जानकारी दी जाती है.

पर्वतीय क्षेत्रों में घर पर होते हैं प्रसव: देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोग आज भी संस्थागत प्रसव के बजाय घर पर ही प्रसव कराते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से इस व्यवस्था में भी बदलाव देखा जा रहा है, क्योंकि जिस तरह से लोगों में जागरूकता फैली है. ऐसे में अब लोग बढ़-चढ़कर गर्भावस्था के दौरान न सिर्फ जांच को काफी तवज्जो देते हैं, बल्कि संस्थागत प्रसव पर भी जोर देते हैं, लेकिन अभी भी ऐसे तमाम ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां गर्भावस्था के दौरान महिलाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. खासकर अगर उत्तराखंड राज्य की बात करें तो उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों पर तमाम सुविधाएं न होने के चलते गर्भावस्था के दौरान घरों पर ही प्रसव किए जाते हैं.

घर में प्रसव होने से होती हैं कॉम्प्लिकेशन: कई बार घरों पर प्रसव के दौरान तमाम कॉम्प्लिकेशन होने के चलते जच्चा और बच्चा के नुकसान की संभावना बढ़ जाती है. मौजूदा समय में गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में तमाम कॉम्प्लिकेशन देखे जाते हैं. ऐसे में सुरक्षित प्रसव के लिए डॉक्टर हमेशा इस बात पर जोर देते हैं कि नियमित समय पर नजदीकी डॉक्टर से सलाह लेते रहें. साथ ही गर्भावस्था के दौरान बेवजह की दवाइयां के इस्तेमाल से भी बचे.

गायनोलॉजिस्ट बोली महिलाएं अपने ऊपर दें विशेष ध्यान: दून मेडिकल कॉलेज की वरिष्ठ गायनोलॉजिस्ट डॉक्टर रीना पाल ने कहा कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए, लेकिन ऐसा देखा जा रहा है कि इस दौरान महिलाएं अपना विशेष ध्यान नहीं रख पाती है, बल्कि परिवार की समस्याओं से जूझती रहती हैं. उन्होंने कहा कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अपना और अपने बच्चे का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. वर्तमान समय में प्रसव पूर्व यानी गर्भावस्था के दौरान जांच काफी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अनुमान प्रेग्नेंसी के दौरान तमाम कॉम्प्लिकेशन देखे जाते हैं. ऐसे में खुद को और बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए जांच और डॉक्टर की सलाह के आधार पर ही काम करना चाहिए.

पिछले कुछ सालों में लोगों में आई जागरूकता : डॉक्टर रीना पाल ने कहा कि पिछले कुछ सालों में लोगों में जागरूकता फैली है और लोग प्रेगनेंसी के दौरान जांच कराने और चेकअप के लिए आते हैं. उन्होंने कहा कि कॉम्प्लिकेशन को तीन हिस्सों में बांटा गया है. जिसके तहत प्रसव पूर्व कॉम्प्लिकेशन, प्रसव के दौरान कॉम्प्लिकेशन और प्रसव के बाद कॉम्प्लिकेशन शामिल है.

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Last Updated : Apr 12, 2024, 3:18 PM IST
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