अजमेर. होली का पर्व नजदीक है. अजमेर में होली के त्योहार की खुशियों को एक खास तरह की मिठाई के साथ मनाया जाता है. यह मिठाई पाकिस्तान के सिंध में काफी मशहूर थी, लेकिन विभाजन के बाद सिंध से आए सिंधी समाज के लोगों के साथ इस खास मिठाई की रेसिपी भी अजमेर आ गई. चलिए आपको पहले उस खास मिठाई का नाम बताते हैं जो वर्ष में केवल 20 दिन ही बनाई जाती है. यह मिठाई है घीयर. यह सिंधी समाज की पारंपरिक मिठाई है जो उन्हें अपनी पौराणिक सभ्यता से जोड़े रखती है, लेकिन अब घीयर अजमेर के जायके में शामिल हो गया है.
राजस्थान की हृदयस्थली अजमेर में विभिन्न धर्म जाति के लोग रहते हैं. उनकी अपनी अपनी संस्कृति और परंपराएं हैं. अजमेर शहर की बात की जाए तो सिंधी समाज की तादात काफी है. यूं कहे कि अजमेर शहर सिंधी बाहुल्य है. भारत-पाकिस्तान के बीच खिंची विभाजन की रेखा के दौरान बड़ी संख्या में सिंधी समाज के लोग पाकिस्तान से हिंदुस्तान आए थे. बड़ी संख्या में सिंधी समाज के लोगों ने अजमेर में शरण ली थी. मेहनतकश और पुरुषार्थ सिंधी समाज के लोगों ने इतने वर्षों में अपना एक मुकाम हासिल कर लिया है. खास बात यह है कि अपना सब कुछ छोड़कर भारत आए सिंधी समाज के लोगों ने अपनी संस्कृति, परंपरा और भाषा को नहीं छोड़ा. भारत आने से पहले सिंधी समाज के कई लोगों ने अपना पुश्तैनी काम भी नहीं छोड़ा. इनमें कई मिठाई वाले भी शामिल हैं.
अजमेर में सिंधी समाज की दो दर्जन से भी अधिक मिठाई की दुकाने हैं, जहां सिंधी समाज की परंपरा और संस्कृति को प्रदर्शित करती हुई कई मिठाइयों की बिक्री होती है. इन मिठाइयों में घीयर भी शामिल हैं. अन्य मिठाइयां तो यहां की दुकानों पर 12 महीने मिल ही जाएगी, लेकिन घीयर केवल शिवरात्रि से लेकर होली तक ही मिल पाती है. सिंधी समाज में घीयर केवल मिठाई नहीं है, बल्कि यह उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ें रखने की पारंपरिक खाद्य सामग्री है. यह रिश्तों में मिठास लाती है.
परंपरा से जुड़ी है घीयर : सिंधी समाज में घीयर मिठाई का विशेष महत्व है. इस रसीली और स्वाद में खट्टी मीठी मिठाई वर्ष में 20 दिन ही चखने को मिलती है. होली के लिए ही यह मिठाई बनाई जाती है. अजमेर में दो दर्जन दुकानों के अलावा मारवाड़ी समाज के लोगों की कुछ दुकानों पर भी घीयर की बिक्री होती है, लेकिन घीयर का पारंपरिक स्वाद वहां नहीं मिल पाता है. होली के पर्व तक अजमेर में करीब 15 हजार किलों से भी अधिक खपत घीयर की होती है.
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स्थानीय व्यक्ति मोहन सतवानी बताते हैं कि घीयर मिठाई को बाजार से खरीद कर होली से पहले बहन बेटियों के सुसराल भेजने की परंपरा है. होलिका दहन पर भी घीयर का भोग लगाया जाता है. वहीं होली के पर्व पर घर आने वाले मेहमानों की आवभगत भी घीयर से की जाती है. जयपुर से अजमेर घीयर खरीदने आए डॉ. प्रदीप वोजवानी ने बताया कि अजमेर में सिंधी समाज के कई लोगों की 70 वर्ष पुरानी मिठाई की दुकानें हैं. परंपरा गत स्वाद इन्हीं दुकानों पर मिलता है. उन्होंने तीन किलों घीयर बहन को भेजने के लिए खरीदे हैं. घीयर से अपनी परंपरा से जुड़े होने का एक अहसास मिलता है.
जलेबी नहीं है घीयर : घीयर को देखकर ज्यादा लोग इसको जलेबी ही समझ लेते हैं, जबकि इसके आकार और स्वाद में काफी फर्क है. घीयर को मैदा से बनाया जाता है. इसमें रंग और खटाई के लिए थोड़ी मात्रा में टाटरी मिलाई जाती है. इसके बाद इसका घोल तैयार करके एक दिन के लिए रख दिया जाता है, ताकि उसमें खमीर उठ सके. खमीर उठने के बाद हलवाई इसको खोलते तेल और घी के सांचे में डालकर बनाते हैं. इसके बाद घीयर को चाशनी में डाल दिया जाता है. खमीर जितना अच्छा उठेगा, घीयर भी उतना अच्छा बनेगा. सांचे के छोटे और बड़े आकार में इसको बनाया जाता है. जिन लोगों ने घीयर को पहले नहीं खाया है, वह इसको बड़ी जलेबी समझते हैं. घीयर का स्वाद चखने के बाद ही इसका जायका पता चलता है.
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अजमेर से विदेशों तक पहुंचता है घीयर का स्वाद : अजमेर शहर सिंधी बाहुल्य है. बड़ी संख्या में सिंधी समाज के लोग यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका, दुबई, ओमान, मस्कट, चीन, कनाडा आदि देशों में काम के सिलसिले में रहते हैं. इनमें कई लोग तो वहां बस चुके हैं. ऐसे में उनके रिश्तेदार अजमेर से घीयर को भेजते हैं. सिंधी समाज के कई संगठनों में पदाधिकारी रमेश लालवानी बताते हैं कि कुछ लोग इस तरह से जलेबी बनाते हैं, लेकिन घीयर का परंपरागत स्वाद सिंधी मिठाई की दुकान पर ही मिलेगा. अजमेर में सिंध से कुछ लोगों ने अपनी परंपरा से जुड़े रहते हुए परंपरागत मिठाई बनाने का काम जारी रखा हुआ है. घीयर का स्वाद सबको पसंद आता है. होली पर घीयर को बहन बेटियों के सुसराल भेजने का रिवाज है.
200 से 450 रुपए प्रति किलो घीयर का भाव : परंपरागत सिंधी मिठाइयों के कारोबारी अर्जुन दास वतवानी बताते हैं कि मिठाई का कारोबार उनका पुश्तैनी है. विभाजन से पहले सिंध में उनके पूर्वज भी मिठाई का कारोबार करते थे. वर्षों पहले उनके पिता मोहनदास ने अजमेर आकर सिंधी मिठाई की दुकान लगाई थी. यहां हर सिंधी मिठाई मिलती है. उन्होंने बताया कि घीयर को तेल और घी से बनाया जाता है. वनस्पति और तेल से बने घीयर के दाम कम है, जबकि देशी घी में बने घीयर के दाम अधिक है. बाजार में 200 से 450 रुपए प्रति किलो तक घीयर बिक रहे हैं.