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आईआईटी कानपुर ने विकसित की देश की पहली हाइपरवेलोसिटी एक्सपेंशन टनल सुविधा

आईआईटी कानपुर ने देश की पहली हाइपरवेलोसिटी एक्सपेंशन टनल (Hypervelocity Expansion Tunnel) सुविधा विकसित करके इतिहास रच दिया है. एस-2 नाम की विकसित की गई इस सुविधा से इसरो और डीआरडीओ के वैज्ञानिकों को काफी लाभ मिलेगा.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 5, 2024, 6:36 PM IST

Updated : Feb 5, 2024, 10:17 PM IST

कानपुर : दुनिया में कुछ ही देश ऐसे हैं, जिनकी गिनती हाइपरसोनिक परीक्षण क्षमता वाले देशों में होती है. हालांकि, अब उन देशों में भारत भी पूरी ताकत के साथ शामिल हो सकेगा. दरअसल, आईआईटी कानपुर ने देश की पहली हाइपरवेलोसिटी एक्सपेंशन टनल सुविधा विकसित कर ली है. इसका टेस्ट व परीक्षण सुविधा के साथ ही इसको सफलता से कैम्पस में स्थापना करने में विशेषज्ञ पूरी तरह से कामयाब रहे हैं. इसे फिलहाल एस-टू सुविधा का नाम दिया गया है, जिसकी मदद से अब आने वाले समय में वाहनों के वायुमंडलीय प्रवेश, स्क्रैमजेट उड़ानों, बैलेस्टिक मिसाइलों के दौरान आने वाली हाइपरसोनिक स्थितियों का अनुसरण किया जा सकेगा. क्योंकि, यह टनल तीन से 10 किलोमीटर प्रति सेकेंड के बीच उड़ान गति को उत्पन्न करने में सक्षम है. आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. एस गणेश ने कहा कि आईआईटी कानपुर के प्रोफेसरों ने अपने शोध से एक बार फिर इतिहास रच दिया है.

तीन साल में स्वदेसी रूप से डिजाइन किया गया : आईआईटी कानपुर में एयरोस्पेस विभाग और लेजर फॉर फोटोनिक्स केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर मो. इब्राहिम सुगरनो ने बताया कि इस टनल को फिलहाल एस-टू सुविधा का नाम दिया गया है. इसकी लंबाई 24 मीटर है, जो एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के अंदर आईआईटी कानपुर के हाइपरसोनिक एक्सपेरीमेंटल एयरोडायनेमिक्स लैब्रेटरी में स्थित है. एस-टू को वैमानिकी अनुसंधान और विकास बोर्ड (एआरडीबी), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और आईआईटी कानपुर के वित्त पोषण और समर्थन के साथ तीन साल की अवधि में स्वदेशी रूप में डिजाइन किया गया है.

चुनौतीपूर्ण रहा एसटू का निर्माण : एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग और लेजर और फोटोनिक्स केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर मो. इब्राहिम सुगरनो ने कहा कि एस-2 का निर्माण बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है. इसके लिए भौतिकी और सटीक इंजीनियरिंग के गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है. सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण पहलू था 'फ्री पिस्टन ड्राइवर' प्रणाली को बेहतर बनाना, जिसके लिए एक पिस्टन को 6.5 मीटर से नीचे 20-35 वायुमंडल के बीच उच्च दबाव पर 150-200 मीटर/सेकेंड की गति से संपीड़न ट्यूब में फायर करना. अंत में इसे पूर्ण विराम या 'सॉफ्ट लैंडिंग' पर लाना भी जरूरी होता है. हालांकि, अपनी विशेषज्ञता के साथ हम इस पर काबू पाने में सक्षम थे. हमारी टीम को इस अनूठी सुविधा को डिजाइन, निर्माण और परीक्षण करने पर गर्व है. जिसने विशिष्ट वैश्विक हाइपरसोनिक अनुसंधान समुदाय में भारत की स्थिति को मजबूत किया है.

कानपुर : दुनिया में कुछ ही देश ऐसे हैं, जिनकी गिनती हाइपरसोनिक परीक्षण क्षमता वाले देशों में होती है. हालांकि, अब उन देशों में भारत भी पूरी ताकत के साथ शामिल हो सकेगा. दरअसल, आईआईटी कानपुर ने देश की पहली हाइपरवेलोसिटी एक्सपेंशन टनल सुविधा विकसित कर ली है. इसका टेस्ट व परीक्षण सुविधा के साथ ही इसको सफलता से कैम्पस में स्थापना करने में विशेषज्ञ पूरी तरह से कामयाब रहे हैं. इसे फिलहाल एस-टू सुविधा का नाम दिया गया है, जिसकी मदद से अब आने वाले समय में वाहनों के वायुमंडलीय प्रवेश, स्क्रैमजेट उड़ानों, बैलेस्टिक मिसाइलों के दौरान आने वाली हाइपरसोनिक स्थितियों का अनुसरण किया जा सकेगा. क्योंकि, यह टनल तीन से 10 किलोमीटर प्रति सेकेंड के बीच उड़ान गति को उत्पन्न करने में सक्षम है. आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. एस गणेश ने कहा कि आईआईटी कानपुर के प्रोफेसरों ने अपने शोध से एक बार फिर इतिहास रच दिया है.

तीन साल में स्वदेसी रूप से डिजाइन किया गया : आईआईटी कानपुर में एयरोस्पेस विभाग और लेजर फॉर फोटोनिक्स केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर मो. इब्राहिम सुगरनो ने बताया कि इस टनल को फिलहाल एस-टू सुविधा का नाम दिया गया है. इसकी लंबाई 24 मीटर है, जो एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के अंदर आईआईटी कानपुर के हाइपरसोनिक एक्सपेरीमेंटल एयरोडायनेमिक्स लैब्रेटरी में स्थित है. एस-टू को वैमानिकी अनुसंधान और विकास बोर्ड (एआरडीबी), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और आईआईटी कानपुर के वित्त पोषण और समर्थन के साथ तीन साल की अवधि में स्वदेशी रूप में डिजाइन किया गया है.

चुनौतीपूर्ण रहा एसटू का निर्माण : एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग और लेजर और फोटोनिक्स केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर मो. इब्राहिम सुगरनो ने कहा कि एस-2 का निर्माण बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है. इसके लिए भौतिकी और सटीक इंजीनियरिंग के गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है. सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण पहलू था 'फ्री पिस्टन ड्राइवर' प्रणाली को बेहतर बनाना, जिसके लिए एक पिस्टन को 6.5 मीटर से नीचे 20-35 वायुमंडल के बीच उच्च दबाव पर 150-200 मीटर/सेकेंड की गति से संपीड़न ट्यूब में फायर करना. अंत में इसे पूर्ण विराम या 'सॉफ्ट लैंडिंग' पर लाना भी जरूरी होता है. हालांकि, अपनी विशेषज्ञता के साथ हम इस पर काबू पाने में सक्षम थे. हमारी टीम को इस अनूठी सुविधा को डिजाइन, निर्माण और परीक्षण करने पर गर्व है. जिसने विशिष्ट वैश्विक हाइपरसोनिक अनुसंधान समुदाय में भारत की स्थिति को मजबूत किया है.

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Last Updated : Feb 5, 2024, 10:17 PM IST
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